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पानी की कहानी – दीर्घकालिक भूजल प्रबंधन : जलभृत के कुशल संचालन व मानचित्रण की आवश्यकता

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  • Rakesh Prasad
  • August-17-2018

जल, केवल शब्द ही नहीं, अपितु सृष्टि पर समग्र जीवन का स्त्रोत है, स्वयं में एक कहानी है..जो जीवन की उत्पत्ति से भी पूर्व अबाध रूप से चलती आ रही है. निसंदेह बिना जल के प्रकृति का अवलोकन करना असंभव है, जल चाहे किसी भी रूप में क्यों न हो..हिमआच्छादित पर्वत श्रृंखलाओं को गले लगाए हुए या नदिकाओं के रूप में किसी अबोध बालक की भांति कलकल का बेतहाशा शोर करते हुए, किसी शांतचित्त, गंभीर वयोवृद्ध के समान ताल में ठहरा हुआ हो या समंदर की गोद में लहराते हुए, अजन्में जीव की भांति भूमि की कोख में समाया हुआ हो या बूंदों के स्वरुप में बादलों की परतों से निकलते हुए..जल की गाथा अवर्णीय, निरंतर व सार्वभौमिक है. जिस जल के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती, विडंबना देखिए, वर्तमान में वही सर्वाधिक अवहेलना का शिकार हुआ है.

जल का सबसे महत्त्वपूर्ण स्त्रोत यानि भूजल आज त्वरित गति से घट रहा है. प्रकृति से प्राप्त यह  निःशुल्क उपहार बढ़ती आबादी, प्राकृतिक संसाधनों के अत्याधिक दोहन और उपलब्ध संसाधनों के प्रति लापरवाही के कारण विभीषक संकट में परिणत हो गया है. पृथ्वी पर कुल उपलब्ध जल लगभग 1 अरब 36 करोड़ 60 लाख घन किमी. है, परंतु उसमें से 96.5 प्रतिशत जल समुद्री है जो खारा है और  खारा जल समुद्री जीवों और वनस्पतियों के अतिरिक्त मानव, धरातलीय वनस्पति तथा जीवों के लिए अनुपयोगी है. शेष 3.5 प्रतिशत जल मीठा है, किंतु इसका 24 लाख घन किमी. हिस्सा 600 मीटर की  गहराई में भूमिगत जल के रुप में विद्यमान है तथा लगभग 5.00 लाख घन किलोमीटर जल प्रदूषित हो चुका है. यूएन वाटर की रिपोर्ट के अनुसार जनसंख्या के बढ़ते घनत्व, आर्थिक विकास, बदलते उपयोग पैटर्न आदि के चलते जल की खपत 1% की वार्षिक दर से निरंतर बढती जा रही है. जुलाई, 2018 की नीति आयोग की रिपोर्ट के आंकड़े तो और अधिक चौंकते हैं, जिनमें स्पष्ट रूप से कहा गया है कि भारत में 60 करोड जनसंख्या पानी की किल्लत से जूझ रही है और प्रति वर्ष 2 लाख लोग साफ़ पेयजल के अभाव में दम तोड़ रहे हैं. यूनेस्को की रिपोर्ट के अनुसार विगत 10 वर्षों में भूजल स्तर 65% तक गिर गया है, भूजल दोहन के मामले में भारत को विश्व में प्रथम स्थान प्रदान है, जहां 80 फीसदी से अधिक जलापूर्ति भूजल के माध्यम से ही होती है.

जल, केवल शब्द ही नहीं,
अपितु सृष्टि पर समग्र जीवन का स्त्रोत है, स्वयं में एक कहानी है..जो जीवन की
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उत्तर प्रदेश में दीर्घकालिक भूजल प्रबंधन के विषय में किया गया शोध - 

उत्तरी भारत के बड़े हिस्सों पर काबिज गंगा के जलोढ़ मैदान भूजल के लिए महत्वपूर्ण भंडारण क्षमता रखते हैं और वस्तुतः इसी कारण वे  ताजा जल आपूर्ति का एक मूल्यवान स्रोत भी हैं. परन्तु इसके साथ ही, अत्याधिक दोहन और कम रिचार्ज दरों के कारण उनका शोषण भी अत्याधिक होता जा रहा है.

उत्तर प्रदेश को सदैव ही सर्वाधिक उत्पादक राज्य माना जाता है, क्योंकि राज्य के प्रमुख कृषि भू-भागों का गठन गंगा के जलोढ़ मैदानों की गर्त में छिपे 'भूजल जलाशयों' से होता है, साथ ही एक तरफ अनियंत्रित निष्कर्षण और भूजल के अत्यधिक उपयोग के कारण, विशेषकर सिंचाई और पेयजल के लिए और दूसरी ओर औद्योगिक क्षेत्रों के अंतर्गत पानी के स्तर में गिरावट अब बड़े पैमाने पर राज्य के जल समृद्ध जलोढ़ क्षेत्र को प्रभावित कर रही है.

इसके अतिरिक्त, राज्य के विभिन्न हिस्सों में भूजल की खराब गुणवत्ता पेयजल आपूर्ति के लिए भी एक उभरता खतरा बन रही है, जहां पश्चिमी यूपी के अधिकतर हिस्से निरंतर घटते जलभृत (एक्विफर) स्तर और भूजल स्तर में गिरावट से प्रभावित हैं, वहीँ पूर्वी यूपी में छिछले जल स्तर/जल भराव की स्थिति हावी है. इसके विपरीत, बुंदेलखंड-विंध्यान में वर्षा संरक्षण और वाटरशेड प्रबंधन की समझ के अभाव में भूजल संसाधनों में गंभीर कमी आई है.

विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं के अंतर्गत बड़ी संख्या में सिंचाई परियोजनाओं के निर्माण पर जोर दिया गया है, साथ ही बिजली में सब्सिडी और ट्यूबवेल क्रांति के परिणामस्वरूप देश में सिंचाई क्षमता और सिंचित भूमि उपयोग में तीव्रता से वृद्धि हुई है. सिंचाई क्षेत्र में वृद्धि के कारण भारत में खाद्य उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई, जो 1950 की शुरुआत में 51 मिलियन टन (एमटी) से बढ़कर वर्ष 2014-15 में लगभग पांच गुना अधिक 252 मीट्रिक टन हो गई. निश्चय ही भूजल ने इस उत्पादन वृद्धि के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया है, क्योंकि भूजल सिंचाई कृषि प्रधान भारत में सिंचाई का सबसे प्रभावशाली स्वरुप है. निष्काषित भूजल का 89% सिंचाई क्षेत्र में उपयोग किया जाता है, जो इसे देश में उच्चतम श्रेणी का उपयोगकर्ता बनाता है, इसके बाद घरेलू उपयोग के लिए भूजल का प्रयोग होता है, जो निकाले गए भूजल का 9% है. औद्योगिक उपयोग के लिए 2%, शहरी उपयोग के लिए 50% और 85% ग्रामीण घरेलू जल आवश्यकताओं को भूजल (विश्व बैंक, 2010) द्वारा पूरा किया जाता है.

कानूनी तौर पर  पानी भारत में राज्य विषय के अंतर्गत आता है और भूजल का काफी हद तक प्रबंधन सरकारी शासन से बाहर है. कानूनी प्रावधानों में ढ़ील के कारण  भूजल अधिकार भूमि मालिक से ही संबंधित हैं  और भूजल के उपयोग को भी उस व्यक्ति को हस्तांतरित किया जाता है, जिसे भूमि स्थानांतरित की जाती है. यह एक भूमि मालिक को पानी के निष्कर्षण पर किसी भी तर्कसंगत नियंत्रण के बिना भूजल की असीमित मात्रा का उपयोग करने की अनुमति देता है. हालांकि भूजल विकास से लेकर भूजल प्रबंधन तक विगत कुछ वर्षों में एक आदर्श बदलाव आया है और राष्ट्रीय स्तर पर भूजल को बचाने और इसके अंधाधुंध शोषण  को नियंत्रित करने के लिए एक वैचारिक प्रक्रिया शुरू हो गई है. इसलिए  गंभीर भूजल स्थितियों को दूर करने के लिए उत्तर प्रदेश राज्य में प्रभावी सक्रिय कार्य योजनाओं और उचित भूजल प्रबंधन रणनीतियों की तत्काल आवश्यकता है. भूजल संसाधनों को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने के लिए, एक्वाइफर्स (जलवाही स्तर) का विस्तृत मानचित्रण अब अत्यंत अनिवार्य बन गया है.

