प्रदूषित जल वर्तमान में जीवित प्राणियों के अस्तित्व को खतरे में डालकर एक गंभीर वैश्विक समस्या के रूप में उभरकर सामने आ रहा है. स्वच्छ जलापूर्ति से जुड़ी समस्याएं लोगों की जीवन दर को बुरी तरह प्रभावित कर रही है. हमारे देश के अधिकांश हिस्सों में भूजल निर्भरता का प्रमुख स्रोत है, जो गुणवत्ता की बाधाओं का शिकार है. जल प्रदूषण ना केवल अधिकतर जल पादपों और जीवों को प्रभावित करता है अपितु संपूर्ण जैविक तंत्र के लिए विनाशकारी होता है. इंडिया साइंस वायर की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय और ब्रिटिश वैज्ञानिकों द्वारा किया गया यह शोध बताता है कि भूजल में नाइट्रेट, क्लोराइड, फ्लोराइड, आर्सेनिक, सीसा, सेलेनियम और यूरेनियम जैसे हानिकारक तत्वों की मात्रा लगातार बढ़ती जा रही है. यही नहीं, इसमें विद्युत चालकता और लवणता का स्तर भी अधिक पाया गया है. शोधकर्ताओं के अनुसार भूजल में सेलेनियम की मात्रा 10-40 माइक्रोग्राम प्रति लीटर और मॉलिब्डेनम की मात्रा 10-20 माइक्रोग्राम प्रति लीटर पाई गई है. इसके अलावा इसमें लगभग 0.9-70 माइक्रोग्राम प्रति लीटर यूरेनियम की सांद्रता होने का भी पता चला है.
आर्सेनिक क्या है और यह किस
प्रकार मानव शरीर के लिए विषैला है –
आर्सेनिक पृथ्वी की परत का एक प्राकृतिक घटक है, जो सम्पूर्ण वातावरण में वायु, जल और भूमि में व्यापक रूप से पाया जाता है. यह अपने अकार्बनिक रूप में सर्वाधिक जहरीला है और अधिकतर लोगों को दूषित पानी पीने के माध्यम से यह मानव शरीर में फैलता है. यहां तक कि भोजन बनाने में दूषित जल के प्रयोग से, खाद्य फसलों की सिंचाई, औद्योगिक प्रक्रियाओं, दूषित भोजन खाने और धूम्रपान से भी इसके घातक परिणाम देखे गये हैं.
मुख्य रूप से पेयजल और भोजन के माध्यम से
अकार्बनिक आर्सेनिक के दीर्घकालिक परिणाम देखे गये हैं. आर्सेनिक से सार्वजनिक
स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़ा खतरा प्रदूषित भूजल से ही है, अकार्बनिक आर्सेनिक स्वाभाविक रूप से अर्जेंटीना, बांग्लादेश, चिली, चीन, भारत, मेक्सिको और संयुक्त राज्य अमेरिका सहित कई देशों के भूजल में
उच्च स्तर पर मौजूद है. इन सभी
देशों में भी पेयजल, दूषित जल
के साथ सिंचित फसलों और प्रदूषित पानी के साथ तैयार भोजन इसके एक्सपोजर के प्रमुख
स्रोत हैं. इसके अतिरिक्त मछली, मांस, डेयरी उत्पाद और अनाज आदि आहार भी इसके स्रोत हो
सकते हैं.
तीव्र आर्सेनिक विषाक्तता के तत्काल लक्षणों में उल्टी, पेट दर्द और दस्त शामिल हैं. समय रहते उपचार ना लेने पर इससे मांसपेशी क्रैम्पिंग और मृत्यु तक हो सकती है.
आर्सेनिक के दीर्घकालिक परिणाम -
अकार्बनिक आर्सेनिक के उच्च स्तर (उदाहरण के लिए, पीने के पानी और भोजन के माध्यम से) के दीर्घकालिक परिणामों के पहले लक्षण आमतौर पर त्वचा सम्बन्धी रोगों के रूप में देखे जा सकते हैं इसमें पिग्मेंटेशन परिवर्तन, त्वचा घाव और पैरों के तलवों पर कठोर पैच शामिल होते हैं, जिन्हें हाइपरकेराटोसिस के नाम से जाना जाता है. ये लगभग पांच वर्षों तक आर्सेनिक के संपर्क में रहने के बाद होते हैं और त्वचा कैंसर के प्राथमिक लक्षणों में गिने जा सकते हैं.
