संक्षिप्त परिचय –
भारत की प्रमुख नदियों में से एक ऐतिहासिक सरस्वती नदी वर्तमान में विलुप्त हो चुकी है. लोगों का मानना है कि यह नदी अभी भी अदृश्य रूप में बहती है तथा त्रिवेणी में गंगा व यमुना नदी से मिलती है. इसका उद्गम हिमालय की शिवालिक श्रेणियों में स्थित रूपण नामक ग्लेशियर से माना जाता है, जो कि सिरपुर, उत्तराखण्ड के अंतर्गत आता है. उत्तराखण्ड से अदृश्य रूप में प्रवाहित होते हुए यह प्रयागराज में त्रिवेणी नामक स्थान पर गंगा व यमुना नदी में मिलती है. यमुना व सतलज नदियों को इसकी प्रमुख सहायक नदी माना जाता था.
पौराणिक महत्व –
सरस्वती नदी आज भले ही विलुप्त हो गयी है, किन्तु प्राचीन वेद- पुराण इस नदी के अस्तित्व व धरती पर इसकी जलधारा के प्रवाह के साक्ष्य हैं. सरस्वती नदी का ऋग्वेद में अन्नवती व उदकवती नाम से यमुना व सतलज नदी के साथ वर्णन किया गया है. इसके अलावा वाल्मिकी रामायण के आधार पर केकय देश से अयोध्या आते समय भगवान श्रीराम के भाई भरत गंगा व सरस्वती नदी को ही पार करके आए थे.
वहीं महाभारत में इस नदी का वेदवती व वेदस्मृति आदि नामों से उल्लेख किया गया है. मान्यता है कि महाभारत काल से ही यह नदी विलुप्त हो चुकी है तथा इस ग्रंथ में सरस्वती नदी का विनशन नामक स्थान (वर्तमान में पटियाला के अंतर्गत) पर अदृश्य होने का वर्णन देखने को मिलता है. ये उल्लेख सरस्वती नदी के प्राचीन अस्तित्व को प्रमाणित करते हैं.
प्रवाह क्षेत्र –
माना जाता है कि शिवालिक श्रेणियों से निकलने वाली सरस्वती नदी भारत के पंजाब, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा व राजस्थान राज्य तक फैली हुई थी, जो कि प्रमुख रूप से पटियाला व अंबाला में प्रवाहित होती थी. इसके अलावा पाकिस्तान का कुछ भाग भी इसके इसके प्रवाह क्षेत्र के अंतर्गत आता था. कुंभनगरी प्रयागराज (उ.प्र.) में संगमतट पर त्रिवेणी नामक स्थान, जो कि भारत के प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में से एक है, यहां पर गंगा, यमुना व सरस्वती (अदृश्य) का अद्भुत संगम दिखाई देता है.