जल जीवन, पारिस्थितिक तंत्र सेवाओं का प्रदाता है और बेहतर स्वास्थ्य परिणामों के कार्यान्वयनकर्ता के रूप में देखा जाता है. यह प्रकृति का एक आवश्यक घटक है, साथ ही आर्थिक विकास के लिए प्राथमिक संसाधन, अधिक ऊर्जा और भोजन प्रदान करता है, जिससे गरीबी में कमी आती है और समाज में शांति व समृद्धि का आगमन होता है. नदी- जल पर निर्भर रहने वालों के लिए नदियाँ जीवन रेखा हैं, जो उनकी आजीविका की देखभाल करती हैं और गैर-उपयोग वाले जल के द्वारा आय उत्पादन होता है. निरंतर प्रवाहित नदियां बहुत सी संस्कृतियों, पर्यटकों एवं तीर्थयात्रियों के लिए अथाह शांति, आध्यात्मिकता, “मोक्ष” व प्राकृतिक सुंदरता का प्रतीक हैं. एक पवित्र डुबकी या गंगा-जल आचमन अनगिनत परम्पराओं में अंतिम इच्छा मानी जाती है.
वर्तमान में नदियों की आत्म अनुकूलन क्षमता एवं प्रवाह में लगातार कमी आ रही है. नदी के किनारे भारी मात्रा में गाद से भर दिए गये हैं, जिस कारण बाढ़ झेलने की नदियों की कुदरती क्षमता घट गयी है. तटीय इलाकों में खेती, रसायनों का उपयोग, असंशोधित नगरपालिका सीवेज, विषाक्त औद्योगिक प्रदूषण, जन सामान्य द्वारा फैलाई गंदगी और नदी जल मार्ग में परिवर्तन आदि सभी संयुक्त रूप से नदियों को गैर-मानसून अवधि के दौरान अस्वस्थ तथा अवरुद्ध प्रदूषित इकाई के रूप में बदल कर रख देता है.
नदी के स्वास्थ्य को समझने का एक तरीका यह सोचना है कि नदी अपने सिस्टम को किस प्रकार समर्थन करती है ; अपने प्राकृतिक क्रियाकलापों को बनाए रखती है तथा समाज को संबंधित वस्तुएं और सेवाएं प्रदान करती है. नदी प्रणाली में कई प्रक्रियाएं शामिल हैं - जलविद्युत, भू-मोर्फोलॉजिकल व पर्यावरण स्थिरता, जल परिवहन, तलछट, पोषक तत्व एवं जलीय जीवन की गतिविधियों द्वारा पारिस्थितिक तंत्र को संतुलित बनाए रखना, इन सभी के अतिरिक्त बहुत से लोगों का जीवन नदी जल पर ही आश्रित है.
पर्यावरणीय – प्रवाह :
पर्यावरणीय प्रवाह जैव विविधता को संरक्षित करता है और जलवायु परिवर्तन को ध्यान में रखते हुए आजीविका का समर्थन करता है. ई-फ्लो को "नदियों की पारिस्थितिक अखंडता, उनके संबंधित पारिस्थितिक तंत्र और उनके द्वारा प्रदान की जाने वाली वस्तुओं और सेवाओं के रखरखाव के लिए आवश्यक प्रवाह" के रूप में परिभाषित किया गया है. इस प्रकार नदी में ई-फ्लो की अवधारणा एक बड़े लक्ष्य का सबसेट है ; मसलन, “एकीकृत नदी बेसिन प्रबंधन.”
अत्याधिक प्रदूषण, मौसम में अकाल्पनिक परिवर्तन, निरंतर बढ़ती पानी की मांग और मुख्य एवं सहायक नदी धाराओं में विभाजन व अवरुद्धता आदि ने नदियों के स्वास्थ्य का विनाश तथा नदी बेसिन में रहने वाले लाखों लोगों को पोषित करने की क्षमता को खत्म कर दिया है. नदी से जुड़े सभी प्रदूषण स्त्रोतों एवं प्रदूषण भारों का व्यापक लेखा होना आवश्यक है, जिससे स्वस्थ नदी के लिए वास्तविक एवं समयबद्ध प्रदूषण घटाव लक्ष्य निश्चित किये जा सके. इसीलिए जल गुणवत्ता और पर्यावरणीय प्रवाह लक्ष्यों से जुड़े नदी के स्वास्थ्य उद्देश्यों को स्पष्ट किया जाना चाहिए ताकि सरकार और हितधारक प्रगति को ट्रैक कर सकें और जल आवंटन, प्रदूषण नियंत्रण और पर्यावरणीय प्रवाह के रखरखाव के लिए वैकल्पिक विकल्प के लिए परिदृश्यों का विश्लेषण कर सकें.
