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कोसी नदी अपडेट - कोसी पीड़ित विकास प्राधिकार के तीसरे अध्यक्ष स्वर्गीय डॉ. अब्दुल गफ़ूर से हुई बातचीत के कुछ अंश

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  • Dr Dinesh kumar Mishra Dr Dinesh kumar Mishra
  • March-13-2022
कोसी पीड़ित विकास प्राधिकार के तीसरे अध्यक्ष डॉ. अब्दुल गफ़ूर (अब स्वर्गीय) से हुई मेरी बातचीत के कुछ अंश। वह कहते हैं,... मैं पहले तटबन्ध पीड़ित हूं, प्राधिकार का अध्यक्ष बाद में।

पहले जो मूल डिजाइन के हिसाब से कोसी पर तटबन्ध बनने वाले थे, उसके हिसाब से पूर्वी तटबन्ध धेमुरा धार तक था, बनगांव सड़क के नजदीक, और पश्चिमी तटबन्ध को झमटा से होकर गुजरना था। इतना फासला था दोनों तटबन्धों के बीच, और बना क्या? पूरब में महिषी भी तटबन्ध के बाहर और पश्चिम में भन्थी और घोंघेपुर भी तटबन्ध के बाहर। कहां 18 किलो मीटर की डिजाइन की गई दूरी और कहां 8 किलोमीटर का वास्तविक फासला! अब जो तटबन्ध के अन्दर फंसता है, वह तो बरबाद होने के लिये ही वहां रहेगा, यह तो तटबन्ध बनते समय ही तय हो गया था। तब फिर लीपापोती शुरू हुई - घर के बदले घर, जमीन के बदले जमीन, घर पीछे एक आदमी को नौकरी, नाव का इन्तजाम, पुनर्वास में दो से पांच डिसमिल जमीन का प्लाट। गड़बड़ यहीं से शुरू हुई।

जिसने भी पुनर्वास की योजना बनायी हो उसे पता ही नहीं था कि गांव और शहर में कोई फर्क होता है। हम तो एक बार को रह लेंगे पांच डेसिमल में, मगर मुर्गी और बत्तख को कौन समझायेगा कि वह इधर-उधर न जायें। हमारी बकरी और गाय-बैल कहां चरेंगे? लोग टट्टी-पेशाब के लिये कहां जायेंगे? पुनर्वास से सात-आठ किलोमीटर पर खेत हो गये, जहां हल-बैल लेकर किसान जायेगा और उतनी ही दूरी रोज लौटेगा। खेत पर खाना पहुंचाने का काम औरतें या बच्चे करते हैं वह भी रोज उतना ही चलेंगे। फिर पुनर्वास में पानी लग गया तो नब्बे फ़ीसदी लोग पुराने गांव में वापस आ गये। बस हो गया पुनर्वास। इस पुनर्वास की जमीन की सरकार हर साल बन्दोबस्ती करती है खेती के लिये और पैसा अपने पास रख लेती है। लोग वापस अपने गांव क्या चले गये, सरकार जमींदार हो गयी। अब इसमें भी दलाल पैदा हो गये हैं। सालाना नीलामी में खेत ले लेते हैं और दूसरे को दे देते हैं।

मैं कोसी पीड़ित विकास प्राधिकार का तीसरा अध्यक्ष हूं। मुझसे पहले लहटन चौधरी और विनायक प्रसाद यादव इसके अध्यक्ष रह चुके हैं। किसी के समय में कोई काम नहीं हुआ, प्राधिकार को कोई राशि कहीं से नहीं मिली। लहटेन चौधरी के जमाने में कोसी पीड़ित विकास प्राधिकार नाम की एक पुस्तिका छपी थी जिसे आपने देखा होगा। बस वही एक खर्चा हुआ है प्राधिकार के नाम पर। विनायक बाबू के जमाने में वह भी नहीं हुआ और ना ही मेरी अवधि में कुछ हुआ। शंकर प्रसाद टेकरीवाल यहीं सहरसा के रहने वाले हैं और जब वह वित्तमंत्री बने थे तब उन्होंने पांच करोड़ रुपये प्राधिकार के नाम स्वीकृत किया था जिससे कुछ काम होता मगर हमारे यहां पैसा खाते में जमा होने की प्रक्रिया इतनी घटिया और जटिल है कि वह पैसा स्वीकृत होने के बाद भी नहीं मिल पाया। बस उसके बाद फिर कुछ नहीं हुआ और न अब होगा।

एक समय था जब कोसी और उसके तटबन्ध की समस्या सबसे जुदा थी मगर तटबन्ध तो अब सभी छोटी-बड़ी नदियों पर बने हुए हैं और सभी के अन्दर लोग रहते हैं और सबको करीब-करीब एक जैसी मुसीबतें हर साल झेलनी पड़ती है तो फिर अब कोसी में वह पहले वाली खासियत कहां बची हैं? अब अगर कोई पैसा तटबन्ध के अन्दर रहने वालों पर खर्च होगा तो वह सिर्फ कोसी वालों पर क्यों होगा? गंडक, बूढ़ी गंडक, बागमती, कमला, या महानंदा के बीच रहने वालों ने क्या गुनाह किया है कि वही सहूलियतें उनको नहीं मिलेंगी? अब अगर कोसी के अन्दर वालों पर कोई खर्च होता है तो सरकार के अन्दर ही बवाल खड़ा हो जायेगा। पहले थोड़ी बहुत उम्मीद थी मगर अब तो कुछ करने के लिये पैसा ही नहीं है। जब कहीं पैसा है ही नहीं तब किस बात के पीड़ित और किस बात का प्राधिकार?

कोसी तटबन्धों के अन्दर अस्सी पंचायतें हैं बीरपुर से लेकर कोपड़िया तक। घनी आबादी वाला इलाका है, एक पंचायत में दस हजार लोग भी हों तो आठ लाख होते हैं। जाकर देख आइये किन हालात में लोग जीते हैं। मरने की दुआएं मांगते हैं पर मौत तो अपने हाथ में नहीं है। एक घर से दूसरे घर में जाने के लिये नाव चाहिये। पूजा करने या नमाज़ पढ़ने जाना हो तो नाव चाहिये, टट्टी-पेशाब के लिये नाव चाहिये। कभी बरसात में आकर हमारी हालत देख जाइये।

कोसी पीड़ितों की समस्या का कोई समाधान नहीं है सिवाय इसके कि बांध खत्म कर दिया जाये। अब यह काम नदी कर देती है तो बहुत अच्छी बात होगी वरना एक न एक दिन तटबन्धों के अन्दर रहने वाले लोग तंग आकर यह काम खुद करेंगे। दूसरी नदियों में तो यह हो भी रहा है जहां बरसात के मौसम में आये दिन तटबन्ध काटा जाता है। मैं यह बात कोसी पीड़ित विकास प्राधिकार का अध्यक्ष होने के बावजूद पूरी जिम्मेदारी के साथ कह रहा हूं। मैं पहले तटबन्ध पीड़ित हूं और प्राधिकार का अध्यक्ष उसके बाद। कोसी तटबन्ध ही हमारी समस्या है और अब यही है उसका एकमात्र समाधान।

डॉ. अब्दुल गफूर
ग्राम /पोस्ट - भेलाही वाया महिषी,
जिला सहरसा, बिहार
यह साक्षात्कार दिसम्बर, 2004 में लिया गया था।
स्रोत- दुइ पाटन के बीच में - कोसी नदी की कहानी
लेखक : दिनेश कुमार मिश्र


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