त्वचा के कैंसर के अलावा, आर्सेनिक के दीर्घकालिक नतीजों में मूत्राशय और फेफड़ों के कैंसर प्रमुख है. अंतर्राष्ट्रीय एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर (आईएआरसी) ने आर्सेनिक और आर्सेनिक यौगिकों को मनुष्यों के लिए कैंसरजन्य के रूप में वर्गीकृत किया है और यह भी कहा है कि पेयजल में आर्सेनिक मनुष्यों के लिए खतरनाक रूप से कैंसरजन्य है.
अन्य प्रतिकूल स्वास्थ्य प्रभाव जो अकार्बनिक आर्सेनिक के दीर्घकालिक अंतग्रहण से जुड़े हो सकते हैं, उनमें विकास संबंधी प्रभाव, मधुमेह, हृदय रोग इत्यादि शामिल हैं. आर्सेनिक विशेष रूप से मृत्यु दर बढ़ने का एक महत्वपूर्ण कारण हो सकता है. चीन (ताइवान प्रांत) में, आर्सेनिक एक्सपोजर को "ब्लैकफुट बीमारी" से जोड़ा गया है, जो रक्त वाहिकाओं की गंभीर बीमारी है और गैंग्रीन रोग की शुरुआत मानी जाती है.
बाल स्वास्थ्य पर प्रभाव के साथ आर्सेनिक गर्भस्थ
शिशु पर प्रतिकूल परिणामों और शिशु मृत्यु दर से भी जुड़ा हुआ है. देखा गया है कि
गर्भाशय में एवं बचपन में आर्सेनिक के एक्सपोजर से युवा वयस्कों में विभिन्न
प्रकार के कैंसर, फेफड़ों
की बीमारियां, दिल का
दौरा तथा गुर्दों संबंधी विकार के कारण मृत्यु दर में इज़ाफा हुआ है. कई अध्ययनों
में आर्सेनिक एक्सपोजर के दुष्परिणाम संज्ञानात्मक विकास, बौधिक क्षमता और स्मृति पर भी देखा गया है.
मई, 2018 में भारत के पेयजल एवं स्वच्छता
मंत्रालय द्वारा जारी एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार भारत की 1.47 करोड़ जनसंख्या आर्सेनिक युक्त पेयजल के कारण स्वास्थ्य
समस्याओं से जूझ रही है. देश
के 16,889 हिस्सों में पेयजल में आर्सेनिक की मात्रा मानक सीमा से काफी अधिक पायी
गयी है.
बलिया जिले में भूजल के अंतर्गत आर्सेनिक संबंधी अध्ययन रिपोर्ट –
बलिया जिला उत्तर प्रदेश राज्य का पूर्वी हिस्सा है, यह गंगा और घाघरा नदी के दोआब में स्थित केंद्रीय गंगा जलोढ़ मैदान में है. प्रशासनिक क्रियान्वन के लिए जिले को सत्रह ब्लॉक और छह तहसीलों में बांटा गया है. जिले का कुल भौगोलिक क्षेत्र 3168 वर्ग किमी है एवं औसत वार्षिक वर्षा 947 मिमी है.
विभिन्न अवलोकनों से यह ज्ञात हुआ है कि गंगा और घाघरा नदियों के नवजलोढ़
क्षेत्रों के अंतर्गत भूजल में आर्सेनिक (>
50 पीपीबी)
की उच्च सांद्रता पाई गयी है. जिले के राजपुर इकौना, चेन
छपरा, तिवारी तोला, सुघर छपरा, चौबे छपरा आदि ग्राम आर्सेनिकोसिस के
विभिन्न चरणों से पीड़ित हैं. यहां अधिकतर ग्रामों में लोग पीने के पानी के लिए
हैंडपंप पर निर्भर हैं. भूजल
में आर्सेनिक के कारण स्वास्थ्य के खतरे को नियंत्रित करने के लिए केंद्रीय भूजल
बोर्ड उत्तरी क्षेत्र ने वर्ष 2005 में
क्षेत्र में विभिन्न जलभृत उपागमों के अंतर्गत आर्सेनिक के क्षैतिज और लंबवत वितरण
से जुड़े अध्ययन में तेजी लाने के लिए, शुद्ध पेयजल की उपलब्धता बढ़ाने के लिए तथा अन्वेषण
कार्यक्रम प्रारंभ किया.