शोध के अंतर्गत विभिन्न जलविद्युत भूगर्भीय सेटिंग्स में जलीय मानचित्रण के माध्यम से राज्य में भूजल की एक सटीक और व्यापक सूक्ष्म-स्तर तस्वीर,  मजबूत भूजल प्रबंधन योजनाओं को उचित पैमाने पर तैयार करने और क्रियान्वित करने के उद्देश्य के लिए इसे सामान्य जनमानस संसाधन के अंतर्गत क्रियान्वित दृष्टिकोण और हितधारकों की भागीदारी के साथ लागू किया गया है.

उत्तर प्रदेश का जलविज्ञान : सामान्य दृष्टिकोण - 

उत्तर प्रदेश राज्य का प्रमुख हिस्सा गंगा बेसिन द्वारा कवर किया गया है, जिसमें यमुना, रामगंगा, गोमती, घागरा, गंडक और सोन उप बेसिन शामिल हैं, इसके अतिरिक्त बुंदेलखंड के चट्टानी इलाके भी सम्मिलित हैं. उत्तर में हिमालय की पर्वत श्रृंखला उच्च बहाव के साथ विशाल गंगा बेसिन की निष्क्रिय रिचार्जिंग में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है.

विविध भू-भौगोलिक व्यवस्था के कारण, भूजल उपलब्धता का स्थानिक और अस्थायी वितरण असमान है और इसी कारण बुंदेलखंड में अपर्याप्त जलीय मैदान हैं. राज्य में दो प्रमुख भूगर्भीय इकाइयां शामिल हैं –

गंगा मैदान

बुंदेलखंड पठार

गंगा मैदान में लगभग 85% क्षेत्र शामिल है और इसकी नींव में जलोढ़ तलछट का घना ढेर समेकित है. इन तलछटों में मिट्टी, गंध और कभी-कभी बजरी और कंकड़ के साथ विभिन्न ग्रेडों की रेत भी पाई जाती है. यह जलोढ़ तंत्र भूजल के एक बहुत समृद्ध जलाशय का गठन करता है, जलोढ़ संरचनाओं में मल्टी-एक्वाइफर प्रणाली सम्मिलित है, जो 600-700 मीटर तक की गहराई में पाए जाते हैं और इससे  अत्यधिक उत्पादक भूजल संसाधनों का प्रचुर मात्रा में विकास होता है. अन्वेषक बोरवेल डेटा दर्शाता है कि जलीय प्रणाली में सम्मिलित भूजल को चार एक्वाइफर्स समूहों में विभाजित किया जा सकता है. जिसमें सबसे उपरी परत (उथला एक्विफ्र्स) का व्यापक शोषण किया जा रहा है.

बुंदेलखंड चट्टानी इलाके में, भूजल प्रक्रियाएं दरार, जोड़ों एवं  फाल्ट लाइन्स द्वारा नियंत्रित होती है तथा यह स्थानीयकृत खंडों में अपक्षीण आवरण के भीतर घटित होता है. इस प्रायद्वीपीय ढाल में अपक्षीण एवं दरारयुक्त तलछटों में सीमित क्षमता के असंतुलित एक्वाइफर्स शामिल हैं.

राज्य के जलोढ़ क्षेत्र में भूजल बहुतायत में होता है, जिसके कारण राज्य के कुछ हिस्सों में व्यापक जल शोषण हुआ है. इसलिए संसाधन के वैज्ञानिक और योजनाबद्ध प्रबंधन के लिए जलविद्युत शासन की निगरानी अत्यंत महत्वपूर्ण है. हालांकि  हाइड्रो-भूगर्भीय रूप से राज्य को निम्नलिखित क्षेत्रों में व्यापक रूप से विभाजित किया जा सकता है -

तराई जोन, सेंट्रल गंगा जलोढ़ मैदान, मार्जिनल जलोढ़ मैदान, दक्षिणी प्रायद्वीपीय जोन.

बिजनौर और सहारनपुर जिलों के छोटे हिस्से 'भाबर जोन' में आते हैं, जो हिमालय की पहाड़ी श्रृंखला के दक्षिण में फैला हुआ है.

उत्तर प्रदेश में भूजल परिदृश्य - 

उत्तर प्रदेश राज्य का प्रमुख हिस्सा इंडो-गंगा के मैदान में आता है, जो न केवल भूजल संसाधन क्षमता के लिए बल्कि विश्व के सबसे बड़े एक्वाइफायर सिस्टम भी शामिल है. परन्तु  पिछले 3 दशकों में, राज्य में भूजल परिदृश्य मुख्य रूप से ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में अंधाधुंध शोषण, अनुचित और अवैज्ञानिक प्रबंधन प्रणालियों के कारण पूरी तरह से परिवर्तित हो गया है, जिसने 'हाइड्रोजियोलॉजिकल दबाव' को जन्म दिया है. हालिया अवलोकनों के आधार पर  गंगा बेसिन के कई हिस्सों में भूजल तालिका में गिरावट आई है, खासतौर पर पश्चिमी गंगा मैदानों में 1994 -2005 के दौरान 0.15 मीटर प्रति वर्ष की औसत गिरावट दर्ज की गई है. पिछले तीन दशकों में राज्य में भूजल परिदृश्य में काफी बदलाव आया है और भू-जल की गुणवत्ता व मात्रा से संबंधित विभिन्न महत्वपूर्ण परिस्थितियां भी उभरी हैं लखनऊ और कानपुर जैसे शहरी इलाकों में, पिछले 20 वर्षों में भूजल के अनियंत्रित शोषण ने शहरी एक्वाइफर्स को काफी हद तक कम कर दिया है. राज्य के विभिन्न हिस्सों में ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में जलस्तर स्थिति एक गंभीर और खतरनाक चरण तक पहुंच चुकी है.

सारणी 1 : भारत के मुख्य सात राज्यों के अंतर्गत भूजल विकास की अवस्था (वर्ष 2011)

राज्य

वर्ष 2011 में भूजल विकास की अवस्था (%)

पंजाब

172

राजस्थान

137

दिल्ली

137

हरियाणा

133

तमिलनाडु

77

उत्तर प्रदेश

74

हिमाचल प्रदेश

71

 

सांख्यिकी और परियोजना क्रियान्वन मंत्रालय, सरकार द्वारा जारी 2006 के आंकड़ों के अनुसार भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में घरेलू आपूर्ति के लिए 8.29 बीसीएम तक ताजे पानी की आवश्यकता है, जिसके 2025 तक 13 बीसीएम तक बढ़ने का अनुमान है. यह भारत के किसी भी राज्य के लिए सबसे बड़ा आंकड़ा है.

1980 के दशक में, उत्तर प्रदेश देश का प्रमुख सिंचाई क्रांति का केंद्र बन गया. यह उल्लेखनीय है कि कृषि उपयोग के लिए भारी मात्रा में भूजल निष्काषित करने के लिए देश में 40% से अधिक निजी सिंचाई ट्यूबवेल (राज्य में 42 लाख) हैं.

आंकड़ों से ज्ञात होता है कि राज्य में 70% सिंचित कृषि भूजल पर निर्भर है. इसके अतिरिक्त, राज्य में लगभग 80-90% पेयजल और सभी औद्योगिक जरूरतों को भी भूजल से पूरा किया जा रहा है, जिसके परिणामस्वरूप लगातार बढ़ते उपयोग से भूजल के स्तर में कमी आती है और कई क्षेत्रों में भूजल दीर्घकालिकता प्रभावित होती है. चूंकि,  इसका गैर-एकीकृत और अनियोजित उपयोग अधिकांशतः नहर प्रणाली में होता है, इसलिए यह जलभराव और मृदा कटाव जैसी विभिन्न भू-पर्यावरणीय संबंधी समस्याओं का कारण बन गया है.

जल, केवल शब्द ही नहीं,
अपितु सृष्टि पर समग्र जीवन का स्त्रोत है, स्वयं में एक कहानी है..जो जीवन की
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पाई चित्र : उत्तर प्रदेश में सिंचित क्षेत्र के प्रमुख स्त्रोत प्रतिशत में (वर्ष 2011) 

कुछ जिलों में भूजल में आर्सेनिक का पाया जाना, सुरक्षित पेयजल आपूर्ति प्रदान के साथ-साथ खाद्य श्रृंखला के माध्यम से लोगों तक पहुंचने वाले आर्सेनिक प्रदूषण के संभावित जोखिम के लिए एक नए खतरे के रूप में उभरा है. फ्लोराइड, लौह, नाइट्रेट, क्रोमियम, मैंगनीज और भूजल में बैक्टीरियोलॉजिकल प्रदूषण और लवणता के प्रदूषण जैसे अन्य जल गुणवत्ता के खतरों ने राज्य में संवाहित जल आपूर्ति के लिए सबसे बड़ी चुनौती है.

भूजल संसाधनों पर बढ़ती निर्भरता - 

भूजल संसाधनों पर बढ़ती निर्भरता का आकलन इस तथ्य से किया जा सकता है कि वर्ष 2000 में भूजल विकास दर 54.31 प्रतिशत थी, जो वर्ष 2011 में भूजल व्यवस्था की दबावपूर्ण स्थितियों के चलते 73.65 प्रतिशत हो गई.

सिंचाई परियोजनाओं के चलते राज्य में 42 लाख उथले (उपरी जलस्तर) ट्यूबवेल, 25730 मध्यम ट्यूबवेल और 25198 गहराई तक कुओं से बड़े पैमाने पर जल दोहन किया जा रहा है. अनुमानों के अनुसार पेयजल योजनाओं के तहत 659 शहरी क्षेत्रों से लगभग 5500 मिलियन लीटर भूजल और ग्रामीण क्षेत्रों से 7800 मिलियन लीटर भूजल प्रतिदिन निकाला जा रहा है.

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सारणी 2 : विगत वर्षों में उत्तर प्रदेश में भूजल निष्काषन/विकास की दशाएं 

विगत कुछ वर्षों से  820 खंडों में से 659 खंडों में भूजल स्तर की गिरावट दर्ज की गई है. भूजल अनुमान के अनुसार (31 मार्च, 2011 को), 111 खंडों को अत्याधिक शोषित खंडों के रूप में वर्गीकृत किया गया है, साथ ही 68  चिंताजनक और 82  अर्द्ध चिंताजनक हैं. वर्ष 2000 में, अधिक शोषित और संकटग्रस्त खंडों की संख्या केवल 22 थी, जो कि 2011  में आठ गुना अधिक हो गई है. लखनऊ, कानपुर, मेरठ, गाजियाबाद, आगरा, नोएडा और वाराणसी जैसे लगभग सभी प्रमुख शहरी केंद्र भूजल की कमी से गंभीर रूप से प्रभावित हुए हैं.

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उत्तर प्रदेश के दबावपूर्ण और संकटग्रस्त खंड - 

निम्नलिखित तालिका में दिए गए भूजल संसाधन डेटा स्पष्ट रूप से इंगित करते हैं कि राज्य धीरे-धीरे संकटग्रस्त भूजलस्तर की ओर बढ़ रहा है.

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तालिका में यह दर्शाया गया है कि वर्ष 2000 में अत्यधिक शोषण के रूप में वर्गीकृत केवल 2 खंड थे, जो 111 की संख्या तक बढ़ गए हैं. संकटग्रस्त खंडों की संख्या भी तेजी से बढ़ रही है. सबसे तनावग्रस्त जिलों में बागपत, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, आगरा, अमरोहा, संभल, जौनपुर, प्रतापगढ़, फतेहपुर, फिरोज़ाबाद, बुलंदशहर और महोबा हैं. 

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सारणी 3 : उत्तर प्रदेश के प्रमुख जिलों में घटता भूजल स्तर (वार्षिक दर)

भूजल संसाधनों का उपरोक्त परिदृश्य एक स्पष्ट संकेतक है कि उत्तर प्रदेश में  हम उस बिंदु तक पहुंच गए हैं, जहां कुछ ठोस योजनाओं को क्रियान्वन किया जाना चाहिए और जलीय मानचित्रण प्रबंधन प्रक्रिया पर ध्यान केंद्रित करने किया जाना चाहिए.

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Pic source - aajtak.intoday

जलभृत मानचित्रण का यथायोग्य प्रबंधन - 

उत्तर प्रदेश विविधता भरी जलभूगर्भीय परिस्थितियों से प्रचुर है, इसलिए भूजल संसाधनों के उचित आंकलन और मूल्यांकन के लिए विभिन्न क्षेत्रों से जुड़ी जल प्रबंधन योजनाओं के लिए जलभृत का मानचित्रण अत्यंत महत्वपूर्ण है.

1. उत्तर प्रदेश में जलभृत प्रणाली का मौजूदा ज्ञानाधार

जलभृत के प्रकार हाइड्रोजियोलॉजिकल परिस्थितियों पर निर्भर करते हैं मसलन, क्षेत्र जलोढ़ है या चट्टानी/पठार क्षेत्र है. राज्य के प्रमुख जलभृत सिस्टम का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है :

a) क्षेत्रीय रूप से व्यापक छिद्रयुक्त जलभृत :

केंद्रीय गंगा मैदान पर विस्तारित ग्रामीण क्षेत्रों के अंतर्गत बहु-स्तरित जलोढ़ जलभृत प्रणाली की एक उप-सतही प्रवृति पाई जाती है. केंद्रीय गंगा मैदान में मुख्य रूप से पाए जाने वाले जलभृत को लिथोलॉजिकल तत्वों के आधार पर समूहित और साथ ही बोरहोल्स के विद्युत लॉग की व्याख्या के आधार पर समूहबद्ध भी किया गया है.

पहला जलभृत समूह: 0.0 - 150 एमबीजीएल

दूसरा जलभृत समूह: 160 - 210 एमबीजीएल

तीसरा जलभृत समूह: 250 - 360 एमबीजीएल

चौथा जलभृत समूह: 380-600 एमबीजीएल

b) उत्स्रुत (आर्टेसियन) जलभृत :

राज्य में आर्टेसियन जलभृत बेल्ट पहाड़ी क्षेत्र के सामने फैली हुई है, जो पूर्व में महाराजगंज जिले से पश्चिम में सहारनपुर जिले तथा लखीमपुर और पीलीभीत जिलों से गुजरती है. यह एक शक्तिशाली जलभृत प्रणाली है, जो विभिन्न उपयोगों के लिए जलापूर्ति का प्रबंध करता है, जिसके लिए गहनता से पानी उठाने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है. हालांकि, उत्स्रुत जलभृत बेल्ट के रिचार्ज क्षेत्र को भी संरक्षण और सुरक्षा उपायों की आवश्यकता है, क्योंकि समय के साथ साथ इस क्षेत्र के सिरों पर भी दबाव बढ़ा है.

c) शहरी जलभृत सिस्टम :

हालांकि विभिन्न कस्बें केंद्रीय गंगा मैदानों का हिस्सा है, परन्तु फिर भी इसे अलग-अलग शहरी क्षेत्र जलभृत प्रणाली के रूप में विशेष रूप से उल्लेखित किये जाने की आवश्यकता है, क्योंकि शहरी क्षेत्रों में विकास क्षमता और रिचार्ज तकनीक ग्रामीण इलाकों के जलभृतों से भिन्न होती है. कुछ शहरी क्षेत्रों के लिए एक शहरी जलभृत चित्रण सामान्य रूप से 20 मीटर मोटी मिट्टी की परतों के साथ अलग-अलग एक बहु स्तरित जलभृत प्रणाली को दर्शाता है. इनकी गहराई इस प्रकार से अंकित की जा सकती है,  

पहली जलभृत सतह 100 मीटर गहराई के भीतर होती है.

दूसरी जलभृत सतह 130-155 मीटर गहराई के बीच होती है.

तीसरी जलभृत सतह  200-460 मीटर गहराई के बीच पाई जाती है.

चौथी जलभृत सतह 500-753 मीटर गहराई के मध्य मिलती है.

