देश के कई अन्य राज्यों के साथ साथ महाराष्ट्र में भी जलसंकट गहराता जा रहा है. बारिश की बेरूखी और सूरज की तपिश के बीच झुलसते महाराष्ट्र में पानी की किल्लत बढ़ती जा रही है. राज्य के सभी जलस्त्रोत नदी, नहर, नल, कुएं तालाब सब सूख गए हैं. पानी की एक-एक बूंद के लिए लोगों को काफी संघर्ष करना पड़ रहा है. वहीं इस साल राज्य में बांधों का जलस्तर भी अपने न्यूनतम स्तर 10.27 प्रतिशत पर पहुंच चुका है. जबकि पिछले साल यह आंकड़ा 38.12 प्रतिशत था.
केंद्र सरकार द्वारा छह राज्यों को सूखे को लेकर
दिशा-निर्देश जारी किए हैं. जारी दिशा-निर्देश में स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और
तमिलनाडु के बांधों में जलस्तर बेहद नीचे पहुंच गया है, जिसके आने वाले समय में ओर
अधिक गहराने के आसार हैं.
सेंट्रल वाटर कमीशन की रिपोर्ट के मुताबिक, देशभर के जलाशयों
की स्थिति काफी गंभीर है. वहीं सूबे के जलाशयों में जल का स्तर कुल क्षमता का 13 प्रतिशत ही रह
गया है. सीडब्ल्यूसी के मुताबिक, जलाशयों की क्षमता 31.26 बीसीएम जल को संरक्षित करने तक की है, जबकि 16 मई तक इनमें
पानी का स्तर महज़ 4.10 बीसीएम ही रह
गया. यह आंकड़े महाराष्ट्र के लिए आगामी खतरे की ओर इशारा कर रहे हैं.
अन्य रिपोर्ट्स के अनुसार, राज्य के करीब 961 गांव व 21 लाख ग्रामीण आबादी इस जलसंकट की चपेट में हैं. आधा
महाराष्ट्र सूखे से ग्रसित है तो लातूर, मराठवाड़ा, नासिक जैसे क्षेत्र भी पानी की कमी से जूझ रहे हैं. कहीं
सूखे की मार तो कहीं अकाल झेल रहे महाराष्ट्र में पानी की किल्लत को दूर करने के
लिए राज्य सरकार भरसक प्रयास कर रही है, किन्तु सरकार के प्रयास लोगों की प्यास बुझाने के लिए
पर्याप्त साबित नहीं हो रहे. कई क्षेत्रों में वाटर टैंकरों से भी पानी पहुंचाने
का कार्य करवाया जा रहा है.
महाराष्ट्र के औंरंगाबाद जिले के अंतर्गत तकरीबन 5000 गाँव
सूखे की चपेट में हैं. अधिकतर दिहाड़ी मजदूरी कर जीवनयापन करने वाले इन ग्रामीण
परिवारों के लिए नगर पालिका से आने वाले टैंकर का पानी पीकर जीवन जीना बहुत
मुश्किल है, क्योंकि इसका खर्चा प्रति माह 1100 रूपये से अधिक है. इसके अतिरिक्त
इस हिस्से में भूजल का स्तर बिलकुल गिर चुका है, जिससे बोरेवेल इत्यादि भी सूखे
पड़े हैं. ऐसे में बहुत से परिवारों के बच्चे खेलने कूदने की उम्र में अपनी जान
जोखिम में डालकर रोजाना मात्र दो कैन पानी लाने के लिए औरंगाबाद-हैदराबाद पैसेंजर
ट्रेन से लगभग 14 किमी का सफ़र तय करते हैं, जो पानी के लिए संघर्ष की विचलित कर
देने वाली कहानी बयाँ करता है.
हालांकि सरकार अपने अनुसार प्रयास कर रही है, परन्तु इन जिलों का अव्यवस्थित संरचनात्मक ढांचा और उसपर मौसम की मार इन सभी प्रयासों को असफल कर देता है. सरकार की कोशिशों के साथ ही राज्य में कई सामाजिक संगठन भी लोगों की मदद के लिए आगे आ रहे हैं. महाराष्ट्र में खालसा ऐड नामक संस्था द्वारा अब तक 6000 लीटर पानी बांटा जा चुका है, जिसने लोगों को कुछ राहत तो दी है, लेकिन सरकार और सामाजिक संगठनों की सजगता के बाद भी राज्य की स्थितियां सुधरने का नाम नहीं ले रही. इस जलसंकट से निपटने में बारिश ही महाराष्ट्र की सहायता कर सकती है, लेकिन चिंता की बात यह है कि मानसून अभी दूर है, जिससे परिस्थितियां दिन प्रतिदिन और भी विषम होती जा रही हैं.