पतित पावनी गंगा नदी जिसकी मां के रूप में पूजा की जाती है, देवी के रूप में आरती की जाती है, एक ऐसी नदी है जिसकी धाराओं को शब्दों में नहीं बांधा जा सकता. एक ऐसी नदी जो हजारों वर्षों से भारत की धरती पर बहती आ रही है. एक ऐसी नदी जिसमें स्नान मात्र शरीर के रोग दूर हो जाते हैं. जिसमें एक डुबकी लगा लेने से सारे पाप धुल जाते हैं और मोक्ष के द्वार खुल जाते हैं. एक ऐसी नदी जिसके इतिहास को कुरेदते हुए में आप जितनी गहराई में जाएंगे, इसके दैवीय और चमत्कारिक स्वरूप में उतना ही डूबते चले जाएंगे. ये नदी जिस स्थान से भी होकर गुजरती है, वह तीर्थ बन जाता है और नदी का जल जिस वस्तु पर भी पड़ता है, वह पवित्र हो जाती है.
ऐसी दिव्य, दैवीय, जीवन और मोक्षदायिनी नदी के बारे में विस्तृत जानकारी इस प्रकार है -
संक्षिप्त परिचय –
भारत में बहने वाली सबसे लम्बी नदी के रूप में जाने जानी वाली पवित्र गंगा नदी देश की प्रमुख ऐतिहासिक नदी है. भागीरथी के नाम से प्रसिद्ध इस नदी का उद्गम दक्षिणी हिमालय के गोमुख से माना जाता है. जहां से निकलकर देश के विभिन्न राज्यों से होते हुए 2,525 कि.मी. का सफर तय करते हुए गंगा नदी बंगाल की खाड़ी में जाकर समुद्र में मिल जाती है. जल के रूप में जीवन प्रवाहित करने वाली गंगा नदी की उपस्थिति हर प्रकार से भारत की धरती को सुखद व समृद्ध बनाती है. भारत देश को अपने आंचल में पालने- पोषने (सिंचित करने वाली) इस नदी को यहां के लोगों द्वारा ‘गंगा मैया’ कहकर संबोधित किया जाता है.
ऐतिहासिक महत्व –
एक ऐसी नदी जिसके सामने विज्ञान भी निरूत्तर दिखाई देता है, इसका वर्तमान जितना व्यापक है, इतिहास भी उतना ही गूढ़ व अद्भुत है. हिन्दुओं के चारों वेदों ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद व अर्थववेद में इस नदी की महिमा व महत्व का वर्णन किया गया है. नदी की उत्पत्ति को लेकर कई कथाएं व मान्यताएं प्रचलित हैं, जिनके आधार पर माना जाता है कि गंगा नदी का जन्म पृथ्वी पर नहीं हुआ है, बल्कि इसे स्वर्ग से पृथ्वी पर लाया गया है.
इनमें से ही एक कथा के अनुसार, प्राचीन काल में राजा सागर ने अश्वमेघ यज्ञ किया था. इस दौरान देवराज इन्द्र ने अपना सिंहासन खोने के डर से उनके घोड़े को पकड़कर कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया था. घोड़े को ढूंढ़ते हुए राजा सागर के साठ हजार पुत्र कपिल मुनि के आश्रम पहुंचे तथा मुनि पर घोड़ा बांधने का आरोप लगाया. अपने तप में खलल और मिथ्या आरोपों के क्रोधित होकर कपिल मुनि ने राजा के साठ हजार पुत्रों को भस्म होने का श्राप दे डाला.
कहा जाता है कि उसी कुल में जन्में राजा भागीरथ ने अपने पूर्वजों की आत्मा को शांति दिलाने के लिए भगवान विष्णु की तपस्या की और उनसे गंगा को धरती पर अवतरित करने की विनती की. किन्तु गंगा का स्वरूप इतना विकराल था, कि इसके अवतरण से पृथ्वी को खतरा हो सकता था. अतः भगवान विष्णु से भगवान शिव से गंगा नदी के प्रवाह को नियंत्रित करने की प्रार्थना की. इसके बाद भगवान शिव ने गंगा को अपनी जटाओं में समाहित कर लिया और एक पतली सी धारा को धरती पर अवतरित किया. अतः धरती पर प्रवाहित होने वाली गंगा नदी संपूर्ण नहीं बल्कि नदी की महज़ एक धारा है.
