नेशनल ग्रीन
टिब्यूनल (एनजीटी) नदियों की सफाई में लापरवाही के संबंध में कड़े फैसले ले रही
है. इसी संदर्भ में एनजीटी की विशेषज्ञ कमेटी की पड़ताल में पाया गया कि राजस्थान
के पाली में करीब 500 टेक्सटाइल
फैक्ट्रियों से निकलने वाले प्रदूषित पानी को ट्रीट करने के लिए बने कॉमन एफ्लुएंट
ट्रीटमेंट प्लांट (सीईटीपी) का काम संतोषजनक नहीं है, जिससे बांदी नदी में प्रदूषण का स्तर बढ़ता जा रहा है.
राजस्थान में बहने वाली बांदी नदी में बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए लगभग 500 स्थानीय टेक्सटाइल्स उद्योगों की निष्क्रियता
पर एनजीटी ने कठोर कार्यवाही की तथा सरकार पर 20 करोड़ का जुर्माना लगाया. इस जुर्माने को सरकार प्रदूषण
फैलाने वाले उद्योगों से वसूल करेगी.
विगत वर्ष 21 दिसंबर को एनजीटी ने पाली में प्रदूषण के आकलन
के लिए तीन सदस्यीय कमेटी का गठन किया था, जिसमें केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पूर्व सदस्य डॉ. ए बी अकोलकर,
जयपुर के प्रोफेसर एबी गुप्ता एवं बिट्स पिलानी
के प्रोफेसर अजीत प्रताप सिंह सदस्यों के रूप में सम्मिलित रहे. इस कमेटी ने
विस्तृत जांच-पड़ताल के बाद इसी वर्ष 16 जनवरी को अपनी रिपोर्ट सौंपी.
जनवरी,
2019 के अंत में जस्टिस
राघवेन्द्र एस राठौर की अध्यक्षता वाली बैच ने राजस्थान के चीफ सेक्रेटरी को एक
महीने के अंदर यह अंतरिम रकम केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में जमा करने का
आदेश दिया. यही नहीं बैच द्वारा राजस्थान सरकार और कृषि सचिव को बांदी नदी का
दूषित पानी प्रयोग करने के कारण कृषि, कृषि भूमि व किसानों को होने वाले नुकसान पर उपयुक्त मुआवजे के साथ एक महीने
के अंदर रिपोर्ट तैयार करने का भी आदेश दिया.
विज्ञान और
पर्यावरण सेंटर द्वारा वर्ष 2008 में पाली के
अंतर्गत सतही और भूगर्भीय जल पर किए गए शोध में लगभग 80 प्रतिशत जल के सैंपल पीने योग्य नहीं थे. यही नहीं बल्कि
इन सैंपल्स में उच्च क्षारीय और रासायनिक ऑक्सीजन की मांग का स्तर दिखाया गया है,
जो कार्बनिक प्रदूषकों के बेहद खतरनाक स्तर को
दर्शाता है. वहीं इनमें कुल घुलनशील ठोस की मात्रा भी मानक से चार गुना अधिक थी.
इस केस को 2012 में जोधपुर उच्च
न्यायालय से एनजीटी को स्थानांतरित कर दिया गया था.
ग्रीन पैनल ने
कहा कि,
“क्षेत्र में पानी के प्रवाह के लिए बनी नालियां या तो चोक हैं या नियमित रूप से साफ नहीं की जाती हैं. वहीं राजस्थान राज्य औद्योगिक विकास और निवेश निगम भी औद्योगिक क्षेत्र का उचित रखरखाव नहीं कर रहा है.”
यह भी पाया गया
कि क्षेत्र में बिना वायु- प्रदूषण की परवाह के जहां- तहां कूड़ा जलाया जाता है.
राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड इसे भलीभांति नियंत्रित नहीं कर पा रहा. वहीं यह
बोर्ड सीईटीपी के अनुपालन को सुनिश्चित करने तथा बांदी नदी में अपशिष्ट जल को
प्रवाहित होने से रोकने में भी असफल रहा है.
एनजीटी के अनुसार,
दूषित जल के प्रयोग से ग्रमीणों के स्वास्थ्य
पर पड़ने वाले प्रभावों, पेय जल की कमी व
कृषि को होने वाले नुकसान के संदर्भ में सरकार द्वारा न तो कोई रिपोर्ट जारी की गई,
न ही कोई ठोस कदम उठाया गया. इस पर एनजीटी ने
स्वास्थ्य सचिव को ग्रामीणों के स्वास्थ्य की स्थिति व हेल्थ चेकअप कैंप्स के
आयोजन पर एक माह के अंदर रिपोर्ट देने का आदेश दिया.
इसके अतिरिक्त
एनजीटी ने राजस्थान जल संसाधन सचिव व केंद्रीय अथवा राज्य भूगर्भीय एजेंसीज़ को
संरक्षित भूजल की स्थित व उसकी गुणवत्ता की रिपोर्ट तैयार करने का आदेश भी दिया.
जिसमें औद्योगिक व सीवेज के माध्यम से प्रदूषित हो रहे भूजल का स्पष्ट रूप से
उल्लेख करने को निर्देशित किया गया है.
साथ ही एनजीटी के
द्वारा राज्य परिवहन विभाग को आदेश दिया कि, वह बांदी नदी पर टैंकरों के माध्यम से अनाधिकृत अपशिष्टों
के निर्वहन और नियंत्रण के लिए पाली जिलों के भीतर विभिन्न चौकियों के माध्यम से
सतर्कता बरतें, जिससे कि पड़ोसी
जिलों से आने वाले अनाधिकृति टैंकरों का प्रवेश रोका जा सके.
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से भी यह सुनिश्चित करने के लिए कहा, कि किसी भी औद्योगिक और सीवेज से निकले अपशिष्ट को नदी में प्रवाहित नहीं किया जायेगा. वहीं बोर्ड को पर्यावरण को दूषित करने वालों पर कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए.