क्या नदी, क्या तालाब, क्या नल, क्या नहर, क्या खेत, क्या खलिहान, चारों तरफ बस भयंकर सूखा दिखाई पड़ रहा है. ये दृश्य है गुजरात का जो आज पानी की एक-एक बूंद के लिए तरस रहा है. गर्मी शुरू होते ही गुजरात एक बार फिर भीषण जल संकट का सामना कर रहा है. पिछले वर्ष भी इस मौसम में गुजरात ऐसे ही भयावह स्थिति से ग्रसित था और इस बार भी इस राज्य में बड़े पैमाने पर जल संकट का खतरा मंडरा रहा है. वहीं सौराष्ट्र, उत्तर- दक्षिण गुजरात और कच्छ की स्थिति सबसे ज्यादा दयनीय है, जहां लोगों के पास पीने के लिए तक पर्याप्त पानी नहीं है. प्रदेश सरकार और प्रशासन लगातार इस जल संकट से निपटने की कोशिश कर रहा है, लेकिन विकराल रूप धारण कर चुकी स्थितियां उन कोशिशों को असफल करती साबित हो रही हैं.
आलम यह है कि जल की कमी के चलते गुजरात में चौतरफा त्राहिमाम मचा है और लोग
पलायन के लिए मजबूर हैं. प्रदेश के 20 से ज्यादा जिलों के सैकड़ों गांव सिंचाई,
दैनिक कार्यों के साथ ही पेयजल के भी मोहताज हो चुके हैं. इन गांवों में बमुश्किल
हफ्ते में दो बार पानी आता है. वहीं कई जगहों पर पेयजल की आपूर्ति भी टैंकरों के
माध्यम से की जा रही है. वहीं नर्मदा बांध सहित राज्य के प्रमुख बांधों में जल का
स्त्रोत काफी नीचे चला गया है. नदियां सूख रही हैं, नहरें और तालाब विलुप्त हो रहे
हैं. रिपोर्ट्स की मानें तो राज्य में 110 ऐसे बांध हैं, जहां पानी की एक बूंद भी
दिखाई नहीं दे रही.
देश में सुखा पूर्वानुमान प्रणाली प्रबंधन विशेषज्ञ आईआईटी
गांधी नगर के वैज्ञानिक फरवरी में ही सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंप चुके थे,
जिसके अनुसार 2019 की गर्मियों में आधा भारत भयंकर सूखे की चपेट में आने वाला है.
आईआईटी के जल एवं जलवायु विभाग के द्वारा वर्षा और मौसम संबंधी आंकड़ों, मिट्टी की
नमी एवं सूखे के कारणों का अध्ययन कर यह शोध किया गया, जिसके आधार पर आईआईटी के
एसोसिएट प्रोफेसर विमल मिश्रा ने बताया,
“देश का लगभग 47 प्रतिशत हिस्सा सूखे की चपेट में है, जिसमें से 16 प्रतिशत चरम पर पहुंच चुका है. अरुणाचल प्रदेश, गुजरात, झारखंड, दक्षिणी आंध्रप्रदेश इत्यादि राज्यों के अंतर्गत विभिन्न जिले सूखे की चपेट में हैं और यदि मानसून से पहले गर्मी अत्याधिक होती है तो यह अधिक प्रभावित करेगा. भविष्य में ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के चलते सूखे की विभीषिका अधिक बढ़ जाएगी क्योंकि हम भूजल को संरक्षित करने की ओर ध्यान ही नहीं दे रहे हैं. सरकार को निश्चित रूप से इस दिशा में कड़े कदम उठाने की आवश्यकता है.”
हालांकि प्रदेश सरकार इस समस्या पर गंभीरता से कार्य करने के दावे कर रही है,
परन्तु उनकी सच्चाई आपको बन्नी क्षेत्र में जाकर आसानी से पता लग जाएगी, भुज के
उत्तरी भूभाग में स्थित यह क्षेत्र अपनी विविध वनस्पतियों के कारण एशिया के सबसे
बेहतर घास के मैदानों की श्रेणी में आता था..परन्तु बारिश में निरंतर कमी, घटते भूजल
और सरकारी लापरवाही के चलते आज यह किसी रेगिस्तान की भांति दिखाई देता है.