वर्तमान में नदी स्वास्थ्य से जुड़े उत्तरदायित्वों को सुनिश्चित करने के लिए सार्वजनिक वार्षिक रिपोर्टिंग की प्रतिबद्धता की आवश्यकता है ; और यह सार्वजानिक तर्क- वितर्क का विषय होना चाहिए कि प्रदूषण, तलछट एवं प्रवाह का मानक स्तर क्या और कितना होना चाहिए और मानव स्वास्थ्य, व्यावसायिक उत्पादन तथा कृषि आदि पर इससे पड़ने वाले प्रभावों का हर संभव आकलन भी जरूरी है. एक योजनाबद्ध रणनीतिक बेसिन नियोजन दृष्टिकोण के अनुकूलन से भारत नदियों की पर्यावरणीय अपकर्ष को दूर कर सकता है. भारत को उन उपायों से समाधान विकसित करने की आवश्यकता है, जो नदी के स्वास्थ्य से समझौता ना करते हों. इनमें हाइड्रोपावर विकास के लिए पर्यावरण प्रबंधन, बेहतर सिंचाई और कृषि प्रक्रियाओं के अंतर्गत सावधानीपूर्वक साइट चयन तथा टिकाऊ अंतर्देशीय नेविगेशन जैसे महत्वपूर्ण आर्थिक निर्णय और गतिविधियों का प्रारंभ होना जरूरी है.
उत्तर प्रदेश सरकार के विकास कार्यक्रम के तहत लखनऊ में गोमती नदी, मथुरा-वृंदावन में यमुना नदी, वाराणसी में वरुणा नदी आदि नदियों को जैव विविधता में समृद्ध नदी प्रणालियों का प्रतीक माना गया है. सूखा प्रवण बुंदेलखंड क्षेत्र में टैंकों के अतिशय निर्माण का उद्देश्य समुदायों, अर्थव्यवस्थाओं और प्रकृति को दीर्घकालिक जल सुरक्षा प्रदान करना है. प्रदूषित जल मानव उपभोग के लिए जल की उपलब्धता को कम कर देता है और जीवित प्राणियों के अस्तित्व को खतरे में डालकर एक गंभीर वैश्विक समस्या बन जाता है. हमारे देश के अधिकांश हिस्सों में भूजल निर्भरता का स्रोत है, जो गुणवत्ता की बाधाओं से परिपूर्ण है.
स्वच्छ नदी का संरचनात्मक स्वरुप –
हम
अक्सर बाढ़ के दौरान एक शक्तिशाली नदी की कल्पना कर सकते हैं जो गैर मानसून के दौरान एक मृतप्राय नदी में तब्दील
हो जाती है, जो अपर्याप्त जल एवं जल की घटती गुणवत्ता और कुछ क्षेत्रों में जलीय जीवन
के लिए घातक भी हो जाती है. परिस्थितियों में यह बड़ा अंतर नदी के स्वास्थ्य में
निरंतर गिरावट दर्शाता है. औद्योगिक जरूरतों के नाम पर बांध के पीछे जलाशय का
निर्माण करके, सिंचाई के लिए नदी के मार्गों में जलाशयों का निर्माण करना, हाइड्रो पॉवर
के लिए बैराज स्थापित करना और पेयजल आपूर्ति के लिए भूजल पृथक्करण से जलीय धारा
संतुलन से छेड़छाड़ करना इत्यादि से नदी संरचनाओं में निरंतर परिवर्तन आ रहा है और
नदियों का कुदरती प्रवाह घट रहा है.
आज बढ़ती आबादी की बढ़ती मांगों को पूरा करने के लिए अतिक्रमण और नदी के जीवित रहने के लिए आवश्यक पारिस्थितिक पोषक संपोषण को भुलाया जाना स्वयं में ही विनाशकारी साबित हो रहा है. भारत के जीव- विज्ञान सर्वे के अनुसार गंगा नदी रोटिफायर या माइक्रोस्कोपिक जीवों की 104 प्रजातियों, मछलियों की 378 प्रजातियों, उभयचर की 11 नस्लों, सरीसृप की 27 किस्मों, 11 प्रकार के स्तनधारियों, जलीय पक्षियों की 177 प्रजातियों को पोषण प्रदान करती है. लगभग 450 मिलियन आबादी और लाखों पौधे और जीव- जंतु गंगा और उसके आस-पास के वातावरण पर निर्भर करते हैं.