भूजल में आर्सेनिक की उपस्थिति और विस्तार -
सितंबर 2004 में, बलिया जिले के राजपुर इकौना, चेन छपरा, रामगढ़ ढला, सुघर छपरा गांवों में ग्रामीणों के शरीर में उच्च आर्सेनिक लक्षणों की उपस्थिति दर्ज की गई है. राजपुर इकौना गांव के श्री दीना नाथ सिंह की ब्लड सैंपल रिपोर्ट में आर्सेनिक की मात्रा 34.4 प्रति अरब (पीपीबी) पाई गयी, जबकि अनुमत आर्सेनिक सीमा केवल 1.4 पीपीबी है. ब्लड में इतनी उच्च मात्रा में आर्सेनिक की सांद्रता केवल दीर्घकालिक आर्सेनिक संपर्क से ही संभव है.
सितंबर
2004 में, पानी के अलग अलग नमूने विभिन्न जल संरचनाओं से एकत्रित किए गए थे, जिनमें बोरवेल, हैंडपंप, राज्य एवं सीजीडब्लूबी
संदर्भित टयूबवेल तथा गंगा नदी से लिए गये जल सैंपल प्रमुख थे. जिनका विशलेषण एनआर, सीजीडब्ल्यूबी लखनऊ
प्रयोगशाला में किया गया. 144 नमूनों में से 65 में 50 पीपीबी से अधिक आर्सेनिक सांद्रता
पाई गयी. सीजीडब्ल्यूबी के सभी तीन मौजूदा ट्यूबवेल में से किसी में भी आर्सेनिक सांद्रता
की सूचना नहीं मिली तथा आर्सेनिक की अधिकतम घुलनशीलता हैंडपंपों (गहराई रेंज 27-66
एमबीजीएल) से रिपोर्ट की गयी. सभी आर्सेनिक प्रभावित हैंडपंप बेल्हारी, बरिया दुभड, मुरली छपरा, रीटी, सोहायन, मणियार और सिआर ब्लॉक के नवजलोढ़ में उपस्थित
मिले. अत्यधिक आर्सेनिक प्रभावित गांव राजपुर इकौना, चेन
छपरा, तिवारी तोला, चौबे छपरा (बेल्हारी ब्लॉक) और सुघर छपरा, रामगढ़ (बैरिया ब्लॉक) प्रमुख रहे एवं चौबे
छपरा ग्राम में अधिकतम आर्सेनिक सांद्रता 1310 पीपीबी पाई गयी.
पूर्व में
पेयजल के लिए आर्सेनिक की अधिकतम स्वीकार्य सीमा 50 पीपीबी थी, जिसे विश्व
स्वास्थ्य संगठन द्वारा पेयजल के उद्देश्य से 10 पीपीबी तक घटा दिया
गया है.
आर्सेनिक के संयोजन सम्बन्धी मुख्य सिद्धांत –
भारत तथा विदेशों में, विशेषकर पश्चिम बंगाल एवं बांग्लादेश के विभिन्न भागों में आर्सेनिक की उपस्थिति व विभाजन के आधार पर भूजल के संयोजन के संबंध में कुछ प्रमुख सिद्धांत इस प्रकार हैं :-
लौह ऑक्सीहाइड्रोक्साइड (FeOOH) का अपरिवर्तनीय विघटन और भूजल के लिए सोखे जा सकने युक्त आर्सेनिक का निस्तारण (भट्टाचार्या एवं अन्य 1997, निकसन 1998, 2000, 2005)
आर्सेनिक स्वाभाविक रूप से हिमालय नदी प्रणाली द्वारा अपवाहित किया गया था और लोहा व मैंगनीज हाइड्रॉक्साइड के महीन अणुओं द्वारा सोख लिया गया था. इस प्रकार ये बाढ़कृत मैदानों में जमा हुए और अवसादों के तलछट ढेर में गहन परतों के रूप में संगृहीत कर दिए गये.
अवसादी तलछट की स्वाभाविक घटना के कारण कार्बनिक कार्बन के माइक्रोबियल ऑक्सीकरण ने भूजल में विघटित ऑक्सीजन को कम कर दिया, जिससे एक प्रकार का प्रभावशाली अपचायक वातावरण निर्मित हुआ.