गौरतलब है कि गुजरात सरकार ने वर्ष की शुरूआत में ही प्रदेश में 300 करोड़ के
बजट वाले जल संरक्षण कार्यक्रम को आगे बढ़ाने का प्रयास किया था, किन्तु लोकसभा
चुनावों की रेस में यह अभियान काफी पीछे रह गया. खबरों की मानें तो सरकार ने उद्योगों को दिए जाने वाले पानी
में कटौती करते हुए उन्हें व्यवसायिक उपयोग
के लिए 75 फीसदी रिसायकल
पानी काम में लेने को कहा है.
वहीं गुजरात के
मुख्यमंत्री विजय रूपाणी भी इस जल संकट से निपटने के लिए जिला कलेक्टरों के साथ इस
मामले को लेकर बैठक की. साथ ही संकट झेल रहे इलाकों में पाइप लाइन और दूर के
क्षेत्रों में टैंकरों के माध्यम से पानी मुहैया कराने के निर्देश दिए.
निरंतर बारिश की कमी
के चलते बहुत से बांधों में भी जलस्तर घट चुका है. भुज में उपलब्ध 23 बांधों में
से मात्र 3 में ही पानी है, बाकि पूरी तरह सूख चुके हैं. गुजरात में आए जलसंकट पर
विजय रूपाणी का कहना है सभी बांधों में पानी बहुत कम
है, जिससे आपूर्ति करना बहुत मुश्किल
है.
हालांकि, सरदार सरोवर बांध का धन्यवाद, जिसमें नर्मदा नहर नेटवर्क है. इसमें इतना पानी है कि लोगों को जुलाई के अंत
तक किसी भी प्रकार की कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ेगा. लेकिन सभी इलाकों में पानी
को पहुंचाना एक बड़ी चुनौती है. पानी को बांध से करीब 500 किलोमीटर दूर के क्षेत्रों तक आपूर्ति करना ज्यादा कठिन होगा. हालांकि जिला
प्रशासन को टैंकरों के माध्यम से पानी पहुंचाने का निर्देश दे दिया गया है.
देशभर में चुनावों की गर्मी
अभी तक ठण्डी भी नहीं हुई थी कि मौसम की मार से गुजरात में भीषण जल संकट गहरा चुका
है. अहमदाबाद, सूरत के कुछ क्षेत्रों को छोड़ दें तो आधे से ज्यादा गुजरात आज
बूंद- बूंद पानी के लिए संघर्ष कर रहा है. विशेषकर कच्छ और उत्तर गुजरात के बहुत
से स्थानों पर परिस्थितियां अधिक विकट हैं. यहां बन्नी क्षेत्र के अंतर्गत अधिकतर
अर्द्ध-घुमंतू देहाती समाज की जीविका का आधार मवेशी हैं, जो पानी और चारे का अभाव
झेल रहे हैं. परिणामस्वरूप त्रस्त जनजीवन पलायन करने पर विवश है.
गुजरात के विभिन्न स्थानों पर
कहीं दिन में एक बार पानी मिल रहा है, कहीं सप्ताह
में एक बार तो कहीं वो भी नहीं. जल संकट का पूर्वानुमान होने के बावजूद सरकार के
तमाम प्रयास और प्रबंध धरे रह गए. इसे सरकार की चुनावों के प्रति सक्रियता मान
लीजिए या फिर आम जन की समस्याओं के प्रति लापरवाही, लेकिन इसका भुगतान तो जनता को
ही करना पड़ रहा है. आज गुजरात में खेत सूख रहे हैं, लोग पलायन कर रहे हैं, जानवर
प्यास से मर रहे हैं, तो इसका जिम्मेदार किसे ठहराया जायेगा. सवाल यह है कि अब
स्थितियों को संभालने का प्रयास करने वाली सरकार अब तक स्थितियां बदहाल होने का
इंतजार क्यों करती रही?