मई में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने नेशनल वाटर मैनेजमेंट प्रोग्राम के अंतर्गत चौंकाने वाले आंकड़े पेश किए थे, जिनमें बताया गया था कि देश में 98 फीसदी निगरानी स्टेशनों पर भूजल में नाइट्रेट प्रदूषण की घातक उपस्थिति दर्ज की गई है, इसके अलावा भी विभिन्न शहरों से अध्ययन रिपोर्ट सामने आती रहती हैं, जो भारत में लगातार बढ़ रही जल प्रदूषण की समस्या की ओर इशारा करती हैं।
ऐसा ही एक मामला दिल्ली-एनसीआर के ग्रेटर नोएडा से जनवरी में सामने आया था, जहां लगभग 93 गांवों ने प्रदूषित भूजल की समस्या को लेकर कोर्ट के दरवाजे खटखटाए थे। हाल ही में इसी भीषण समस्या को लेकर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने ग्रेटर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण (जीएनआईडीए) को ग्रेटर नोएडा से सटे 93 गांवों में जल प्रदूषण को रोकने के लिए आवास शहरी मामलों के मंत्रालय (एमओएचयूए) के दिशानिर्देशों के अनुसार सर्वोत्तम किफायती प्रथाओं को अपनाने का निर्देश दिया है, जो व्यावहारिक रूप से शहरी क्षेत्र का हिस्सा हैं।
बेतहाशा जल प्रदूषण से जूझ रहे हैं ग्रेटर नोएडा के 93 गांव -
बदहाल सीवर व्यवस्था के चलते ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के अंतर्गत आने वाले लगभग 93 गांव जल प्रदूषण की मार झेल रहे हैं। बरसाती नालों के चोक होने के चलते इन सभी गांवों से निकलने वाला सीवेज सीधे नालियों और मैदानों में जा रहा है, जिससे इन स्थानों का भूजल बुरी तरह प्रदूषित हुआ है और लोग यही दूषित जल पीने को मजबूर हैं।
इन गांवों में नालों/नालियों में ठोस अपशिष्ट, प्लास्टिक कचरा, निर्माण कार्य से जुड़े अपशिष्ट या अन्य प्रकार के अपशिष्ट से बरसाती नालियों/नाले अवरुद्ध होने के कारण यहां सीवेज सड़कों पर फैल जाता है। इसके अतिरिक्त ग्रामीणों को अपने सीवेज/अपशिष्ट जल से भरे नालों को स्वयं साफ करने और प्रदूषित पानी पीने के लिए मजबूर किया जाता है क्योंकि इन गांवों में अधिकांश परिवार आरओ या अन्य पेयजल शुद्धिकरण प्रणालियों का खर्च नहीं उठा सकते हैं। इसी के चलते ग्रामीणों ने एनजीटी के सामने अपनी समस्या को उठाया था।
कोर्ट ने ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण को दिए आवश्यक दिशा निर्देश -
हाल ही में दिए गए एक निर्णय के तहत सार्वजनिक स्वास्थ्य के हित में, ग्रीन कोर्ट ने प्राधिकरण को इन गांवों के निवासियों को सीवेज कनेक्शन के लिए राजी किए जाने। पूरे अभ्यास को समयबद्ध तरीके से पूरा करने और व्यवस्थित तौर पर योजना को अमल में लाने की बात कही। न्यायाधिकरण ने ग्रेटर नोएडा के सीईओ को सुनवाई की अगली तारीख 14 दिसंबर को कार्रवाई रिपोर्ट के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये मौजूद रहने का निर्देश दिया।
यह गांव जूझ रहे हैं जल प्रदूषण की समस्या से -