नदी ताजे पानी पर आश्रित प्रजातियों का घर है और नदी के तट वनस्पतियों और जैव विविधता के लिए आवास श्रृंखला के प्रदाता के रूप में कार्य करते हैं, परन्तु भारत की प्राचीन सभ्यता की प्रतीक एवं देश की समृद्धि का केंद्रीय बिंदु रही राष्ट्रीय नदी गंगा आज कुपोषित हो रही है. एक अनुमान के अनुसार तकरीबन 2,600 एमएलडी सीवेज पानी की सफाई में पिछले तीन दशकों (1995 से 2014-15) में 4,200 करोड़ रुपये खर्च किये जा चुके हैं. इसके अतिरिक्त "नमामि गंगे कार्यक्रम" के लिए वर्ष 2019-20 तक 20,000 करोड़ रुपये के आबंटन के आदेश सरकार द्वारा दिए गये हैं.
पारिस्थितिक विज्ञान (अर्थ एवं प्रभाव) –
तकनीकी और आर्थिक दक्षता के प्रभाव में प्राकृतिक पर्यावरण पर मानव नियंत्रण की वृद्धि आज विकास और प्रगति का पर्याय बन गयी है. वहीँ दूसरी ओर, पारिस्थितिक विज्ञान, विज्ञान की वह शाखा है जो जीवों के पारस्परिक संबंधों से और उनके आस पास के पर्यावरण से जुड़े कार्यों पर केन्द्रित है. वास्तव में पर्यावरण परिवेश, वातावरण, स्थिति, जलवायु, परिस्थितियों आदि का मिला जुला स्वरुप है.
दूसरे शब्दों में, पर्यावरण को "जीवों के विकास और जीवन को प्रभावित करने वाली सभी स्थितियों और प्रभावों के कुल योग" के रूप में परिभाषित किया गया है. व्यापक रूप से कहा जा सकता है कि पर्यावरण विज्ञान पृथ्वी पर उपस्थित सभी इकाइयों का अध्ययन है. जिसमें गैर-जीवित पदार्थ ; जैसे मिट्टी और पानी और जैविक जीव जैसे सूक्ष्मजीव, पौधे, जानवर और मनुष्य, जीवित रहने और अपने अस्तित्व की निरंतरता के लिए एक दूसरे पर निर्भर करते हैं. इसलिए पारिस्थितिकी जीवित जीवों का स्वयं और स्वयं के पर्यावरण के साथ संबंधों का व्यापक अध्ययन है. इस प्रकार पारिस्थितिकी जीवों, आबादी, समुदायों आदि के विज्ञान से संबंधित है और यह कार्यात्मक प्रक्रियाएं नदियों, तालाबों, झीलों और भूमि जैसे प्राकृतिक आवास में सम्पन्न होती हैं.
इस प्रकार नदियों की भव्यता, उनकी अविरलता व निर्मलता को बनाए रखने के लिए एक आवश्यक प्रारूप के तौर पर पर्यावरण प्रवाह का वैज्ञानिक रूप से मूल्यांकन होना जरूरी है, साथ ही नदियों के स्वास्थ्य के लिए पर्यावरण प्रवाह के आबंटन को भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए. यह पवित्र नदी गंगा और उसकी सहायक नदियों की स्वास्थ्य प्रकृति को बनाए रखने के लिए जल आबंटित करने की व्यवस्था में नीतिगत बदलाव की मांग करता है.
