विगत तीन वर्षों में वाराणसी के अंतर्गत गंगा नदी के पानी की गुणवत्ता बेहद खराब हो चुकी है. वाराणसी स्थित एक गैर-सरकारी संस्था संकट मोचन फाउंडेशन द्वारा वाराणसी में तुलसी घाट पर कराए गए तुलनात्मक अध्ययन के आधार पर स्पष्ट हुआ कि गंगा जल उच्च जीवाणु प्रदूषण से ग्रस्त है और इसका मानक सीमा से काफी अधिक पाया जाना स्पष्ट करता है कि गंगा नदी का जल किस प्रकार मानवीय जीवन के साथ साथ जलीय जीवन के लिए भी खतरा बन चुका है.
गौरतलब है कि मूल रूप से वाराणसी स्थित एनजीओ संकट मोचन फाउंडेशन (एसएमएफ) वर्ष 1986 में तत्कालीन प्रधानमंत्री द्वारा गंगा स्वच्छता के लिए बनाए गए “गंगा एक्शन प्लान” के आधार पर गंगाजल की गुणवत्ता का आकलन कर रहा है. यह एनजीओ अपनी स्वयं की प्रयोगशाला में गंगा नदी के जल से लिए गए नमूनों का विशलेषण करके आंकड़े प्रस्तुत करते हैं. उन्होंने हाल ही में वर्ष 2016 एवं 2019 के आंकड़ों का परिक्षण करके नतीजे निकाले कि गंगा जल में कॉलिफोर्म बैक्टीरिया एवं जैव रासायनिक ऑक्सीजन की मांग (बीओडी) का स्तर स्वीकार्य मात्रा से काफी अधिक बढ़ा हुआ है.
एसएमएफ की गंगा लैब के अंतर्गत एकत्रित किए गए आंकड़ों में गंगा जल में फीकल बैक्टीरिया की मात्रा बेहद उच्च पाई गयी है. फीकल कोलीफार्म यानि मलजनित बैक्टीरिया के लिये 500 एमपीएन/100 एमएल का मानक तय किया गया है परन्तु संस्था द्वारा गंगाजल की जाँच हेतु लिये गए नमूनों के परिणाम में इसकी मात्रा कई गुना अधिक पाई गई है. एसएफएम द्वारा नागवा अपस्ट्रीम एवं वरुणा डाउनस्ट्रीम पर जुटाए गए आंकड़ों के आधार पर गंगाजल के लिये गए नमूनों में 'फीकल कोलीफार्म' की मात्रा घातक स्तर पर बढ़ी हुई पाई है, जिसमें ज्यादा देर तक स्नान करने से त्वचा, पेट व आँखों की गम्भीर बीमारी तक हो सकती है. इसके साथ-साथ गंगाजल में बीडीओ की मांग भी लगातार बढ़ रही है, 2016 में यह 46.5-5.4 मिलीग्राम प्रति लीटर थी, जो जनवरी 2019 में 66-78 मिलीग्राम प्रति लीटर हो गयी है. इसके अतिरिक्त पानी में ऑक्सीजन का स्तर भी घटकर 2.4 से 1.4 मिलीग्राम हो गया है, जो जलीय जीवन के लिए चिंताजनक है.
संस्था के अध्यक्ष आईआईटी-बीएचयू के प्रोफेसर वीएन मिश्रा के अनुसार,
गंगा जल में फीकल बैक्टीरिया का भारी मात्रा में होना मानवीय स्वास्थ्य के लिए खतरे का सूचक है.
नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा के तहत प्रारंभ की गयी नमामि गंगे परियोजना केंद्रीय सरकार की सबसे बड़ी योजनाओं में से एक थी, जिसके अंतर्गत गंगा नदी को प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए 452.24 करोड़ का अनुमानित बजट रखा गया था. साथ ही गंगा को पूर्णरूपेण स्वच्छ बनाने के लिए वर्ष 2018 तक का समय निर्धारित किया गया था, परन्तु जिस प्रकार गंगा प्रदूषण से जुड़ी रिपोर्ट्स सामने आ रही है, उससे स्पष्ट होता है कि सरकार की यह बहुचर्चित परियोजना भी गंगा को अविरल बनाने में कोई खास सहायता नहीं कर पाई.
फीकल कोलीफोर्म के अधिकतम स्तर के कारण पानी में ऑक्सीजन की कमी भी निरंतर बढ़ रही है, जिससे जलीय जीवन के लिए भी खतरा उत्पन्न हो गया है. फीकल कोलीफोर्म अक्सर जीवाश्मों के मृत्त शरीर में पाया जाता है, जिससे साफ़ होता है कि पानी की खराब गुणवत्ता के चलते जलीय जंतु मर रहे हैं. पर्यावरण वैज्ञानिक और बीएचयू के पूर्व प्रोफेसर बी डी त्रिपाठी के अनुसार,
“कोलीफॉर्म बैक्टीरिया की प्रजाति मल प्रदूषण और रोग पैदा करने वाले रोगजनकों की संभावित उपस्थिति दर्शाती है, जो मानव जीवन के लिए काफी खतरनाक हो सकते हैं.”