संक्षिप्त परिचय –
भारत की पवित्रतम नदियों में से एक शिप्रा नदी पौराणिक रूप से अत्यन्त महत्वपूर्ण है. इसे ‘क्षिप्रा’ नाम से भी संबोधित किया जाता है. शिप्रा नदी म.प्र. की एक महत्वपूर्ण नदी है, जिसका उद्गम इंदौर जिले के करीब जानापाव नामक पहाड़ियों से होता है. म.प्र. के विभिन्न क्षेत्रों से बहते हुए यह नदी चंबल नदी में मिल जाती है.
तट पर बसे तीर्थस्थल –
शिप्रा नदी के तट पर अनेक तीर्थस्थल व मंदिर बने हुए हैं. जिनमें से सबसे महत्वपूर्ण द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक बाबा महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग है, जो कि उज्जैन में इस नदी के तट पर स्थापित है. साथ ही कुंभनगरी उज्जैन में 12 वर्षों के अंतराल पर लगने वाला कुंभ मेला भी इसी नदी के तट पर आयोजित होता है. इसके अलावा प्रसिद्ध सोमेश्वर कुंड व राम जर्नादन मंदिर भी शिप्रा नदी के किनारे बना हुआ है. वहीं इस नदी के तट पर रामघाट, नरसिंह घाट, गंगा घाट आदि मनोरम घाट भी बसे हैं.
पौराणिक महत्व –
प्राचीन शिप्रा नदी धार्मिक रूप से अत्यन्त महत्वपूर्ण है तथा इस नदी का विभिन्न प्राचीन पुराणों ब्रह्मपुराण, स्कन्दपुराण व कालिदास रचित मेघदूत में उल्लेख देखने को मिलता है. इसकी उत्पत्ति को लेकर अलग- अलग धार्मिक मान्यताएं हैं.
जिनके आधार पर शिप्रा नदी का जन्म भगवान विष्णु की अंगुली के रक्त से हुआ है. कहा जाता है कि भगवान शिव एक बार भगवान विष्णु से भिक्षा मांगने पहुंचे, उस समय भगवान विष्णु ने भिक्षा देते हुए उन्हें अंगुली दिखा दी थी, जिससे क्रोधित होकर भगवान शिव ने अपने त्रिशूल से उनकी अंगुली पर वार कर दिया. मान्यता है कि उस समय भगवान विष्णु की अंगुली से जो रक्तधारा निकली, वही धरती पर आकर शिप्रा नदी बन गयी. एक और धार्मिक मान्यता के आधार पर शिप्रा नदी की उत्पत्ति भगवान शिव के खप्पर से हुई है.
इसके अलावा यह भी कहा जाता है कि भगवान राम ने अपने पिता राजा दशरथ का तर्पण कार्य इसी नदी के तट पर किया था, जिसे आज ‘रामघाट’ के नाम से जाना जाता है. वहीं भगवान श्री कृष्ण, उनके बड़े भाई बलराम व मित्र सुदामा ने इसी नदी के तट पर शिक्षा प्राप्त की है.
प्रवाह क्षेत्र –
शिप्रा नदी अपने उद्गम से निकलकर म.प्र. के मुख्य रूप से उज्जैन जिले में प्रवाहित होती है, इसीलिए इसे ‘उज्जैयिनी’ के नाम से भी जाना जाता है. इस दौरान यह कई मंदिरों व तीर्थस्थलों से होकर गुजरती है. यह चंबल की सहायक नदी व यमुना की उप सहायक नदी है, जो कि चंबल में मिलने के बाद उ.प्र. में यमुना नदी से मिल जाती है.
शिप्रा नदी के जल को मोक्षदायिनी मानते हैं. वहीं मान्यता है कि इसमें स्नान मात्र से रोग दूर हो जाते हैं, इसलिए इसे ज्वारन्घी के नाम से भी संबोधित किया जाता है.