उत्तर-भारत का राज्य बिहार, जहां कोसी नदी हर वर्ष भयंकर बाढ़ लेकर आती है, वहां प्रति वर्ष राज्य को सूखे का भी सामना करना पड़ता है और यह परिस्थिति हर वर्ष बद से बदतर होती जा रही है. मौसम में लगातार आ रहे परिवर्तन, वर्षा संरचना में बदलाव और ग्लोबल वार्मिंग के चलते देश के लगभग सभी राज्य पानी की कमी से जूझ रहे हैं. बिहार जहां पिछले वर्ष 206 प्रखंडों को सूखा घोषित किया गया था, इस वर्ष यह आंकड़ा बढ़कर 280 हो गया है.
वर्तमान में एक भयानक दौर से गुजर रहा बिहार एक तरफ चमकी
बुखार (एक्यूट इंसेफलाइटिस सिंड्रोम) जैसी महामारी की चपेट में है, तो दूसरी ओर
सूबे में लू के प्रकोप से भी कई लोगों की जानें चली गईं और उस पर जलसंकट भी इस
वर्ष बिहार में जमकर कहर बरपा रहा है. राज्य भीषण जलसंकट से जूझ रहा है, गर्मी व प्यास से
लोग बेहाल हैं, किसान व खेत
बदहाल हैं, नदियां, नहरें सूख चुके
हैं, जलाशयों में जल
की चंद बूंदें खोजना भी मुश्किल हो चला है, और स्थिति दिन- प्रतिदिन नाजुक होती जा रही है.
राज्य में जलसंकट शहरों में पानी की किल्लत और गांवों में
फसलों, पशुधन और जीविका पर प्रहार कर रहा है. बिहार की बदहाली का आलम यह है कि
राज्य के 25 जिलों के 280 विकास खंडों को
सूखाग्रस्त घोषित किया जा चुका है. गौरतलब है कि बिहार के कुल 38 जिलों में 540 प्रखंड सम्मिलित हैं, यानि संक्षेप में कहा जाए तो आधे से अधिक ब्लॉक्स इस समय सूखाग्रसित हैं. इस सूखे का प्रत्यक्ष प्रभाव लोगों की जीविका पर पड़ता दिख रहा है, ग्रामीण इलाकों में चावल, गेंहू, बाजरा इत्यादि के उत्पादन में प्रतिवर्ष कमी आती जा रही है. मसलन चावल का उत्पादन वर्ष 2016-17 में जहां 82.39 लाख टन था, वह वर्ष 2018-19 में घटकर 74.16 रह गया है. कई इलाके सूखे की कगार पर खड़े हैं, जिनमें
जमुई, वैशाली, मुजफ्फरनगर, नवादा और
समस्तीपुर के हालात ज्यादा गंभीर हैं. नल, कुएं, जलाशय, तालाब आदि पूरी तरह सूख
चुके हैं. पानी के नाम पर पूरे राज्य में सिर्फ मिट्टी और रेत ही दिखाई पड़ रही
है.
बिहार की आमजनता से लेकर पशु- पक्षी सब बुरी तरह परेशान है.
लोग लोटे भर पानी के लिए घंटों कतार में खड़े हो रहे हैं. प्यासा बिहार सड़कों पर
है, जनजीवन पूरी तरह
त्रस्त है, लेकिन प्रशासन अपने
एयर कंडीशनर कार्यालयों में कागजी कार्रवाई, योजनाएं बनाने और अध्ययन करने की
बातों तक ही सीमित नज़र आ रहा है.
हालांकि राज्य के मुख्य सचिव ने सभी जिलों के डीएम को
टैंकरों के जरिए प्रतिदिन के हिसाब से पर्याप्त जल की आपूर्ति करने के निर्देश दिए
हैं. बावजूद इसके राज्य के कई गांव ऐसे हैं, जहां बूंद भर पानी के लिए लोगों को कई कि.मी. का सफर तय
करना पड़ रहा है. इसके अलावा कुछ दिन पहले ही प्रशासन का ध्यान नल जल योजना के तहत
हो रही लापरवाही पर गया है,
जिसके बाद
प्रशासन ने योजना की गति बढ़ाने का आदेश दिया है.
किन्तु सवाल यह है कि अभी तक प्रशासन की यह सक्रियता कहां थी. सरकार व प्रशासन के सभी अधिकारियों को जब यह पता था कि बिहार में हर वर्ष जलसंकट की समस्या उत्पन्न होती है और इस वर्ष भी ऐसा हो सकता है, तो प्रशासन की तरफ से पहले से ही पुख्ता इंतजाम क्यों नहीं किए गए? किसी भी कार्रवाई के लिए बिहार सरकार अब तक सूखे का इंतजार क्यों कर रही थी?