अत: STP किसी भी उपयुक्त दिशा के सेंड-बेड से जोड़ा / अवस्थित रखा जा सकता है. उदाहरण के लिये; वाराणसी के ऊत्तर, दक्षिण और पूरब में सेन्डबेड है. गंगा के किनारे के सभी शहरों के तीन भाग में बालू-क्षेत्र हैं और विदित हो कि महाकुम्भ, प्रयाग-राज के 4-5 करोड़ लोगों के मल-जल की व्यवस्था वहाँ का बालूक्षेत्र ही करता है. अत: बालूक्षेत्र का STP गंगा के प्रदूषण की समस्या का निराकरण बालू के गुण के अतिरिक्त, सौर्य-ऊर्जा का, रिक्त-स्थान के कारण वायू-ऊर्जा का, जमीन में ढ़ाल होने के कारण “हाइड्रौलिक-ग्रेडियेन्ट” का, बालू क्षेत्र के पास बेग ज्यादा होने के कारण गतिज-ऊर्जा का उपयोग एक साथ कर सकता है. इनके साथ ही यह मरूभूमि-स्थिर-क्षेत्र है, अत: STP के लिये आवासीय शहरी मूल्यवान जमीन का उपयोग नहीं होगा और शहर के लोग प्रदूषण का शिकार नहीं होंगें, जैसा कि वाराणसी में, भगवानपुर, दीनापुर आदि के लोग, चर्म-रोग और अन्य रोगों का शिकार हो रहे हैं और गोईठरवाँ और रमणा के लोग होगें.
प्रदूषण नियंत्रण की यह व्यवस्था “तीन-ढ़लान का सिद्धान्त” के नाम से जाना जाता है. महाशय वर्तमान में , वाराणसी से लगभग 450 एम.एल.डी (मिलियन ली.प्रति दिन), 4.5 क्यूबिक मी/ सें अवजल गंगा में निस्तरित होता है. इसके लिए मात्र 0.45 वर्ग कि. मी. बालू-क्षेत्र की आवश्यकता होगी. इस तरह से एक बालू-क्षेत्र की क्षमता जरूरत से 72 गुणा ज्यादा है. स्मरण रहे, जब वाराणसी में गंगाजल स्तर, आर.एल. 61. मी. से होता तो गंगा का डाइल्यूशन-फैक्टर 25000 गुणा बढ जाता है. अत: RL. 61 मी. के बाद STP की कोई आवश्यकता नहीं होती है.
गंगा संरक्षण और संवर्धन के लिए वर्षों से कार्य कर रहे प्रोफेसर उदयकांत चौधरी के गंगा लेखन कार्य को अधिक जानने हेतु दिए गए लिंक पर क्लिक करें..