समाज के लिए नदी- सेवाएं –
एक स्वस्थ नदी पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं की एक विस्तृत श्रृंखला प्रदान करती है, जो स्वस्थ जीवन, आजीविका और समग्र स्वास्थ्य के लिए परिस्थितियों और गतिशीलता को बनाए रखने में बेहद सहायक है. एक स्वस्थ नदी पारिस्थितिकी तंत्र के सामूहिक क्रियाकलापों के द्वारा प्रदान किए गए कई लाभ समग्र रूप से सबकी समझ में नहीं आ पाने के कारण वें तर्कसंगत आबंटन के निर्णय में एकीकृत नहीं हैं, यहां तक कि नदी संरक्षण से संबंधित मौजूदा नीतियां और प्रथाएं वर्तमान में ताजे जल के पारिस्थितिक तंत्र द्वारा प्रदत्त व्यापक सेवाओं की अनदेखी करती हैं. नदियां समाज को भांति भांति की सेवाएं प्रदान कर असंख्य लाभ प्रदान कर देश के आर्थिक संसाधनों का विकास करती हैं, जिनमें से कुछ मुख्य अग्रलिखित हैं :-
पारिस्थितिक
सेवाएं –
नदी तंत्र समाज को असंख्य लाभ प्रदान करता है, प्रावधान, विनियमन, समर्थन और सांस्कृतिक अवलोकन के माध्यम से नदियां समाज को केवल जीवन ही नहीं, अपितु जीवन का सार भी प्राप्त कराती हैं. अपने अनूठे पारिस्थितिक तंत्र और पर्यावरण प्रवाह के अंतर्गत सर्वप्रथम जीवन के लिए आवश्यक भोज्य पदार्थों के उत्पादन का प्रावधान नदियों के माध्यम से किया जाता है. जिसमें मत्स्य पालन, फसलें, औषधियां, पेयजल आदि पोषक वस्तुएं मनुष्य को प्राप्त होती हैं. जलवायु नियंत्रण के माध्यम से नदियां वर्षा की प्रक्रिया में सहायक बनकर भूजल रिचार्ज का स्त्रोत बनती हैं, साथ ही जलीय जीव- जंतु एवं पौधों के माध्यम से प्रदूषण पर भी कुदरती तौर पर नियंत्रण होता है.
कृषि
विकास में सहायक –
भारत जैसे कृषि प्रधान देशों में जहां एक बेहतर कृषि व्यवस्था नदियों और मानसून पर निर्भर करती है, वहां सिंचाई का सबसे आवश्यक स्त्रोत नदियां, नहरें, तालाब इत्यादि हैं. सिंचाई व्यवस्था पर्याप्त मात्रा एवं गुणवत्ता के जल, तलछट प्रवाह और पोषक तत्व चक्र जैसे अन्य तत्वों पर निर्भर करती है. फसल पैदावार को प्रभावित करने वाले प्रमुख उपागमों में नदियां वाणिज्यिक सिंचाई रोजगार, कर राजस्व और खाद्य सुरक्षा के रूप में लाभ प्रदान कर सकती है.
व्यवसायिक लाभ –
पानी विनिर्माण के लिए एक महत्वपूर्ण इनपुट है और इसका उपयोग व्यवसाय में लुब्रिकेशन, रंगाई, शीतलन और धुलाई आदि के उद्देश्यों के लिए भी किया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप सही समय और सही जगह पर तथा सही मात्रा में और सही कीमत पर पानी की एक स्थिर आपूर्ति की आवश्यकता होती है. इसके अतिरिक्त बिजली उत्पादन में नदियों की भूमिका सर्वाधिक अहम होती है, जिसके जरिये देश के व्यवसाय में सुगमता और साथ ही रोजगार सम्बन्धी संभावनाएं भी उत्पन्न होती हैं, जो किसी भी विकासशील देश की नींव है.
आजीविका
संरक्षक के रूप में जल –
फ्रेश वाटर फिशरीज केवल पोषण के रूप में प्रोटीन का ही नहीं बल्कि आय का भी एक महत्वपूर्ण आर्थिक स्रोत हैं, विशेष रूप से देशों को विकसित करने में नदियों की महत्त्वपूर्ण भूमिका है. नदियां तटीय प्रदेशों में बाढ़कृत मैदानों के माध्यम से किसानों की आजीविका के प्रमुख स्त्रोत के रूप में उभरती हैं, साथ ही कम वर्षा वाले क्षेत्रों में उत्पादन का एकमात्र स्त्रोत नदी- तालाब इत्यादि ही हैं, जिनके अभाव में एक बड़ी जनसंख्या का रोजगार प्रभावित होता है. नदियां पशुधन उपभोग के चरागाह क्षेत्रों के लिए जल की उपलब्धता कराते हैं तथा घरेलू खपत के लिए विभिन्न खाद्य पदार्थ, औषधीय पौधों की फसल, वनीय क्षेत्र से ईधन एवं स्थानीय निर्माण के लिए लकडियां प्रदान कराने में भी सहायक हैं.
स्वास्थ्य
पोषक –
स्वस्थ ताजे पानी के पारिस्थितिक तंत्र, प्रदूषण तथा मानव व पशु अपशिष्ट के साथ-साथ जल जन्य या दूषित जल से संबंधित बीमारियों को कम करने के लिए अत्यंत अनिवार्य है. खाना पकाने, पीने, स्नान करने और कपड़े धोने के लिए स्वच्छ पानी का उपयोग करने से स्वास्थ्य लाभ प्राप्त किए जाते हैं और पानी से उत्पन्न संक्रमण के जोखिम को कम करने के लिए ताजे, पोषक एवं स्वास्थ्यवर्धक जल का प्रयोग किया जाना जरूरी होता है.
