कई वर्षों से सूखे की मार झेल रहे बुंदेलखंड जिले में इस वर्ष भी सूखे का प्रकोप बरकरार है. मध्य- प्रदेश के इस जिले में पिछली वर्ष की तरह इस वर्ष भी बारिश मेहरबान नहीं हो रही है. वहीं तापमान भी जमकर कहर बरपा रहा है, जिससे जिले के भूजल व जलाशयों में जल का स्तर काफी नीचे चला गया है. ज्यादातर जलस्त्रोतों का जल पूरी तरह से सूख चुका है, तो कुछ में बस नाममात्र का बचा है. गर्मी की प्यास और पानी की आस लोगों को कई किलोमीटर तक ले जाती है, बावजूद इसके जिले में हर दिन हजारों की संख्या में लोग प्यासे रह जाते हैं.
केन नदी, जो बाँदा के निवासियों के लिए पेयजल का एकमात्र
स्त्रोत थी, वह भी प्रशासनिक
लापरवाही और अवैध खनन की बलि चढ़ते हुए लगभग तीन किलोमीटर के दायरे में पूरी तरह
सूख चुकी है, परिणामस्वरुप
स्थानीय निवासियों के पास टैंकरों की मनमानी झेलने के अतिरिक्त पेयजल के लिए कोई
अन्य विकल्प नहीं बचा है. केन नदी के सूखने से शहर की 75 प्रतिशत जलापूर्ति ठप्प हो गयी, किन्तु बड़े अधिकारी इस पर मौन साधे हुए हैं.
जैसे- जैसे बुंदेलखंड
में जलसंकट गहरा रहा है, वैसे- वैसे सूखे
की आशंका भी बढ़ती जा रही है. आलम यह है कि जिले की नदियों व नहरों पर पुलिस पहरा
दे रही है, जिससे जल के अवैध खनन
करने वालों से पानी को सुरक्षित रखा जा सके और व्यवस्थित रूप से लोगों तक जल
पहुंचाया जा सके. पानी पर पुलिस का पहरा अपने आप में ही जिले की बदहाली की कई
कहानियां गढ़ रहा है.
खेतों के लिए
जितना जरूरी हल होता है, उससे भी ज्यादा
आवश्यक जल होता है. लेकिन बुंदेलखंड में खेत तो छोड़िए, इंसानों को एक बूंद पानी नहीं नसीब हो रहा. ऐसे में
ग्रामीणों के पास पलायन के अलावा और कोई रास्ता शेष नहीं रह जाता.
जलसंकट से जिले
के दमोह, पन्ना व छतरपुर क्षेत्र
के गांव ज्यादा प्रभावित हैं. इन जिलों के अंतर्गत आने वाले सैकड़ों गांवों से
प्रतिदिन हजारों ग्रामीण पलायन को मजबूर हैं. कई गांवों की 50 प्रतिशत तो कई की 80 प्रतिशत आबादी तक पलायन कर चुकी है. ऐसे में यह चिंता का
विषय है जो किसान सालभर अपने खेतों पर ही निर्भर रहता हो, बिना पानी और खेती के उसका गुजारा कैसे होगा?
साल दर साल भयावह जलसंकट का सामना करने वाले बुंदेलखंड को अब बस अच्छे मानसून से ही उम्मीद हैं, हालांकि जिले को अभी तक किसी प्रकार की राहत मिलती नहीं दिख रही.