यमुना नदी में बढ़ते प्रदूषण के चलते प्रशासन द्वारा नदी की साफ-सफाई का कार्य शुरू करवाया तो गया, किन्तु उसे अंजाम तक पहुंचाने के लिए कोई सक्रिय कदम नहीं उठाया गया. वहीं नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) द्वारा नदी की सफाई से जुड़े कार्यों की निगरानी के लिए एनजीटी के चेयरपर्सन जस्टिस ए.के.गोयल की अध्यक्षता में एक पैनल का गठन किया गया तथा पैनल ने जब अधिकारियों द्वारा यमुना की सफाई की दिशा में उठाए गए कदमों की जांच की तथा इसे काफी हद तक असंतोषजनक पाया. पैनल में दिल्ली की पूर्व मुख्य सचिव शैलजा चंद्रा और सेवानिवृत्त विशेषज्ञ सदस्य बी. एस. सजवान शामिल रहे.
पैनल द्वारा एनजीटी को दी गई रिपोर्ट के मुताबिक,
“यमुना की सफाई के लिए 26 जुलाई, 2018 को आदेश पारित किया गया था. बावजूद इसके उत्तर- प्रदेश प्रशासन इस ओर लापरवाह रूख अख्तियार किए रहा. इस दौरान राज्य के मुख्य सचिव से पत्रों व फोन कॉल के माध्यम से संपर्क साधने का प्रयास भी किया गया, किन्तु प्रशासन द्वारा इस दिशा में की गई कार्यवाही संतोषजनक नहीं रही. यही नहीं उत्तर- प्रदेश के पर्यावरण एवं वन विभाग के सचिव से जब इस बारे में फोन पर बात की गई तो उन्होंने कहा कि, “अब यमुना की सफाई के लिए कौन- सी कार्यवाही शेष है?”
पैनल
ने प्रशासन की लापरवाही पर आगे कहा
कि, उत्तर-
प्रदेश और दिल्ली के बीच बाढ़ग्रसित क्षेत्र के सीमांकन पर स्पष्टता की जरूरत है.
1 नवबंर, 2018 को उत्तर- प्रदेश की मुख्य सचिव और दिल्ली विकास प्राधिकरण के
प्रतिनिधियों के साथ हुई मीटिंग में बाढ़ग्रसित
क्षेत्र के सीमांकन और कायाकल्प के विषय में चर्चा की गई थी. इसके बावजूद प्रशासन
ने इस दिशा में विशेष ध्यान नहीं दिया.
हालांकि
मीटिंग के बाद उत्तर- प्रदेश प्रशासन ने बाढ़ ग्रसित क्षेत्र, उनकी स्थिति,
विभिन्न विभागों की आवंटित की गई जमीन, मुकदमे आदि में फंसी जमीन, अतिक्रमण आदि से
जुड़ा नक्शा अवश्य उपलब्ध कराया.
वहीं
27 सिंतबर, 2018 को सिंचाई एवं बाढ़ नियंत्रण विभाग के अधिकारियों के बीच हुई
मीटिंग में यह पाया गया था कि यूपी और डीडीए सरकार के मध्य बहुत बड़ी मात्रा में
ज़मीनें मुकदमे के आधीन हैं. इसके अलावा 200 से अधिक किसान पिछले 25 वर्षों से
निचली अदालतों में मुकदमा लड़ रहे हैं, जो कि वास्तव में चिंताजनक व भयावह है.
जहां सरकारी अधिकारी इस ओर बिल्कुल ध्यान नहीं दे रहें, वहीं डीडीए के
प्रतिनिधियों ने इस बारे में पैनल को गलत तरीके से जानकारी दी. जो कि वास्तव में
प्रशासन व सरकार के लापरवाह रूख के साथ ही उनकी असफलता को भी दिखाता है.
इसके अतिरिक्त कमेटी ने
यमुना नदी में बाढ़ से होने वाले प्रदूषण से बचाव के लिए बहुत से बेहतर सुझाव दिए,
जो इस प्रकार है..
1. यमुना बाढ़ से मैदानी
इलाकों में फैले मलबे से होने वाले प्रदूषण स्तर पर नजर रखने के लिए आर्टिफ़िशियल
इंटेलिजेंस (एआई) तकनीक, ड्रोन एवं उपग्रह से ली गयी तस्वीरों का उपयोग किया जाना
चाहिए.
2. हवाई मानचित्रण या
ड्रोन मानचित्रण का उपयोग डीडीए द्वारा भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन एवं
क्षेत्रीय दूर संवेदी केंद्र के साथ हुए करार में खाली स्थान पर अतिक्रमण रोकने के
लिए किया जा रहा है, यदि यह प्रयोग सफल रहा तो बाढ़ से हुए प्रदूषण पर भी इसके
माध्यम से निगरानी रखी जा सकती है.
3. आम जन के मध्य नदी की
महत्ता का प्रसार करने के लिए विभिन्न सांस्कृतिक गतिविधियों के जरिये जन-जागरूकता
अभियान चलाया जाना चाहिए, ताकि लोग नदी और उसकी समस्याओं को समझ सकें.
4. नदी से निकले अपशिष्टों से
रोजमर्रा के उपयोगी उत्पाद बनाए जाने की पहल प्रदेश सरकारों को करनी चाहिए, जिससे
नदी प्रदूषण पर नियंत्रण तो होगा ही, अपितु रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे.
5. राज्य सरकार को यमुना स्वच्छता अभियान
के लिए छोटी योजनाओं पर कार्य करते हुए विभिन्न पर्यावरण एनजीओ और साथ ही दिल्ली
प्रदूषण नियंत्रण समिति सदस्यों की भागीदारी में कार्य होना चाहिए.