सांस्कृतिक
धरोहर के रूप में जल स्त्रोत –
नदियां केवल अर्थव्यवस्था को सुचारू रखने का एक उपागम ही नहीं, अपितु किसी भी देश की सांस्कृतिक विरासत को भी जीवंत रखने में अग्रणी भूमिका का वहन करती हैं. नदियों के किनारे इतिहास पनपता है, बहुत सी सभ्यताएं विकसित होती हैं तथा धार्मिक सद्भावना को पोषण भी मिलता है. विशेष तौर पर भारत जैसे देश में नदियों को माँ के स्वरुप में देखा जाता है, कुंभ जैसे बड़े मेलों, उत्सवों, पर्वों आदि का आयोजन भी नदियों के किनारे किया जाता रहा है. जिसके चलते देश में धार्मिक टूरिज्म को भी बढ़ावा मिलता है, साथ ही मानसिक शांति के अनोखे माध्यम के रूप में भी कलकलाती नदियों की तुलना अन्यत्र किसी भौतिक स्त्रोत से नहीं की जा सकती है.
पारिस्थितिक तंत्र प्रबंधन के लिए नदी सूत्र -
1. नदियां
हमारी प्राकृतिक विरासत का हिस्सा हैं.
2. जल, भू-आकृतियों
और कुदरती-निवास प्रशासनिक सीमा का पालन नहीं करते.
3. नदियां प्राकृतिक घटनाएं हैं तथा
उन्हें पाइपलाइनों या नहरों से अलग-अलग दिशाओं में काटा नहीं जा सकते हैं.
4. नदी
कोई नाली नहीं है, इसीलिए नदियों को नालों से अलग करना ही होगा.
5. बाढ़कृत पारिस्थितिक प्रणालियां हजारों-हजार
सालों के बाद विकसित हुई हैं, जिस कारण उनका समग्र विकास करना अनिवार्य है.
6. एक नदी,
नदी बेसिन के हाइड्रोलॉजिकल एकता का एक अविभाज्य अंग है और
लैंडस्केप घटक पानी और बाढ़ के मैदानों के प्रवाह के साथ जुड़े हुए हैं.
7. भूजल गैर-मानसून मौसम में नदी के प्रवाह को
विशेष रूप से बनाए रखता है.
8. स्वस्थ सहायक नदियां एवं झील एक नदी के जीवन कार्यों को बनाए रखते हैं.
9. नदियों
की पारिस्थितिक प्रणालियां मीठे पानी में से सबसे अधिक उत्पादक पारिस्थितिक प्रणालियों में से एक हैं - जीवों का उत्पादन और रक्षा करता है.
10. नदियों
का प्रवाह उन्हें जीवंत रखता है, यदि प्रवाह नहीं होता है, तो
नदी केवल एक नाला भर है. प्रवाह नदी को स्वच्छ बनाता है.
जीवनदायिनी
नदियों की रक्षा के लिए अब भी हम नहीं चेते तो हमारे जीवन पर संकट पैदा हो जाएगा, वर्तमान में ऐसी योजनाबद्ध नीति निर्माण की जरुरत है जिसमें प्रत्येक वर्ग यह महसूस कर सकें कि
नदी की सेवा में उनकी भूमिका अहम है, नदी के विकास में धर्म- संप्रदाय का भेदभाव
नहीं अपितु सभी वर्गों का सद्भाव होना चाहिए.
नदियों
के विकास की योजनाएं किसी व्यक्ति के निजी चिंतन पर आधारित नहीं हो सकती बल्कि सामूहिक चिंतन का परिणाम होती है. अगर
सुझाओं में कोई कमी या कठिनाई हो तो सबके सामने उसकी खुली बहस चले या फिर इन पर
अमल करने की दिशा में कदम बढ़ाया जाए. साथ ही सरकार पर शांतिपूर्ण तरीकों से दबाव
डाल जाना चाहिए, ताकि नदियों के विकास पर ध्यान केन्द्रित किया जा सके.
नदियां प्रकृतिदत्त उपहार हैं, जिनका विकास किये जाने की आवश्यकता है, ना कि विनाश. यदि अपनी अति भौतिकवादी प्रवृति से दूर हटकर आज भी हमने नदियों के स्वास्थ्य पर ध्यान नहीं दिया, तो भविष्य अकल्पनीय हो सकता है. जल जीवन है और जल की महत्ता को योजनबद्ध तरीके से समय रहते नहीं समझा तो यह केवल विनाश का संकेत बन कर रह जाएगा.