हिमालय की तलहटी में बसा पीलीभीत जिला अपनी सघन वन संपदा, जैविक विविधता और जल संग्रहण क्षेत्र के लिए जाना जाता है. दलदली भूमि होने के चलते यहां स्थित वनीय क्षेत्रों में नदियों और नहरों की बहुलता रही है, किंतु बदलते समय के साथ इस क्षेत्र ने भी बहुत से बदलाव देखें हैं, जिनमें इन जल स्त्रोतों पर संकट मंडराने लगा है.
इसी पीलीभीत जिले के सघन वन क्षेत्र पूरनपुर के दक्षिण-पूर्व के जंगलों से निकलती है और खीरी जिले के परगना भीरा की सीमा बनाते हुए उत्तर-पश्चिम से खीरी जिले में प्रवेश करती है. लखीमपुर खीरी जिले की जीवन रेखा मानी जाने वाली उल्ल नदी सीतापुर जिले में रामपुर मथुरा के पास शारदा में विलीन हो जाती है. खीरी जिले में 95 किमी की लम्बाई में बहने वाली उल्ल आज अथाह प्रदूषण के साथ साथ अवैध खनन, नदी भूमि अतिक्रमण केसाथ साथ अनेकों समस्याएं झेल रही है.
लोकश्रुतियों के अनुसार उल्ल नदी का नाम माता लक्ष्मी के वाहन उल्लू के नाम पर पड़ा था. आज से तीन दशक पूर्व यह नदी भी प्रदेश की अन्य नदियों की भांति पीलीभीत, लखीमपुर और सीतापुर के अनगिनत गांवों और जनजीवन के लिए जल का अहम स्त्रोत थी, पीलीभीत में पूरनपुर के जंगलों में यह वन्य जीवन और वनस्पतियों के लिए जीवनदायिनी मानी जाती है..किन्तु वर्षा का पैटर्न बदलने और प्राकृतिक जल स्त्रोत सूखने से आज वहां भी नदी के जीवन पर संकट साफ़ दिखाई देता है.
वहीं लखीमपुर में भी यह नदी शहर भर के सीवर को ढ़ोने के साथ साथ कचरे का डंपिंग स्टेशन भी बन चुकी है. शहरीकरण के विकास के साथ ही नदी के विनाश की कहानी भी शुरू हो गयी थी और आज सीवरेज के साथ ही नगरपालिका की ओर से कचरा नदी के किनारों पर ही दाल दिया जाता है. नदी किनारे बने धोबी घाटों ने उल्ल के प्रदूषण को चार गुना अधिक बढ़ा दिया है और शहर की चीनी मिल का रासायनिक कचरा भी नदी को विषैला बना रहा है. इसके अतिरिक्त सदर कोतवाली क्षेत्र में मिदनिया गढ़ी से होकर जब उल्ल निकलती है तो नदी से बालू का अवैध खनन किया जाता है, जिससे नदी के प्राकृतिक वेग पर प्रतिकूल असर पड़ा है और इसकी धारा जगह जगह से सूख गयी है.
गोमती सेवा समाज से नदी संरक्षणकर्ता एवं शिक्षक मनदीप सिंह के अनुसार लखीमपुर खीरी व महेवागंज के मध्य नदी की स्थिति बेहद ख़राब है, इसके किनारों पर कूड़े का ढेर लगा है और पानी किसी गंदे नाले के समान काला और बदबूदार हो चुका है, यहां इसकी स्थिति को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि पानी के प्राकृतिक बहाव क्षेत्र में अत्याधिक कमी आ चुकी है.
वहीं सीतापुर में उल्ल कभी अविरल बहा करती थी, लेकिन आज इसकी अधिकतर भूमि को कृषि के उद्देश्य से लोगों ने पाट लिया, जिसके बाद यह नदी के स्थान पर नाला बन गयी है. आज नदी इस कदर प्रदूषित है कि इसमें जल के स्थान पर कूड़ा-करकट और जल कुंभी ही नजर आती है. भू-माफियाओं का गढ़ बन चुकी उल्ल नदी को भी आज किसी सार्थक प्रयास की जरुरत है, जिससे यह पहले की ही भांति अविरल, निर्मल होकर अबाध प्रवाहित हो सके.
उल्ल की वर्तमान (फरवरी माह में ) स्थिति, स्थान : लखीमपुर खीरी व महेवागंज के मध्य. (फ़ोटो साभार - गोमती सेवा समाज)