2. जलभृत मानचित्रण के अंतर्गत प्रमुख समस्याएं

अन्य सतही जल संसाधनों की तरह  भूजल भी एक अदृश्य प्राकृतिक स्त्रोत है और इसकी वास्तविक गतिशीलता को स्पष्ट रूप से समझना बेहद जटिल प्रक्रिया है. उपलब्ध डेटा केवल संकेतक होता है तथा भूजल संकट के लिए पूर्ण निदान प्रदान नहीं कर सकता है. उत्तर प्रदेश जलस्तर सम्बन्धी विविध समस्याओं का सामना कर रहा है, जिसे केवल जलभृत के व्यापक मानचित्रण के माध्यम से हल किया जा सकता है.

राज्य के भूजल संसाधनों के संबंध में कानून बनाने, उन्हें नियंत्रित रखने एवं कुशलतापूर्वक मापने के लिए जलभृत मानचित्रण को बड़े  पैमाने पर किये जाने की आवश्यकता है ताकि सूक्ष्म प्रबंधित परियोजनाओं की तैयारी और क्रियान्वन के लिए विभिन्न भूजल मानकों के द्वारा उचित कार्यवाही और रणनीतिक जानकारी उपयुक्त ढंग से चित्रित की जा सके.

सेंट्रल ग्राउंड वॉटर बोर्ड ने राष्ट्रीय परियोजना के तहत यूपी के लिए जलभृत मानचित्रण कार्यक्रम शुरू किया, जिसमें  जलीय सतहों के मानचित्र तैयार किए गये. राज्य योजना के तहत भूजल विभाग ने जलीय मैपिंग पर पूरी तरह से प्रारंभिक योजना शुरू की, जो  पूरी तरह से माध्यमिक डेटा पर आधारित है और लखनऊ व कानपुर के कुछ शहरी फैलाव भी परियोजना में शामिल किये गये. परंतु, राज्य द्वारा भूजल की समस्या का सामना करने की जटिलता को ध्यान में रखते हुए, चलाए गये जलभृत मानचित्रण कार्यक्रम महत्वपूर्ण भूजल मुद्दों को कुशलतापूर्वक प्रबंधित करने के लिए पर्याप्त नहीं है.

इन गतिविधियों को और अधिक जानकारी की आवश्यकता है और इस दिशा में जलभृत मानचित्रण के लिए राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर एक मजबूत रणनीति तैयार किये जाने और कार्यवाही योजनाओं को प्रभावशाली रूप से डिजाइन किये जाने की आवश्यकता है.

जलभृत मानचित्रण की दिशा में उचित कार्यवाही की आवश्यकता - 

जलभृत मानचित्रण एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें भूगर्भीय, भू-भौगोलिक, भू-भौतिकीय, जलतत्त्व और वे रासायनिक सूचनाएं सम्मिलित हैं, जो सतही जल के अंतर्गत भूजल की मात्रा, गुणवत्ता और स्थायित्व को दर्शाने व आकलन संबंधी प्रयोगशाला तथा फील्ड विश्लेषण के अंतर्गत संकेंद्रित होती हैं.

भूजल संसाधन के सटीक प्रबंधन के लिए अधिक समझदारी से तथा दीर्घकालिक भूजल विकास योजना तैयार करने के लिए  एक उचित हाइड्रोजियोलॉजिकल ढांचे के आधार पर जलभृत मानचित्रण का प्रबंधन अब एक अनिवार्य आवश्यकता बन गया है. इसलिए  राज्य में एक 'जलभृत प्रबंधन प्राधिकरण/टास्क फोर्स' की स्थापना नितांत अनिवार्य है.

a) जलभृत आधारित भूजल प्रबंधन के लिए बुनियादी पूर्व-आवश्यकताएं

निम्नलिखित जानकारी जलभृत के सही प्रबंधन के लिए सर्वदा उपयोगी है. चूंकि जलभृत भूजल के प्रबंधन की प्राकृतिक इकाइयां हैं,  इसलिए ज़मीनी स्तर पर इनका प्रबंधन वांछनीय है :

जलभृत प्रणाली का एरियल विस्तार और पारिस्थितिकीय जानकारी

सीमित (सघन) और अपरिवर्तित एक्वाइफर्स की मूल समझ

पानी के स्तर का वास्तविक डेटा और जलभृत की जलीय गुणवत्ता

जलभृत के भौतिक जमाव के संबंध में प्रदूषित परिवृतियों का अनुकूलन

b) भूजल स्थिरता के लिए प्रबंधन लक्ष्य

जलभृत संबंधी योजनाओं का खाका तैयार करने एवं सूक्ष्म स्तर पर क्रियान्वित करने के लिए.

सिंचाई, घरेलू और औद्योगिक जल आपूर्ति के साथ-साथ पारिस्थितिकीय आवश्यकताओं के लिए भूजल उपयोग के आधार पर अनुमत निर्लिप्तता को ठीक करने के लिए.

निर्णय लेने में भूजल मात्रा और गुणवत्ता को एकीकृत करने के लिए.

अतिदोहन/संकटग्रस्त भू-भागों (शहरी एवं ग्रामीण तनाव वाले क्षेत्रों) पर ध्यान केंद्रित करने के लिए.

वर्षा जल संचयन और भूजल रिचार्जिंग तकनीकों का व्यवहार में लाने के लिए.

सतह और भूजल के संयुक्त उपयोग प्रबंधन को अपनाने के लिए.

कुओं की गहराई और कायाकल्प और जल निकायों का उचित संरक्षण.

निष्कर्ष और नीति प्रभाव - 

राज्य के विभिन्न जल क्षेत्रों में भूजल संसाधन का योगदान 75% सिंचाई आपूर्ति, पेयजल का 80-90% और लगभग सभी औद्योगिक आवश्यकताओं को प्रदान करने के लिए किया जाता रहा है, जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता. किन्तु  भूजल संसाधन के बढ़ते महत्व के बावजूद भी  राज्य में इस मूल्यवान संसाधन की सुरक्षा व संरक्षण के लिए नियामक तथा प्रबंधन आवश्यकताओं को अभी तक उपयुक्त रूप से समझा नहीं गया है और अब तक इस पर गंभीर रूप से विचार भी नहीं किया गया है. यही कारण हो सकता है कि सर्वधि महत्त्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन के रूप में उपयोग किये जाने के बाद भी  भूजल शायद राज्य में सबसे उपेक्षित, कुप्रबंधन का शिकार और अतिदोहित प्राकृतिक संसाधन है.

चूंकि राज्य विभिन्न भूजल संबंधी समस्याओं का साक्षी रहा है जैसे ; शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में भूजल संग्रहों की कमी, उप-सतहों पर जल भराव, भूजल प्रदूषण और संबंधित गुणवत्ता की समस्या आदि. यूपी राज्य के लिए भूजल का वैज्ञानिक विकास और प्रबंधन  किसी भी भविष्य के संकट को रोकने के लिए समय की आवश्यकता है. इसके अतिरिक्त  प्रबंधन रणनीतियों में अन्य पहलुओं को भी शामिल किया जाना चाहिए, जैसे - भूजल के स्वामित्व, आबंटन और संसाधनों का मूल्य निर्धारण, डेटा संग्रहण, भंडारण संबंधी प्रभावी विनियमन और हितधारकों की भूमिका आदि, क्योंकि भूजल राज्य के कुछ क्षेत्रों, विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में गंभीर रूप से दुर्लभ संसाधन बनने की कगार पर है, इसलिए इस आवश्यक संसाधन की दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए प्रभावी भूजल प्रबंधन के लिए एक व्यापक वैज्ञानिक नीति विकसित करने की बेहद आवश्यकता है.

Refrences :-

1. http://www.unwater.org/publications/world-water-development-report-2018/

2. http://thewirehindi.com/47090/india-facing-severe-water-crisis-of-history-niti-aayog/

3. https://www.jansatta.com/politics/jansatta-column-politics-opinion-artical-about-who-is-concerned-about-ground-water/655571/

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Reviving Ancient Wisdom: Modernizing Traditional Water Systems with AI

Reviving Ancient Wisdom: Modernizing Traditional Water Systems with AI

India boasts a rich heritage of traditional water management systems, developed over centuries to cope with the country's diverse climatic c...

