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कोसी नदी अपडेट - बिहार बाढ़, सुखाड़ और अकाल, 52 वर्षों में क्या बदला, वही सूखा-बाढ़ और वही पश्चिमी कोसी नहर

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  • Dr Dinesh kumar Mishra Dr Dinesh kumar Mishra
  • April-16-2022

बिहार-बाढ़-सूखा-अकाल


52 वर्षों में कुछ भी तो नहीं बदला है। वही सूखा, वही बाढ़ और वही पश्चिमी कोसी नहर।

आर्यावर्त-पटना अपने 3 मई 1970 के सम्पादकीय में 'सूखे की स्थिति' शीर्षक से लिखता है कि, 'सूखे की स्थिति का अध्ययन कर इस सम्बन्ध में सरकार को उचित परामर्श आदि देने के लिये केंद्रीय सरकार के कुछ अफसरों का एक दल बिहार का दौरा करने वाला है। इसकी जानकारी केंद्रीय कृषि-खाद्य मंत्रालय के राज्य मंत्री श्री ए.पी. शिन्दे ने गत शुक्रवार को लोकसभा में दी है। मई-जून के महीनों में पूरा बिहार सूखा ही सूखा नजर आता है इसलिये केंद्रीय सरकार के अफसरों को सूखे का दृश्य तो सभी जगह देखने को मिल सकता है किन्तु उनका उद्देश्य यह देखना है कि वर्षा नहीं होने पर भी इस राज्य के किस भाग में कैसी व्यवस्था की जाये जिससे बिहार के किसान सूखे का सामना आसानी से कर सकें। यदि इसका अध्ययन कर सूखे से मुक्ति दिलाने के प्रबन्ध भी तत्परता पूर्वक किये जाने वाले हों तो निस्सन्देह बिहार के लोगों को अधिक संतोष होगा। किन्तु क्या ऐसी आशा की जा सकती है?

सूखा और बाढ़ यह दो समस्याएं ऐसी हैं जिनसे बिहार तबाह रहता है किन्तु इन दोनों समस्याओं की ओर न तो राज्य सरकार ने और न केंद्रीय सरकार ने ही तत्परता पूर्वक ध्यान दिया है। बिहार में राज्यव्यापी भयंकर सूखा 1966-67 में पड़ा था और उसके कारण इस राज्य को भुखमरी का शिकार होना पड़ा था। यदि सरकार को इसकी चिन्ता सचमुच हुई रहती तो इसका अध्ययन उसी समय कराया गया होता और सूखे से इस राज्य को मुक्ति दिलाने की व्यवस्था उसी समय की गयी होती किन्तु इस ओर ध्यान दिये जाने की बात तो दूर रही सिंचाई के लिये पश्चिमी कोसी नहर योजना जैसी महत्वपूर्ण योजना अब तक अनिश्चित अवस्था में पड़ी है।

इससे यह स्पष्ट लक्षित होता है कि अर्थाभाव के कारण अथवा अन्य कारणों से ऐसी आवश्यक योजनाओं को सरकार महत्व नहीं देती। जहां इस तरह सिंचाई की व्यवस्था करने में ढिलाई दिखाई जाती है वहां स्वभावत: ऐसी आशा नहीं होती कि केंद्रीय सरकार के अफसरों का दल सूखे का सामना करने के लिये जो सुझाव देगा उसके कार्यान्वयन पर भी तत्परता पूर्वक ध्यान दिया जायेगा।

केवल सूखे की ही बात नहीं, बाढ़ के संकट से लोगों को मुक्त रखने के सम्बन्ध में भी ऐसी ही उपेक्षा नीति बरती जाती है। गत वर्ष बाढ़ के समय जब सिंचाई मंत्री डॉ. के.एल. राव ने बिहार राज्य के बाढ़ वाले इलाकों का दौरा किया था उस समय उनका ध्यान गंगा के दियारा इलाकों की ओर खास तौर से गया था और उन्होंने उस इलाके के लोगों को संकट मुक्त करने के लिए कुछ सुझाव दिये थे किन्तु ऐसा मालूम होता है कि बाढ़ का समय बीत जाने के बाद यह बातें भुला दी गयीं।

1954 की बाढ़ के समय तो केंद्र ने आश्वासन दिया था कि बाढ़ से मुक्ति दिलाने के लिये सभी सम्भव उपाय किये जायेंगे और उसके लिये जितना भी खर्च होगा वह किया जायेगा। शुरू में तो इसके लिये कुछ नदियों के दोनों किनारों पर तटबन्ध बनाये गये जिन से लाभ भी हुआ किन्तु बाद में यह कार्य अधूरा छोड़ दिया गया और अब तो बाढ़ की समस्या की ओर कोई भी ध्यान भी नहीं देता। किन्तु हम इन सब के लिए दोषी मुख्यता केंद्रीय सरकार को नहीं मानते। जब राज्य सरकार को ही इन सब की चिन्ता नहीं तब केंद्र को हम क्यों दोषी माने? इस राज्य के किसान सूखे से ही परेशान नहीं हैं, राज्य के बड़े भाग में कीड़ों ने भी इस फसल को भारी नुकसान पहुंचाया है, किन्तु इस सम्बन्ध में केंद्रीय सरकार राज्य सरकार की विस्तृत रिपोर्ट की अब तक प्रतीक्षा ही कर रही है।

यहां हम याद दिला दें कि पश्चिमी कोसी नहर का मूल प्रस्ताव 1962 में तैयार हुआ था और तब इसकी लागत 13.49 करोड़ रुपये बतायी गयी थी। अब तक इस पर सवा सौ गुना से अधिक राशि खर्च हो चुकी है। सिंचाई कितनी होती यह शोध का प्रश्न है। इसका शिलान्यास जगजीवन राम, डॉ. श्री कृष्ण सिंह, बिनोदानन्द झा, अब्दुल गफूर, इन्दिरा गांधी, लाल बहादुर शास्त्री कर चुके हैं। अब पुनः यह नहर चर्चा में है।


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