आर्सेनिकल पाइराइट का ऑक्सीकरण
(आचार्य एवं अन्य, 1997)
आर्सेनिक को जलीय तलछट में आर्सेनिकल पाइराइट के ऑक्सीकरण द्वारा निस्तारित किया जाता है, इसी कारण पंपिंग जलावतलन वायुमंडलीय ऑक्सीजन को जलभृत में दखलंदाजी के लिए वाहक का कार्य करता है.
मानसून के
दौरान भूजल रिचार्ज के कारण पानी के स्तर में बढ़ोतरी होती है, जिससे आर्सेनिक तलछट
से बाहर निकल जलभृत के रूप में घुलकर बह निकलता है.
आयन
(प्रतिस्पर्धी) उर्वरक से फॉस्फेट के साथ अवशोषित आर्सेनिक का विनिमय (आचार्य एवं
अन्य, 1997)
जलीय खनिजों से जुड़े आर्सेनिक आयनों को उर्वरक के उपयोग से प्राप्त फॉस्फेट आयन के प्रतिस्पर्धी विनिमय द्वारा विलयन में विस्थापित किया जाता है.
सिंचाई के
लिए भूजल निकालने से तथा सतही एक्वाइफर्स में प्राकृतिक कार्बनिक पदार्थ के क्षय
से उर्वरक में फॉस्फेट का संयोजन हो जाता है.
भूजल के
नमूनों के विश्लेषण के आधार पर यह सुझाव दिया जाता है कि अध्ययन क्षेत्र में अपचायक
वातावरण में आर्सेनिक निस्तारित किया जाता है. (चौहान एवं अन्य, 2009)
आर्सेनिक के प्रभावों को न्यून किये जाने सम्बन्धी उपचारात्मक साधन –
आर्सेनिक मानव शरीर के लिए विषकर है, इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं है. वर्तमान में इस दिशा में सुधार के लिए व्यापक स्तर पर प्रयास करने की आवश्यकता है. बलिया जिले में आर्सेनिक की अतिशयता को लेकर सरकार द्वारा बहुत से वैज्ञानिक उपायों की रुपरेखा ना केवल तैयार की गयी, अपितु उनपर कार्य भी किया गया. देश के अन्य भू-भागों में भी इसी प्रकार के अग्रलिखित प्रयासों की त्वरित आवश्यकता है :-
A.) आर्सेनिक बहुल स्थानों की पहचान एवं विशलेषण :
बलिया जिले में भूजल में आर्सेनिक प्रदूषण की समस्या को तत्काल संबोधित किया जाना चाहिए. पहला और सर्वप्रमुख कार्य उन गांवों की पहचान करना है, जहां आर्सेनिक सांद्रता बीआईएस (आईएस 10500- 91) द्वारा परिभाषित अधिकतम स्वीकार्य सीमा से ऊपर है. आर्सेनिक फील्ड-परीक्षण किट इन क्षेत्रों में विस्तृत जांच शुरू करने के लिए एक बहुत ही उपयोगी साधन साबित हो सकती है. सीजीडब्लूबी और जल निगम, उत्तर प्रदेश सरकार विभाग फील्ड किट द्वारा आर्सेनिक के स्पॉट विश्लेषण कर रहे हैं तथा आर्सेनिक नमूनों की उच्च सांद्रता परमाणु अवशोषण स्पेक्ट्रोफोटोमीटर (एएएस) द्वारा विश्लेषित की जाती है.
B.) आर्सेनिक सांद्रता वाले हैंडपंपों को चिन्हित :
उच्च आर्सेनिक सांद्रता वाले जल को उत्पन्न करने वाले हैंडपंपों को लाल रंग से चिन्हित किया जाना चाहिए. ये चिह्न इंगित करेंगे कि ये पंप मानव या पशुधन आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उपयुक्त नहीं हैं.
C.) आर्सेनिक मुक्त अन्वेषण कुओं का निर्माण :
भूजल के वैकल्पिक स्रोतों की पहचान और उपयोग के लिए प्रयास किये जा सकते है. सीसीडब्लूबी ने जिले के आर्सेनिक प्रभावित क्षेत्रों में विभिन्न जलभृत में आर्सेनिक सांद्रता को जानने के लिए अलग-अलग स्थानों पर विभिन्न जलभृत में अन्वेषण कुओं का निर्माण किया है. इन खोजे गये आर्सेनिक मुक्त कुओं को उत्पादन योग्य बनाया गया और उन्हें बलिया जल निगम को पेयजल के मुफ्त उपयोग के लिए सौंप दिया गया. अबतक की अवधि में ऐसे 11 टयूबवेलों (350 मीटर बीजीएल) का निर्माण किया जा चुका है.