दूसरी मान्यता के अनुसार, जब भगवान विष्णु राजा बलि की वामन अवतार में परीक्षा लेने पहुंचे थे, तो उन्होंने अपना एक पांव आकाश में रखा था, तब ब्रह्मा जी ने उनके चरण को जिस जल से धुला था और उसे अपने कमंडल में भर लिया था. इसी जल को गंगा नदी के रूप में पृथ्वी पर अवतरित किया गया. इन दोनों कथाओं के आधार पर ही गंगा को क्रमशः भागीरथी व ब्रह्मपुत्री कहा जाता है. यही कारण से कि गंगा नदी प्राचीनकाल से ही अत्यन्त पवित्र व पूजनीय मानी जाती रही है.
गंगा की यात्रा –
गंगोत्री से गंगासागर तक के सफर में गंगा नदी भारत के कई राज्यों और जिलों से होकर गुजरती है. अनुमान के मुताबिक यह नदी देश के लगभग एक चौथाई भूभाग में प्रवाहित होती है, करीब 350 मिलियन लोग नदी के तट पर निवास करते हैं तथा देश की आधी से भी अधिक जनसंख्या प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से नदी पर आश्रित है. देश के कुछ प्रमुख क्षेत्र जहां मोक्षदायिनी जीवन के रूप में अपना अमृतरूपी जल प्रवाहित करती है, इस प्रकार हैं -
उत्तराखंड से अपना सफर शुरू करने के बाद ऋषिकेश, हरिद्वार से होते हुए गंगा नदी उत्तर- प्रदेश राज्य में प्रवेश करती है. उत्तराखण्ड में अपने उद्गम से लेकर उ.प्र. में प्रवेश करने तक यह नदी 110 कि.मी. का सफर तय करती है. इसके बाद यह उ.प्र. के बड़े भूभाग में बहते हुए यह नदी सूबे में अपनी 1,450 कि.मी. की यात्रा के दौरान कन्नौज, कानपुर, वाराणसी, बदायूं आदि जिलों से होकर गुजरती है. वहीं प्रयागराज में गंगा नदी यमुना और सरस्वती नदी (अदृश्य) में जाकर समाहित हो जाती है, जहां इन तीनों नदियों का संगम होता है, उस स्थान तो त्रिवेणी नाम से जानते हैं.
उत्तर- प्रदेश के बड़े हिस्से को हरित करने वाली गंगा नदी यहां से बिहार राज्य की ओर प्रवाहित होती है, जहां मुख्य रूप से पटना, बक्सर, हाजीपुर, मुंगेर आदि जिलों के 445 कि.मी. क्षेत्र में बहते हुए गंगा नदी झारखंड राज्य की ओर मुड़ जाती है. झारखंड से यह नदी अपने आखिरी पड़ाव की ओर अपना सफर तय करती है और विभिन्न क्षेत्रों में प्रवाहित होते हुए पश्चिम बंगाल में प्रवेश करती है. यहां प्लासी, मुर्शिदाबाद, नबाद्वीप आदि क्षेत्रों को अपने प्रवाह से पवित्र कर राज्य में 520 कि.मी. का सफर तय करते हुए अन्त में गंगा नदी बंगाल की खाड़ी में समुद्र में जाकर मिल जाती है. जिस स्थान पर गंगा नदी सागर में समाहित होती है, उसे ‘गंगा सागर’ कहते हैं, जो कि हिन्दुओं के प्रमुख तीर्थों में से एक है.
सहायक नदियां –
अपने सैकड़ो कि.मी. के सफर में गंगा नदी अकेले नहीं बहती, बल्कि इसके साथ प्रवाहित होती हैं, अनेकों संस्कृतियां, सभ्यताएं और कई छोटी- छोटी नदियां. गंगा नदी की यात्रा में विभिन्न जिलों में बहने वाली अनेकों नदियां इस नदी में आकर विलीन हो जाती हैं, इन नदियों को गंगा की सहायक नदियां कहा जाता है.