जलालपुर, श्योराजपुर, कैलाशपुर, हबीबपुर, सत्याना, दीरीन, खोडना खुर्द, तिलाप्ता करनवास तुस्याना, देवला, सूरजपुर, मलकपुर, गुजरपुर, अचीजा, सादुल्लापुर, वैदपुरा, सुनपुरा, भोला रावल, सैनी, खीरी, भनौता, खैरपुर गुज्जर, मिलक लच्छी, पटवाडी, रोजा जलालपुर, बिसरख, ऐमनाबाद, जलपुरा, कुलेसरा, मकोडा, थाप खेड़ा, जनपथ, पल्ला, पाली, बोडाकी डेतवली, साकीपुर रायपुर बांगर, डाबरा ढ़ाबा, अजायबपुर, रीठोरी, घोरी बैचर्स, डेरी मच्चा, डेरी स्किनर, खोड़ना खुर्द, छिपायना बुजुर्ग, छिपायना खुर्द, आमका, चक्रसेनपुर, रामगढ़, लखनवली, बिरोंदी, बिरोंदा, जान सामना, बिनोली, खेड़ा धरमपुर, छपरौला, धूम मानिकपुर, खेडा धर्मपुर, इटहरा, हैबतपुर, चमड़ी मिलक, रोका युकुपुर और सादोपुर इत्यादि ग्राम जो ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण का हिस्सा हैं, गंभीर जल प्रदूषण के चलते परेशान हैं।
याचिकाकर्ताओं के वकील ने रखी व्यवस्थित सीवेज सिस्टम की मांग -
याचिकाकर्ता करमवीर सिंह और प्रदीप कुमार के वकील और वकील आकाश वशिष्ठ ने अदालत को बताया कि ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के अंतर्गत 80 गांवों के लिए मात्र 16 मल अपशिष्ट हटाने वाले बिंदु हैं, जो किसी भी तरह से पर्याप्त नहीं हैं। उन्होंने व्यवस्थित सीवेज सिस्टम की मांग रखते हुए कहा था कि ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण द्वारा 5 गांवों के समूह के लिए कम से कम एक ऐसे बिंदु पर विचार किया जाना चाहिए। वहीं उन्होंने अदालत को बताया कि इन ग्रामों में जिस प्रकार से सीवेज टैंक बनाये गए हैं, वह अवैज्ञानिक और अनुचित हैं, साथ ही सीवेज टैंकों के बोरवेल के साथ ही मौजूद होने के कारण भूजल के दूषित होने की प्रबल संभावना बनी रहती है।
तीन महीने के भीतर आवश्यक कार्यवाही करे प्राधिकरण - कोर्ट ने दिए आदेश
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि प्राकृतिक तालाबों तक सीवेज के ओवरफ्लो को रोकने के लिए उचित जल निकासी व्यवस्था सुनिश्चित करने की आवश्यकता है। गर्मीन क्षेत्रों में तालाबों, जोहड़ों इत्यादि को संरक्षित करने और प्रदूषण से मुक्त रखने की वर्तमान में बहुत अधिक जरूरत है। वहीं एनजीटी ने अपनी रिपोर्ट के जरिए जानकारी दी है कि हालांकि प्राधिकरण की ओर से सभी गांवों को आंतरिक जल निकासी प्रदान की गई है, लेकिन अभी तक मुख्य सीवर लाइन से इन्हें जोड़ा नहीं गया है।
कोर्ट ने तीन महीने के अंदर अंदर ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण को आवश्यक कार्यवाही करने के निर्देश देते हुए कहा कि क्षेत्र में मौजूदा एसटीपी की क्षमता मात्र 110-120 एमएलडी है, जबकि विभिन्न क्षेत्रोंसे आने वाला सीवेज 174 एमएलडी तक होता है। ऐसे में एसटीपी की क्षमता में सुधार होना जरूरी है। साथ ही कोर्ट ने इन ग्रामों में सभी घरों, दुकानें और व्यवसायिक प्रतिष्ठानों को सीवर से जोड़ा जाना बेहद जरूरी बताया ताकि बिछाई गई सीवर लाइन का उपयोग किया जा सके, अन्यथा यह ख़राब ही रहेगी। इसके अतिरिक्त तालाबों की मरम्मत, पेयजल गुणवत्ता में सुधार और सीवेज को खुले मैदानों, तालाबों में जाने पर रोक इत्यादि के संबंध में तीन माह के भीतर आवश्यक कार्यवाही करने संबंधी निर्देश दिए।