Predictive Analytics: Forecasting Water Futures

Predictive Analytics: Forecasting Water Futures

In the face of increasing water scarcity and the unpredictable impacts of climate change, the ability to accurately forecast water availabil...

The Future of Water Management Beyond AI

The Future of Water Management Beyond AI

While Artificial Intelligence (AI) is currently transforming water management, it is just one piece of a larger technological evolution aime...

The Ethics of AI in Water Management

The Ethics of AI in Water Management

As we increasingly integrate Artificial Intelligence (AI) into water management systems, we must carefully consider the ethical implications...

Community-Led Water Conservation: Empowering Local Action

Community-Led Water Conservation: Empowering Local Action

While technological solutions like AI and advanced monitoring systems play a crucial role in addressing water challenges, the human element ...

How AI is Revolutionizing Water Management

How AI is Revolutionizing Water Management

Water management is undergoing a profound transformation with the integration of artificial intelligence (AI) technologies. As India faces i...

Traditional Water Management Systems of India

Traditional Water Management Systems of India

Long before modern engineering solutions, India developed sophisticated water management systems that have sustained communities for centuri...

बाढ़-सूखे के चक्र में फंसा बिहार: समाधान कब?

बाढ़-सूखे के चक्र में फंसा बिहार: समाधान कब?

बाढ़ आती रहेगी, सूखा पड़ता रहेगा और हाहाकार होता रहेगा।कुछ दिन पहले बाढ के मसले पर मैंने पंडित जवाहरलाल नेहरू के विचार लिखे थे। अब इस समस्या ...

पानी की कहानी - प्रदूषण की जंजीरों में फंसी गोमती, जलजीवों के लिए संकट

पानी की कहानी - प्रदूषण की जंजीरों में फंसी गोमती, जलजीवों के लिए संकट

भारत की नदियाँ न केवल जीवनदायिनी हैं, बल्कि देश की सांस्कृतिक धारा का भी एक अहम हिस्सा रही हैं। इन नदियों के किनारे बसी बस्तियाँ, उनका आस्था...

पानी की कहानी - गंगा को बचाने की मुहिम: 30 जिलों में होगा नया जिला गंगा प्लान

पानी की कहानी - गंगा को बचाने की मुहिम: 30 जिलों में होगा नया जिला गंगा प्लान

गंगा नदी, भारत की जीवनरेखा मानी जाती है और धार्मिक, सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी यह भारतीय समाज के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। लेकिन बढ़ते प्रदू...

कुकरैल रिवर फ्रंट: लखनऊ के पर्यावरणीय पुनर्निर्माण का एक प्रयास, प्राकृतिक धरोहर को संबल

कुकरैल रिवर फ्रंट: लखनऊ के पर्यावरणीय पुनर्निर्माण का एक प्रयास, प्राकृतिक धरोहर को संबल

लखनऊ की ऐतिहासिक धरोहरों और समृद्ध संस्कृति में एक नया अध्याय जुड़ने जा रहा है—कुकरैल रिवर फ्रंट। गोमती नदी की सहायक कुकरैल नदी, जो कभी जीवन...

Pani Ki Kahani - Human health and natural ecosystem affected in the face of changing climate

Pani Ki Kahani - Human health and natural ecosystem affected in the face of changing climate

The current scenario of climate change is negatively impacting the ecosystem services and human health in India. The research is linking the...

पानी की कहानी - इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट की रिपोर्ट - हिंदू कुश से लेकर हिमालय तक का ग्लेशियर तेजी से हो रहा है कम

पानी की कहानी - इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट की रिपोर्ट - हिंदू कुश से लेकर हिमालय तक का ग्लेशियर तेजी से हो रहा है कम

हिंदू कुश हिमालय पर्वतमाला के क्षेत्र में मौजूद ग्लेशियर, जो करोड़ों वर्षों से जीवन सभ्यताओं को सींच रहे हैं, उन्हें लेकर इंटरनेशनल सेंटर फॉर...

पानी की कहानी - मिर्जापुर में लगातार मैली हो रही है गंगा, नालों का असंशोधित पानी कर रहा है गंगा को प्रदूषित

पानी की कहानी - मिर्जापुर में लगातार मैली हो रही है गंगा, नालों का असंशोधित पानी कर रहा है गंगा को प्रदूषित

सनातन धर्म शास्त्रों में पतित पावनी गंगा नदी को मोक्षदायिनी "मां" का गौरव प्राप्त है, अनेकों संस्कृतियाँ, परम्पराएं और सभ्यताऐं गंगा के पवित...

पानी की कहानी - लखनऊ में घटते वॉटर फ़्लो से लगातार प्रदूषित हो रही है गोमती नदी

पानी की कहानी - लखनऊ में घटते वॉटर फ़्लो से लगातार प्रदूषित हो रही है गोमती नदी

नदियां जो हमें जीवन देती हैं, पानी देती हैं, खेती के लिए भूमि देती हैं, सदियों तक सभ्यताओं को बाँध के रखती है; हमारे देश में उन्हीं की बेक़द्...

पानी की कहानी - यमुना को प्रदूषण मुक्त करने की अनूठी पहल, यमुना संसद के तत्वावधान में बनाई गई मानव शृंखला

पानी की कहानी - यमुना को प्रदूषण मुक्त करने की अनूठी पहल, यमुना संसद के तत्वावधान में बनाई गई मानव शृंखला

राजधानी दिल्ली का जीवन आधार कही जाने वाली यमुना नदी के प्रदूषण की कहानी किसी से छिपी नहीं है, सरकार के अनेकों प्रयासों के बावजूद भी अभी तक य...

पानी की कहानी - बहलोलपुर में हिंडन को प्रदूषित करने वाली 16 औद्योगिक यूनिट पर कानूनी कार्रवाई, एनजीटी पॉल्यूशन बोर्ड भी सख्त

पानी की कहानी - बहलोलपुर में हिंडन को प्रदूषित करने वाली 16 औद्योगिक यूनिट पर कानूनी कार्रवाई, एनजीटी पॉल्यूशन बोर्ड भी सख्त

नोएडा के बहलोलपुर में बहने वाली हिंडन नदी का रंग हाल ही में खून जैसा लाल नजर आया, कचरे से अटी हिंडन नदी के पानी का रंग लाल, पीला या काला होन...

पानी की कहानी - केवल बाढ़ नियंत्रण पर काम करना नहीं है पर्याप्त, देश को है जल-निकासी आयोग के गठन की आवश्यकता

पानी की कहानी - केवल बाढ़ नियंत्रण पर काम करना नहीं है पर्याप्त, देश को है जल-निकासी आयोग के गठन की आवश्यकता

गुजराती में एक कहावत है, "छतरी पलटी गयी, कागड़ी थई गई"। जिसका अर्थ होता है कि बरसात में आंधी-पानी से अगर छतरी उलट जाये तो उसमें और कौवे में...

पानी की कहानी - वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालय जियोलॉजी की रिसर्च - तेजी से पिघल रहा गंगोत्री ग्लेशियर, 87 सालों में 1700 मीटर पीछे खिसका

पानी की कहानी - वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालय जियोलॉजी की रिसर्च - तेजी से पिघल रहा गंगोत्री ग्लेशियर, 87 सालों में 1700 मीटर पीछे खिसका

गंगा जो हमारे भारत देश की पहचान व जीवनदायिनी है, यहां का प्रत्येक नागरिक अत्यंत शान के साथ कहता है कि हम उस देश के निवासी है जहां गंगा बहती ...

पानी की कहानी - यमुना स्वच्छता की मुहिम, आगरा में लगाया जाएगा नया सीवेज प्लांट

पानी की कहानी - यमुना स्वच्छता की मुहिम, आगरा में लगाया जाएगा नया सीवेज प्लांट

यमुना क्या एक नदी भर है? यह सवाल यदि खुद से भी पूछे तो जवाब ना में ही आएगा, क्यों? क्योंकि यह एक नदी नहीं है अपितु हमारी आस्था है, हम इसकी प...