गंगा नदी गंगोत्री से उद्गमित होने के बाद भागीरथी नाम से जानी जाती है तथा देवप्रयाग में जब अलकनंदा नदी से इसका संगम होता है, वहां से गंगा की वास्तविक धारा और यात्रा की शुरूआत होती है. इसकी सहायक नदियां दो दिशाओं उत्तर व दक्षिण से आकर नदी में समाहित होती हैं. उत्तर दिशा से गंगा नदी में आकर मिलने वाली प्रमुख नदियां यमुना (प्रयागराज), घाघरा (बलिया), रामगंगा (कन्नौज), ताप्ती, गंडक (सोनपुर), कोसी व महानंदा हैं. वहीं दक्षिण के पठार से सोन (पटना), केन, बेतवा, चंबल आदि नदियां गंगा नदी में आकर मिलती हैं. चंबल (इटावा), बेतवा (भोपाल), केन व शारदा (सरयू) नदी प्रमुख रूप से यमुना की सहायक नदियां हैं, जो कि यमुना के माध्यम से प्रयागराज में गंगा में आकर मिलती हैं.
संकट में जीवनदायिनी का जीवन -
वह नदी जिसे भारत की जीवनरेखा और भारतीय अर्थव्यवस्था का मेरूदण्ड कहा जाता है, आज उसका स्वयं का जीवन खतरे में नज़र आ रहा है. वह नदी जिसमें स्नान से लोग अपने शरीर लेकर अपनी अंतरात्मा तक को स्वच्छ करते थे, आज उसी के जल को स्वच्छ करने के लिए विभिन्न अभियान व कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं. गंगा नदी आज प्रदूषण का जो दंश झेल रही है, उसने उसकी प्राचीन अस्मिता और गौरवमयी अस्तित्व को संकट में धकेल दिया है.
जिस नदी का जल लोग अपने घरों में यह मानकर संजों कर रखते हैं, कि इसके स्पर्श मात्र से ही मनुष्य व वस्तुएं पवित्र हो जाती हैं. जिस नदी का जल वर्षों तक अलग रखने पर भी खराब नहीं होता, वह जल आज पीने तो दूर स्नान करने योग्य भी नहीं रह गया. और इसका प्रमुख कारण है मानवीय लालसा और लापरवाही, जिसके तहत अपने घरों से लेकर उद्योगों, फैक्ट्रियों, नालों आदि तक का गंदा जल इस नदी में प्रवाहित किया गया, जिसने गंगा के जीवनदायिनी जल को जहरीला बना दिया. 2007 के एक सर्वे में इस नदी को सबसे प्रदूषित पांच नदियों की सूची में शामिल किया गया था.
चिंतनीय है कि जब तक नदी में विष घोला जाता रहा, तब तक सरकारों तथा प्रशासन ने भी इस ओर ध्यान नहीं दिया, लेकिन अब जब लोगों को स्वयं अपने द्वारा विषाक्त किया जल पीना पड़ रहा है, तो सरकारों से स्वच्छता की गुहार लगा रहे हैं. नदी का स्वच्छ, निर्मल व पारदर्शी जल जब काला पड़ने लगा, तो प्रशासन व सरकार की भी नींद टूटी और शुरू हो गया लाखों के स्वच्छता अभियानों और करोड़ों की परियोजनाओं का दौर. अभी गंगा की सफाई को लेकर ‘स्वच्छ गंगा मिशन’ व ‘नमामि गंगे’ जैसी कई बड़ी परियोजनाएं चल रही हैं. एनजीटी (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल, सीपीसीबी (केन्द्रीय प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड) से लेकर सुप्रीम कोर्ट तथा केन्द्र व राज्य सरकारों तक सभी नदी के प्रदूषण को लेकर सख्त हैं, बावजूद इसके स्थितियों में कुछ विशेष परिवर्तन देखने को नहीं मिल रहा और कई जिलों व क्षेत्रों में नदी के आस- पास गंदगी व प्रदूषण अभी भी विद्यमान है.