पानी की कहानी
  • होम
  • जानें
  • रिसर्च
  • संपर्क करें

कोसी नदी अपडेट - 5 जनवरी, 1971 को अंग्रेज़ी दैनिक दी इंडियन नेशन में प्रकाशित लेख "कोसी कैनाल स्कैंडल"

  • By
  • Dr Dinesh kumar Mishra Dr Dinesh kumar Mishra
  • April-30-2022
बिहार में बाढ़ -सूखा और अकाल का अध्ययन करते हुए मुझे यह संपादक के नाम एक पत्र पढ़ने को मिला, जिसे जानकीनगर, पूर्णिया के किन्ही भीष्म सिंह ने लिखा था जो पटना से प्रकाशित होने वाले अंग्रेज़ी दैनिक दी इंडियन नेशन में 'कोसी कैनाल स्कैंडल' (Kosi Canal Scandal) के शीर्षक से 5 जनवरी, 1971को प्रकाशित हुआ था।


वह कहते हैं, "महाशय, आज सुबह जब मैं पटना से लौटा तो मैंने देखा कि बनमनखी के कोसी कैनाल डिवीजन कार्यालय का माहौल बहुत ही तनावपूर्ण और चिन्ताजनक था। मैंने देखा कि डिविजनल ऑफिस के सामने धरना देने वालों की एक पलटन बैठी हुई है, जो पचास के आसपास रहे होंगे और जिनके साथ लाल कपड़ों पर लिखी हुई इबारतें थी। जिन पर विभिन्न संगठनों के नाम लिखे हुए थे और इनमें राज्य सरकार के अराजपत्रित कर्मचारी भी शामिल थे। दूसरे कर्मचारी यूनियनों की भी वहाँ मौजूदगी थी जो 'इंकलाब जिंदाबाद' के नारे लगा रहे थे और इसके साथ ही साथ 'एग्जीक्यूटिव इंजीनियर मुर्दाबाद' के नारे लग रहे थे। उसके साथ और भी बहुत से नारे लग रहे थे जो ऐतराज करने लायक थे। मुझे लगा कि मुझे इस धरने की पृष्ठभूमि जाननी चाहिये।

"आज का दिन 30 दिसम्बर है और सिंचाई के लिये इस नहर से पानी 15 दिसम्बर को ही छोड़ दिया जाना चाहिये था, लेकिन अभी तक यह पानी नहर में नहीं छोड़ा गया है। मैं ऐसा विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि इस इलाके में जितनी गेहूँ की फसल लगी हुई है उसमें से पचास प्रतिशत फसल या तो अब तक सूख चुकी है या पूरी तरह से समाप्त होने के कगार पर है।

जानकी नगर शाखा नहर की इस क्षेत्र में न तो कोई मरम्मत हुई है और न ही उसकी तलहटी से मिट्टी निकाल कर उसकी सफाई की गयी है। यहाँ के अधिकारी 9 अगस्त, 1970 से क्या कर रहे थे यह वही बेहतर बता सकते हैं।

मैंने आपके पत्र के माध्यम से पहले भी रिपोर्ट की थी और एक बार फिर कह रहा हूँ कि इस दफ्तर के काम-काज का रवैया बहुत ही बेढंगा है। यह कहने में बड़ा विचित्र लगता है लेकिन यह सच है कि क्षेत्रीय विकास आयुक्त ने इस डिवीजन की पूरी तरह से अनदेखी की है। वह कभी भी दूर-दराज से बुलाये गये किसानों की बैठकों में नहीं आते हैं जबकि यह बैठकें इसी अधिकारी के नाम पर बुलाई जाती हैं। परिणाम यह होता है कि किसान निराश होकर वापस लौट जाते हैं क्योंकि साहब आते ही नहीं है। मैंने यहाँ के लोगों से एक ऐसे क्षेत्र विकास आयुक्त के बारे में सुना है जो सिंचाई की माँग के समय घर-घर जाया करते थे पर अब यहाँ एक ऐसा अफसर है जो अंदरूनी इलाके की ओर जाता ही नहीं है।