पानी की कहानी - ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण जल प्रदूषण मामला, एनजीटी ने प्राधिकरण को 93 गांवों में जल प्रदूषण पर लगाम लगाने के दिए निर्देश

पानी की कहानी - ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण जल प्रदूषण मामला, एनजीटी ने प्राधिकरण को 93 गांवों में जल प्रदूषण पर लगाम लगाने के दिए निर्देश

मई में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने नेशनल वाटर मैनेजमेंट प्रोग्राम के अंतर्गत चौंकाने वाले आंकड़े पेश किए थे, जिनमें बताया गया था कि दे...

पानी की कहानी - ग्लेशियर पर बढ़ते दबाव से कांपती है धरती, दरकते हैं पहाड़ और नदियों का वेग होता है एकाएक तीव्र

पानी की कहानी - ग्लेशियर पर बढ़ते दबाव से कांपती है धरती, दरकते हैं पहाड़ और नदियों का वेग होता है एकाएक तीव्र

हिमालय पर्वत, जिसे लूज रॉक की संज्ञा भी दी जा सकती है, एक ऊंची ढाल का सेडिमेंट्री पहाड़ है। यानि ग्लेशियर पर बढ़ता दबाव हिमालयी क्षेत्र में छो...

पानी की कहानी - जल प्रबंधन से जुड़ी समस्याओं से मिलेगी गुरुग्राम वासियों को राहत, भाजपा बुद्धिजीवी प्रकोष्ठ की सार्थक पहल

पानी की कहानी - जल प्रबंधन से जुड़ी समस्याओं से मिलेगी गुरुग्राम वासियों को राहत, भाजपा बुद्धिजीवी प्रकोष्ठ की सार्थक पहल

भारतीय जनता पार्टी बुद्धिजीवी प्रकोष्ठ गुरुग्राम के ज़िला संयोजक, श्री अमर झा ने दिनांक 26/07/2022 को गुरुग्राम ज़िले के जल प्रबंधन, भूजल में ...

पानी की कहानी - छोटी नदियों और उनके इकोसिस्टम को मरने के लिए छोड़ दिया तो गंगा में जल कहां से आएगा? - डॉ वेंकटेश दत्ता

पानी की कहानी - छोटी नदियों और उनके इकोसिस्टम को मरने के लिए छोड़ दिया तो गंगा में जल कहां से आएगा? - डॉ वेंकटेश दत्ता

हम सभी अलग अलग गांवों से आते हैं, जहां ताल-तलैया, छोटी छोटी नदियां आदि हुआ करती थी। अकेले लखनऊ में ही पाँच नदियां हैं, जिनमें गोमती, कुकरैल,...

पानी की कहानी - असम की बाढ़, कारण और निवारण के बीच फंसे लोग

पानी की कहानी - असम की बाढ़, कारण और निवारण के बीच फंसे लोग

असम में बाढ़ कोई नई घटना नहीं है। किन्तु मानसून के पहले ही चरण में बाढ़ का इतना ज्यादा टिक जाना और इसके लिए सरकार के मुखिया द्वारा लोगों पर दो...

पानी की कहानी - केंद्रीय भूजल बोर्ड की रिपोर्ट, कर्नाटक का कोलार जिला कर रहा सर्वाधिक भूजल दोहन

पानी की कहानी - केंद्रीय भूजल बोर्ड की रिपोर्ट, कर्नाटक का कोलार जिला कर रहा सर्वाधिक भूजल दोहन

"बिन पानी सब सून", कहावत के बार बार सुनने के बाद भी हम मनुष्य उस पर गंभीरता से विचार नहीं करते हैं। बीते कुछ वर्षों में जिस तरह देश के विभिन...

पानी की कहानी - वैश्विक तापमान में वृद्धि और मौसम में लगातार परिवर्तन, क्या दो बूंद गंगाजल के लिए तरसता रह जाएगा सागर?

पानी की कहानी - वैश्विक तापमान में वृद्धि और मौसम में लगातार परिवर्तन, क्या दो बूंद गंगाजल के लिए तरसता रह जाएगा सागर?

(वैश्विक तापमान में वृद्धि और इसके परिणामस्वरूप मौसमी परिवर्तन। निःसंदेह, वृद्धि और परिवर्तन के कारण स्थानीय भी हैं, किंतु राजसत्ता अभी भी ऐ...

Flood Control Plan for Gurugram (2020-21) by Department of Revenue & Disaster Management

Flood Control Plan for Gurugram (2020-21) by Department of Revenue & Disaster Management

The country's cyber city Gurugram suffers huge losses every year due to flash floods when it rains. The city has gained international fame i...

पानी की कहानी - वर्ल्ड वाटर डे विशेष : भूजल संरक्षण है आवश्यक

पानी की कहानी - वर्ल्ड वाटर डे विशेष : भूजल संरक्षण है आवश्यक

वर्तमान समय में प्राकृतिक संसाधनों पर बढ़ता दबाव हमारे प्राकृतिक जल स्त्रोतों के लिए खतरा बनता जा रहा है। नीर फाउंडेशन के निदेशक व संस्थापक न...

पानी की कहानी - गंगा में रोजाना डंप किया जा रहा है 280 करोड़ लीटर अपशिष्ट, नियमों का उल्लंघन कर रही 190 औद्योगिक इकाइयों को केंद्र सरकार ने किया बंद

पानी की कहानी - गंगा में रोजाना डंप किया जा रहा है 280 करोड़ लीटर अपशिष्ट, नियमों का उल्लंघन कर रही 190 औद्योगिक इकाइयों को केंद्र सरकार ने किया बंद

गंगा नदी प्रदूषण में इजाफा कर रहे 180 उद्योगों पर सोमवार 21 मार्च को केंद्र सरकार ने रोक लगा दी है। गंगा को प्रदूषित कर रहे पांच राज्यों के ...

आदि बद्रीबांध निर्माण को लेकर हरियाणा और हिमाचल प्रदेश में हुआ समझौता - सरस्वती को मिलेगा पुनर्जीवन

आदि बद्रीबांध निर्माण को लेकर हरियाणा और हिमाचल प्रदेश में हुआ समझौता - सरस्वती को मिलेगा पुनर्जीवन

वैदिककालीन साहित्य में परम पवित्र नदी के रूप में जानी जाने वाली सरस्वती नदी भारत की उन पौराणिक नदियों में से एक है, जिनके किनारे रहकर ऋषियों...

Raman River Rejuvenation Model

Raman River Rejuvenation Model

Raman River Rejuvenation Model WHY NEED THIS MODEL?The existence of small and rainy rivers in India is nearing its end. The new generation h...

पानी की कहानी - क्रिसमस डे के मौके पर मोहम्मदी क्षेत्र में विवेकानंद घाट पर चलाया गया स्वच्छता अभियान

पानी की कहानी - क्रिसमस डे के मौके पर मोहम्मदी क्षेत्र में विवेकानंद घाट पर चलाया गया स्वच्छता अभियान

सदानीरा रही गोमती हजारों वर्षों से अनेकों संस्कृतियों को सहेज रही है, कईं सभ्यताओं को पनपने में अपनी भूमिका प्रदान कर चुकी है, अनगिनत पौराणि...

हसदेव अरण्य कोयला खनन - उद्योग, आर्थिक विकास आवश्यक लेकिन क्या जीवनदायक जंगल, साफ पानी, ताजी हवा जरूरी नहीं

हसदेव अरण्य कोयला खनन - उद्योग, आर्थिक विकास आवश्यक लेकिन क्या जीवनदायक जंगल, साफ पानी, ताजी हवा जरूरी नहीं

"जब आखिरी पेड़ कट जाएगा, जब आखिरी नदी के पानी में जहर घुल जाएगा और जब आखिरी मछली का भी शिकार हो जाएगा, तभी इनसान को एहसास होगा कि वह पैसे नह...

पानी की कहानी - नीम नदी को पुनर्जीवन देने के भागीरथ प्रयास हुए शुरू

पानी की कहानी - नीम नदी को पुनर्जीवन देने के भागीरथ प्रयास हुए शुरू

नीम नदी को उसके उद्गम स्थल पर पुनर्जीवित करने के पुनीत कार्य का बीड़ा नीर फाउंडेशन ने उठाया है और प्रकृति व पर्यावरण की अनूठी धरोहर नदियों ओ ...