विभिन्न एक्वाइफर्स के भूजल के मिश्रण की जांच करने के लिए आर्सेनिक मुक्त जलीय मिट्टी के परत के भीतर सीमेंट सीलिंग द्वारा अन्य जल से पृथक होता है. विभिन्न अन्वेषी कुओं के लिए हाइड्रोजियोलॉजिकल परीक्षण संचालित किए गए और यह पाया गया कि मुख्य कुएं को पंप करने पर अन्य अवलोकन पर कोई प्रभाव नहीं देखा गया. यह दिखाता है कि विभिन्न जलभृतो के बीच कोई संबंध नहीं है तथा सीमेंट सीलिंग तकनीक उचित प्रकार से कार्य करती है.
D.) सामान्य जनता को विभिन्न उपागमों द्वारा जागरूक करना
:
प्रदूषण अध्ययन का सबसे महत्वपूर्ण पहलू लोगों को डराना नहीं, बल्कि उन्हें जागरूक करना है. आर्सेनिक की उच्च सांद्रता वाली भूजल संरचनाओं के बारे में लोगों को जागरूक करना बेहद जरूरी है. इसका उद्देश्य उन्हें पानी में आर्सेनिक सामग्री के अनुसार भूजल संरचनाओं का उपयोग करने या इससे बचने के लिए शिक्षित करना है. सीजीडब्लूबी द्वारा राजपुर इकौना ब्लॉक बेल्हारी बलिया जिले में सफलतापूर्वक जन जागरूकता का आयोजन किया जा चुका है.
आवश्यक है समय रहते निदान : एक सार -
भूजल में आर्सेनिक प्रदूषण विश्वव्यापी स्तर पर एक खतरनाक समस्या है, भारत ही नहीं अपितु संसार के कई भू-भागों में जैव-रासायनिक प्रक्रियाओं के परिणामस्वरूप प्राकृतिक रूप से भूजल का विघटन हुआ है. पूर्वी उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के विभिन्न हिस्सों में भूजल में दूषित होने की समस्या की विस्तृत समीक्षा के साथ ही आर्सेनिक से जुड़े सिद्धांतों और विषाक्तता तंत्र एवं पशुओं और मनुष्यों में दीर्घकालिक परिणामों को भी दृष्टिगोचर किया गया. आर्सेनिक समस्या से निपटान के लिए बहुत से पारंपरिक, आधुनिक और हाइब्रिड प्रौद्योगिकियों के आधार पर विभिन्न उपचारात्मक विधियों के प्रयोग के लिए विश्व भर में वैज्ञानिकों एवं समीक्षकों द्वारा विश्लेषण किया गया है. उचित दिशानिर्देशों को उचित अंतराल पर निर्धारित करके आर्सेनिक प्रभावों को नियंत्रित करने के लिए नए विकल्पों की सुविधा प्रदान की जा सकती है.
उचित जनजागरण के माध्यम से भी जल प्रदूषण के कारकों से पड़ने
वाले दुष्प्रभावों को बहुत हद तक कम किया जा सकता है. समुदायों के लिए सार्वजनिक
भागीदारी में हालांकि बाधाएं आ सकती हैं, परन्तु जाग्रति आनी प्राथमिकता है.
आर्सेनिकोसिस को कम करने के लिए सरकारी प्रयास, वित्तीय और रसद सहायता आवश्यक होती
है. इसके अतिरिक्त आर्सेनिक की उपस्थिति, विभाजन एवं संयोजन के पैटर्न पर व्यापक शोध की आवश्यकता
को केंद्र में रखना चाहिए. सरकार को प्रदूषण के रूप में अग्रणी औद्योगिक प्रक्रियाओं
और कृषि गतिविधियों पर भी निगरानी रखनी चाहिए. साथ ही सीवेज, कीचड़ भंडारण तथा असंशोधित
कचरे से निपटने के लिए रासायनिक संयंत्रों को अधिक तकनीकी सहायता प्रदत्त की जानी
चाहिए, तभी भविष्यगत आर्सेनिक समस्या पर अंकुश लग सकता है.
Refrences :
1. http://www.vigyanprasar.gov.in/isw/harmfulsilenium_story.html