अत: मैं वर्तमान मंत्रिमंडल से आग्रह करता हूँ कि इस तरह की दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थिति का संज्ञान ले और यथाशीघ्र इस समस्या का समाधान करें ताकि किसानों को राहत मिले क्योंकि वह पूरी तरह से बेसहारा हो गये हैं। मुझे दु:ख के साथ यह कहना पड़ता है कि वर्तमान जो भी अधिकारी इस डिवीजन में रखे गये है वह इस डिवीजन पर बोझ हैं। दुर्भाग्यवश, उनको क्षेत्र में काम करने का कोई अनुभव ही नहीं है। गन्दी राजनीति खेलने के अलावा उनके पास कोई भी तकनीकी या किसी काम का अनुभव नहीं है कि उन्हें इतने बड़े डिवीजन में रखा जाय। वह किसी भी तरह से इस काम में उपयोगी नहीं होंगे। मुझे पता लगा है कि उनमें से कुछ तो किशनगंज के किसी महाशय की सिफारिश से यहाँ रखे गये हैं। इससे न तो प्रशासन को कोई लाभ पहुँचेगा और न ही गरीब,जरूरतमन्द किसान लाभान्वित होंगे।

मैं एक बार फिर वर्तमान मंत्रिमंडल से यह आग्रह करता हूँ इसके पहले यह डिवीजन पूरी तरह से जनता और सरकार दोनों के हितों की रक्षा करने से एकदम बेकार हो जायेँ, यहाँ बिना समय गंवाये एक स्थायी एग्ज़ीक्यूटिव इंजीनियर की नियुक्ति की जाये। यह एक समयानुकूल चेतावनी है भले ही इसको कई बार कहा गया हो। क्या सरकार इस पर त्वरित कार्यवाही करेगी?"


भीष्म सिंह,
जानकी नगर, पूर्णिया
30 दिसम्बर, 1970

पूर्णिया जिले से तो यह पत्र इसलिये लिखा गया होगा कि वहाँ सिंचाई व्यवस्था होते हुए भी काम नहीं कर रही थी। इससे एक ओर तो खरीफ की फसल के समय की सरकार की लापरवाही जाहिर होती है और दूसरी ओर रब्बी की फसल के लिये पानी न मिल पाने की अंदेशा था। यहाँ यह याद दिलाना सामयिक होगा कि 1970 का वर्ष बिहार में सूखे का वर्ष था और हथिया का पानी अधिकांश जगहों पर हुआ ही नहीं था, जिसका असर 1971 तक हुआ था। जब वर्षा के अभाव में भी कोसी नदी की नहरों से पानी न मिल सके तो फिर नहरों का फायदा ही क्या हो सकता है? बाकी सिंचाई योजनाओं का जो हश्र हुआ होगा वह तो समझा ही जा सकता है।


हमसे ईमेल या मैसेज द्वारा सीधे संपर्क करें.

क्या यह आपके लिए प्रासंगिक है? मेसेज छोड़ें.

More

  • पानी की कहानी - वर्ल्ड वाटर डे विशेष : भूजल संरक्षण है आवश्यक

  • पानी की कहानी - गंगा में रोजाना डंप किया जा रहा है 280 करोड़ लीटर अपशिष्ट, नियमों का उल्लंघन कर रही 190 औद्योगिक इकाइयों को केंद्र सरकार ने किया बंद

  • आदि बद्रीबांध निर्माण को लेकर हरियाणा और हिमाचल प्रदेश में हुआ समझौता - सरस्वती को मिलेगा पुनर्जीवन

  • Raman River Rejuvenation Model

  • पानी की कहानी - क्रिसमस डे के मौके पर मोहम्मदी क्षेत्र में विवेकानंद घाट पर चलाया गया स्वच्छता अभियान

  • हसदेव अरण्य कोयला खनन - उद्योग, आर्थिक विकास आवश्यक लेकिन क्या जीवनदायक जंगल, साफ पानी, ताजी हवा जरूरी नहीं

  • पानी की कहानी - नीम नदी को पुनर्जीवन देने के भागीरथ प्रयास हुए शुरू

  • पानी की कहानी - नर्मदा निर्मलता से जुड़े कुछ विचारणीय सुझाव

  • पानी की कहानी - हिंडन नदी : एक परिचय

  • Exhibition and Workshop on Urban Water System in Gurgaon: Pathways to Sustainable Transformation Event

  • नेशनल वाटर कांफ्रेंस एवं "रजत की बूँदें" नेशनल अवार्ड ऑनलाइन वेबिनार 26 जुलाई 2020 Event

  • पानी की कहानी - लॉक डाउन के नियमों का उल्लंघन करते हुए जारी है यमुना नदी से अवैध खनन