पानी की कहानी - नर्मदा निर्मलता से जुड़े कुछ विचारणीय सुझाव

पानी की कहानी - नर्मदा निर्मलता से जुड़े कुछ विचारणीय सुझाव

नीति पहले, कार्ययोजना बाद मेंकिसी भी कार्ययोजना के निर्माण से पहले नीति बनानी चाहिए। नीतिगत तथ्य, एक तरह से स्पष्ट मार्गदर्शी सिद्धांत होते ...

पानी की कहानी - हिंडन नदी : एक परिचय

पानी की कहानी - हिंडन नदी : एक परिचय

कालुवाला खोल अर्थात हिण्डन नदी सहारनपुर जनपद में शिवालिक की पहाडियो कालुवाला पास से प्रारम्भ होती है । यह बरसाती नदी है । इसमे छोटी अन्य सहा...

Exhibition and Workshop on Urban Water System in Gurgaon: Pathways to Sustainable Transformation

Exhibition and Workshop on Urban Water System in Gurgaon: Pathways to Sustainable Transformation Event

As we all knows that big cities change rapidly, people moving into them can struggle for access to basic services like clean water and san...

नेशनल वाटर कांफ्रेंस एवं "रजत की बूँदें" नेशनल अवार्ड ऑनलाइन वेबिनार 26 जुलाई 2020

नेशनल वाटर कांफ्रेंस एवं "रजत की बूँदें" नेशनल अवार्ड ऑनलाइन वेबिनार 26 जुलाई 2020 Event

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पानी की कहानी - लॉक डाउन के नियमों का उल्लंघन करते हुए जारी है यमुना नदी से अवैध खनन

पानी की कहानी - लॉक डाउन के नियमों का उल्लंघन करते हुए जारी है यमुना नदी से अवैध खनन

जहां एक ओर कोरोना और लॉक डाउन के चलते जनजीवन अस्त व्यस्त सा हो गया है और लोगों के सामने स्वस्थ रहते हुए आजीविका चलाना सबसे बड़ी वरीयता बनकर र...

Acute Encephalitis Syndrome Reduction through Promotion of Environmental Sanitation and Safe Drinking Water Practices

Acute Encephalitis Syndrome Reduction through Promotion of Environmental Sanitation and Safe Drinking Water Practices

Abstract: Water management and safe sanitation play an important role in controlling vector borne diseases in the tropical countries like...

पचनदा बांध परियोजना - डैम प्रोजेक्ट पूरा होने से बीहड़ांचल को मिलेगा धार्मिक महत्त्व, बनेगा पर्यटन केंद्र

पचनदा बांध परियोजना - डैम प्रोजेक्ट पूरा होने से बीहड़ांचल को मिलेगा धार्मिक महत्त्व, बनेगा पर्यटन केंद्र

भारत में नदियों का धार्मिक महत्त्व किसी से छिपा नहीं है, युगों से नदियों किनारे लगने वाले पौराणिक मेले, स्थापित मंदिर, मठ, आश्रम, तपस्थली आद...

पानी की कहानी - हिंडन को प्रदूषण मुक्त करने के लिए एनजीटी ने शुरू किये प्रयास, पर्यावरण विशेषज्ञों ने जन सहभागिता को बताया अहम

पानी की कहानी - हिंडन को प्रदूषण मुक्त करने के लिए एनजीटी ने शुरू किये प्रयास, पर्यावरण विशेषज्ञों ने जन सहभागिता को बताया अहम

राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण ने हिंडन नदी के साथ साथ काली नदी को भी स्वच्छ बनाने की कवायद शुरू की है. मेरठ में कमीश्नर के रूप में कार्य करते हुए...

मनियारी नदी - शहर भर के कचरे का डंपिंग स्टेशन बनती एक सदानीरा नदी की कहानी

मनियारी नदी - शहर भर के कचरे का डंपिंग स्टेशन बनती एक सदानीरा नदी की कहानी

"जल है तो कल है", जाने किंतनी बार हम सभी ने ये पंक्तियां सुनी हैं. गाहे-बगाहे पर्यावरण प्रेमी, जल संरक्षण संस्थाओं, सामाजिक-राजनीतिक व्यक्ति...

पानी की कहानी - कचरा डंपिंग ने भूगर्भीय जल को बना दिया विषैला, सरकार को नियम बनाने में लग गए 49 साल

पानी की कहानी - कचरा डंपिंग ने भूगर्भीय जल को बना दिया विषैला, सरकार को नियम बनाने में लग गए 49 साल

"घैला के पास से लिए गए पानी के नमूनों की जाँच करने पर उनमें लेड और क्रोमियम जैसे विषैले हैवी मेटल्स मिले हैं. साथ ही जिंक, कॉपर, आयरन, निकेल...

खारुन नदी - जहरीली होती जा रही है रायपुर की जीवन रेखा खारुन नदी, समय रहते संरक्षण जरुरी

खारुन नदी - जहरीली होती जा रही है रायपुर की जीवन रेखा खारुन नदी, समय रहते संरक्षण जरुरी

छत्तीसगढ़ के रायपुर में युगों से बहने वाली "खारुन नदी" शहर के लगभग 15 लाख लोगों के लिए जल और जीवन का स्त्रोत है. "रायपुर में "खारुन महतारी" क...

पहुज नदी - धीरे धीरे मर रही एक प्राचीन नदी की कहानी

पहुज नदी - धीरे धीरे मर रही एक प्राचीन नदी की कहानी

सनातनी धार्मिक ग्रन्थों में पुष्पावती के नाम से जानी जाने वाली "पहुज नदी" यमुना की सहायक काली सिंध नदी की सहायक मानी जाती है. बुंदेलखंड वासि...

कंडवा नदी – समाज और प्रशासन की अवहेलना झेल रही कंडवा की कब बदलेगी तस्वीर?

कंडवा नदी – समाज और प्रशासन की अवहेलना झेल रही कंडवा की कब बदलेगी तस्वीर?

लखीमपुर खीरी को छोटी काशी की उपाधि दी जाती है, जिसका सबसे बड़ा कारण यहां उपस्थित सरिताएं और उनके तटों पर सुशोभित मंदिर एवं आश्रम हैं. गोमती, ...

उल्ल नदी - औद्योगिक प्रदूषण, सीवेज और अवैध अतिक्रमण से जूझ रही है शारदा की यह सहायक

उल्ल नदी - औद्योगिक प्रदूषण, सीवेज और अवैध अतिक्रमण से जूझ रही है शारदा की यह सहायक

हिमालय की तलहटी में बसा पीलीभीत जिला अपनी सघन वन संपदा, जैविक विविधता और जल संग्रहण क्षेत्र के लिए जाना जाता है. दलदली भूमि होने के चलते यहा...

कठिना नदी - विभिन्न स्थानों पर सूख गयी है गोमती की यह प्रमुख सहायक

कठिना नदी - विभिन्न स्थानों पर सूख गयी है गोमती की यह प्रमुख सहायक

मानवीय शरीर में धमनियां रक्त संचरण करती हैं और हृदय को पोषित करते हुए समस्त शरीर की कार्यप्रणाली को सुचारू बनाये रखने में अहम भूमिका निभाती ...

पानी की कहानी - बिहार जल प्रदूषण के बीच हर घर शुद्ध जल के सरकारी दावों की योजना

पानी की कहानी - बिहार जल प्रदूषण के बीच हर घर शुद्ध जल के सरकारी दावों की योजना

बिहार के उप मुख्यमन्त्री श्री सुशील कुमार मोदी ने हाल ही में इंडियन वाटर वर्कर्स एसोसिएशन के 52वें वार्षिक सम्मेलन के समापन समारोह को सम्बोध...

अरवरी नदी - सामुदायिक संकल्पों से पुनर्जीवित हुयी एक मृत नदी की कहानी

अरवरी नदी - सामुदायिक संकल्पों से पुनर्जीवित हुयी एक मृत नदी की कहानी

नदियां हमारे जनजीवन से जुड़ा वह अहम आधार हैं, जिनके बिना जीने की हम कल्पना भी नहीं कर सकते. सनातनी संस्कृति में नदियों को मां मानकर पूजे जाने...

पानी की कहानी - गंगा संरक्षण आवश्यक, फिर गंगा बेसिन की सहायकों, जलाशयों, भूगर्भीय जल स्त्रोतों की अनदेखी क्यों?