  • Acute Encephalitis Syndrome Reduction through Promotion of Environmental Sanitation and Safe Drinking Water Practices

  • पचनदा बांध परियोजना - डैम प्रोजेक्ट पूरा होने से बीहड़ांचल को मिलेगा धार्मिक महत्त्व, बनेगा पर्यटन केंद्र

  • पानी की कहानी - हिंडन को प्रदूषण मुक्त करने के लिए एनजीटी ने शुरू किये प्रयास, पर्यावरण विशेषज्ञों ने जन सहभागिता को बताया अहम

  • मनियारी नदी - शहर भर के कचरे का डंपिंग स्टेशन बनती एक सदानीरा नदी की कहानी

  • पानी की कहानी - कचरा डंपिंग ने भूगर्भीय जल को बना दिया विषैला, सरकार को नियम बनाने में लग गए 49 साल

  • खारुन नदी - जहरीली होती जा रही है रायपुर की जीवन रेखा खारुन नदी, समय रहते संरक्षण जरुरी

  • पहुज नदी - धीरे धीरे मर रही एक प्राचीन नदी की कहानी

  • कंडवा नदी – समाज और प्रशासन की अवहेलना झेल रही कंडवा की कब बदलेगी तस्वीर?

  • उल्ल नदी - औद्योगिक प्रदूषण, सीवेज और अवैध अतिक्रमण से जूझ रही है शारदा की यह सहायक

  • कठिना नदी - विभिन्न स्थानों पर सूख गयी है गोमती की यह प्रमुख सहायक

  • पानी की कहानी - बिहार जल प्रदूषण के बीच हर घर शुद्ध जल के सरकारी दावों की योजना

  • अरवरी नदी - सामुदायिक संकल्पों से पुनर्जीवित हुयी एक मृत नदी की कहानी

  • पानी की कहानी - गंगा संरक्षण आवश्यक, फिर गंगा बेसिन की सहायकों, जलाशयों, भूगर्भीय जल स्त्रोतों की अनदेखी क्यों?

  • पानी की कहानी - अटल भूजल योजना के जरिये घर घर पानी पहुँचाने का मोदी सरकार का मिशन

  • पानी की कहानी - गाज़ियबाद में हिंडन को स्वच्छ करने का अभियान, नालों के पानी को साफ़ करने के लिए बनेगा ट्रीटमेंट प्लांट

  • दाहा नदी - लुप्त होने की कगार पर है सीवान जिले की जीवनरेखा, संरक्षण के प्रयास जरुरी

  • फल्गु नदी - अतिक्रमण और प्रदूषण की मार झेल रही है आस्था की प्रतीक रही फल्गु नदी

  • भैंसी नदी - विगत एक दशक से सूखी पड़ी है गोमती की यह सहायक

  • प्रदूषण कर रहा है हमारे वायु, आहार और जल को विषाक्त - माइक्रोफारेस्ट बनाकर धरती को दे सकते हैं पुनर्जीवन

  • पानी की कहानी - मर रही हैं हमारी बारहमासी नदियां, पारिस्थितिक और सांस्कृतिक संवर्धन जरुरी

  • प्राकृतिक जल स्त्रोतों के लिए धीमा जहर है प्लास्टिक – समय रहते बचाव जरुरी

  • पानी की कहानी - गाज़ियाबाद, गौतमबुद्धनगर और सहारनपुर जिले बना रहे हैं हिंडन को बीमार

  • पानी की कहानी- मानक से अधिक हो रहा कीटनाशक का इस्तेमाल, नाले के जहरीले पानी से 25 भैंसो की मौत

  • पानी की कहानी- यमुना के पश्चिमी तट के बाद पूर्वी तट का होगा सौन्दर्यीकरण

  • पानी की कहानी - गायब हो रहा है गोमुख ग्लेशियर, खतरे में गंगा का अस्तित्व

  • पानी की कहानी - मनरेगा फंड से होगा नदियों का पुनर्रूद्धार

  • गगास नदी

  • विनोद नदी

  • दामोदर नदी

  • सबरी नदी

  • हसदो नदी

  • तवा नदी

  • ताम्रपर्णी नदी

  • सुवर्णरेखा नदी

  • इन्द्रावती नदी

  • ब्रह्मपुत्र नद - संस्कृति और सभ्यता का संगम

जानकारी

© पानी की कहानी Creative Commons License
All the Content is licensed under a Creative Commons Attribution 3.0 Unported License.

  • Terms
  • Privacy