पानी की कहानी - गंगा संरक्षण आवश्यक, फिर गंगा बेसिन की सहायकों, जलाशयों, भूगर्भीय जल स्त्रोतों की अनदेखी क्यों?

भारत की आधी से अधिक जनसंख्या का पालन पोषण एक मां के समान करती है गंगा. प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष..हर देशवासी कहीं न कहीं इसी गंगत्त्व से जुड़...

पानी की कहानी - अटल भूजल योजना के जरिये घर घर पानी पहुँचाने का मोदी सरकार का मिशन

पानी की कहानी - अटल भूजल योजना के जरिये घर घर पानी पहुँचाने का मोदी सरकार का मिशन

पूर्व प्रधानमंत्री स्व अटल बिहारी वाजपेयी की जन्म जयंती के अवसर पर सरकार ने उन्हें श्रृद्धा अर्पित करने के लिए दो अहम योजनाओं का प्रारम्भ कि...

पानी की कहानी - गाज़ियबाद में हिंडन को स्वच्छ करने का अभियान, नालों के पानी को साफ़ करने के लिए बनेगा ट्रीटमेंट प्लांट

पानी की कहानी - गाज़ियबाद में हिंडन को स्वच्छ करने का अभियान, नालों के पानी को साफ़ करने के लिए बनेगा ट्रीटमेंट प्लांट

हिंडन को प्रदुषण मुक्त बनाने के लिए गाज़ियाबाद नगर निगम नया सीवर ट्रीटमेंट प्लांट बनाने की तैयारी कर रहा है. गौरतलब है कि गाज़ियाबाद में शहरी ...

दाहा नदी - लुप्त होने की कगार पर है सीवान जिले की जीवनरेखा, संरक्षण के प्रयास जरुरी

दाहा नदी - लुप्त होने की कगार पर है सीवान जिले की जीवनरेखा, संरक्षण के प्रयास जरुरी

विगत तीन दशकों से प्रदूषण की मार झेल रही बाणेश्वरी यानि दाहा नदी की कहानी भी देश की बहुत सी छोटी नदियों की ही तरह है, जो कभी अपनी अविरल प्रव...

फल्गु नदी - अतिक्रमण और प्रदूषण की मार झेल रही है आस्था की प्रतीक रही फल्गु नदी

फल्गु नदी - अतिक्रमण और प्रदूषण की मार झेल रही है आस्था की प्रतीक रही फल्गु नदी

ऐतिहासिक फल्गु नदी, जो हिन्दुओं के लिए आस्था का प्रमुख केंद्र बनकर पवित्र गया नगरी में बहती है, आज प्रदूषण और अतिक्रमण के चलते पूरी तरह सूख ...

भैंसी नदी -  विगत एक दशक से सूखी पड़ी है गोमती की यह सहायक

भैंसी नदी - विगत एक दशक से सूखी पड़ी है गोमती की यह सहायक

नदियां, जो महज पानी ढोने वाला मार्ग ही नहीं हैं, बल्कि इनके किनारे समस्त इतिहास, समग्र विरासत और तहजीब के किस्से समाये होते हैं. ऋग्वेद के अ...

प्रदूषण कर रहा है हमारे वायु, आहार और जल को विषाक्त - माइक्रोफारेस्ट बनाकर धरती को दे सकते हैं पुनर्जीवन

प्रदूषण कर रहा है हमारे वायु, आहार और जल को विषाक्त - माइक्रोफारेस्ट बनाकर धरती को दे सकते हैं पुनर्जीवन

प्रदूषित पर्यावरण दुनिया के लिए समस्या बनता जा रहा है। इससे निपटने के लिए सरकारें नई-नई पॉलिसी ला रही हैं। जिसमें पौधरोपण, सिंगल यूज्ड प्लास...

पानी की कहानी - मर रही हैं हमारी बारहमासी नदियां, पारिस्थितिक और सांस्कृतिक संवर्धन जरुरी

पानी की कहानी - मर रही हैं हमारी बारहमासी नदियां, पारिस्थितिक और सांस्कृतिक संवर्धन जरुरी

मीठे पानी के पारिस्थितिकी तंत्र के साथ अत्यधिक छेड़खानी ने भारत की हर नदी के प्राकृतिक परिदृश्य, उसके स्वरूप और प्रवाह को प्रभावित किया है। प...

प्राकृतिक जल स्त्रोतों के लिए धीमा जहर है प्लास्टिक – समय रहते बचाव जरुरी

प्राकृतिक जल स्त्रोतों के लिए धीमा जहर है प्लास्टिक – समय रहते बचाव जरुरी

तमाम विश्व आज प्लास्टिक की मार से कराह रहा है। अमेरिका जैसा विकसित देश हो या भारत जैसा विकासशील सभी प्लास्टिक के उपयोग से बढ़ने वाली दुश्वार...

पानी की कहानी - गाज़ियाबाद, गौतमबुद्धनगर और सहारनपुर जिले बना रहे हैं हिंडन को बीमार

पानी की कहानी - गाज़ियाबाद, गौतमबुद्धनगर और सहारनपुर जिले बना रहे हैं हिंडन को बीमार

जिन जिलों को वर्षों से हिंडन अपने जल, जैविक विविधता से पोषित करती आ रही थी, आज वही जिले हिंडन की बदहाली के जिम्मेदार बने हुए हैं. हाल ही में...

पानी की कहानी- मानक से अधिक हो रहा कीटनाशक का इस्तेमाल, नाले के जहरीले पानी से 25 भैंसो की मौत

पानी की कहानी- मानक से अधिक हो रहा कीटनाशक का इस्तेमाल, नाले के जहरीले पानी से 25 भैंसो की मौत

दूषित पानी का जहर सिर्फ मनुष्यों को ही बीमार नहीं कर रहा बल्कि अब जानवर भी इसके शिकार हो रहे हैं. उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के चिनहट औद्य...

पानी की कहानी- यमुना के पश्चिमी तट के बाद पूर्वी तट का होगा सौन्दर्यीकरण

पानी की कहानी- यमुना के पश्चिमी तट के बाद पूर्वी तट का होगा सौन्दर्यीकरण

दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) द्वारा यमुना नदी के पश्चिमी तट का सफलतापूर्वक कायाकल्प कर दिया गया है. प्राधिकरण ने नदी के पूर्वी तट के सौन्...

पानी की कहानी - गायब हो रहा है गोमुख ग्लेशियर, खतरे में गंगा का अस्तित्व

पानी की कहानी - गायब हो रहा है गोमुख ग्लेशियर, खतरे में गंगा का अस्तित्व

भारत की प्रमुख व पवित्रतम मानी जाने वाली गंगा नदी एक तरफ जहां प्रदूषण का विकराल दंश झेल रही है, वहीं दूसरी ओर इसकी जलधारा को स्त्रोत देने वा...

पानी की कहानी - मनरेगा फंड से होगा नदियों का पुनर्रूद्धार

पानी की कहानी - मनरेगा फंड से होगा नदियों का पुनर्रूद्धार

पवित्र नदियों में बढ़ते प्रदूषण की रोकथाम के लिए केन्द्र सरकार के साथ ही उत्तर- प्रदेश सरकार द्वारा भी लगातार प्रयास किए जा रहे हैं, हालांकि...

गगास नदी

गगास नदी

संक्षिप्त परिचय –उत्तराखण्ड की पहाड़ी नदियों में से एक गगास नदी राज्य में बहने वाली एक लघु जलधारा है. यह एक ऐसी नदी है, जिसका उद्गम दो स्थान...

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जल पर संकट सम्पूर्ण मानव प्रजाति, वर्षों पुरानी सभ्यता एवं संस्कृति पर भी एक विकट संकट है. जल संकट की समस्या को लेकर विभिन्न प्रकृति प्रेमी, पर्यावरणविद एवं सामाजिक कार्यकर्त्ता समस्याओं की जड़ तक जाकर उनके उचित समाधानों को खोजने और ज़मीनी स्तर पर उनके क्रियान्वन को दस्तावेज़ित करने का प्रयास इस पोर्टल के माध्यम से कर रहे हैं. कृपया हमसें जुड़े एवं प्रासंगिक अपडेट प्राप्त करने हेतु अपना नाम और ईमेल भरें. 

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