संक्षिप्त परिचय -काली नदी एवं कृष्णा नदी के संगम से हिंडन का रूप धारण करने वाली यह नदी युग युगान्तर से भारत की धरती पर प्रवाहित हो रही है. हिंडन नदी का उद्गम सहारनपुर जिले में हिमालय पर्वत की ऊपरी शिवालिक श्रेणी से होता है. यह एक बरसाती नदी है. उत्तर भारत के विभिन्न क्षेत्रों में बहने वाली हिंडन नदी को ‘हिंडोन’ भी कहा जाता है, जो कि यमुना की प्रमुख सहायक नदी है. सहारनपुर से निकलकर उत्तर- प्रदेश के विभिन्न जिलों में प्रवाहित होते हुए हिंडन नदी दिल्ली के करीब यमुना नदी में समाहित हो जाती है. हिंडन को पश्चिमी उत्तर- प्रदेश की जीवनरेखा के रूप में जाना जाता था, किन्तु वर्तमान में प्रदूषण के चलते नदी का पानी विषाक्त हो चुका है.
ऐतिहासिक महत्व –
हिंडन नदी का इतिहास हजारों वर्ष पुराना है. प्राचीन काल में इस नदी को हरनदी या हरनंदी के नाम से जाना जाता था. कई प्राचीन हिंदू ग्रंथों में भी इस नदी का वर्णन मिलता है. वहीं महाभारत कालीन इतिहास में बागपत के बरनावा तत्कालीन वारनावत नामक क्षेत्र का उल्लेख है. जहां पांडवों का वध करने के लिए दुर्योधन ने लाक्षागृह का निर्माण कराया था. इस स्थान पर ही काली व कृष्णा नदी का संगम होता है, जहां इस नदी को हिंडन के नाम से पुकारा जाने लगता है. आज भी बरनावा में लाक्षागृह से अवशेष मौजूद हैं.
इसके अलावा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में भी हिंडन नदी का जिक्र है. 1857 में प्रथम स्वतंत्रता के दौरान हिंडन नदी पर अंग्रेजी हुकूमत और भारतीय क्रान्तिकारियों के बीच जंग हुई थी. इस भीषण युद्ध में जहां कई अंग्रेज मारे गए थे, वहीं कई भारतीय भी शहीद हो गए थे.
हिंडन की यात्रा -
गंगा व यमुना नदी के दोआब क्षेत्र में बहने वाली हिंडन नदी अपने उद्गम स्थल से आगे बढ़ते हुए मुजफ्फरनगर में प्रवेश करती है, जहां से बहते हुए मेरठ, बागपत, गाजियाबाद, नोएडा, ग्रेटर नोएडा जैसे पश्चिमी उ.प्र. के बड़े जिलों के विभिन्न भूभागों में प्रवाहित होती है. इसके बाद दिल्ली से कुछ दूर तिलवाड़ा नामक स्थान पर हिंडन का यमुना नदी में संगम हो जाता है तथा दिल्ली पहुंचते- पहुंचते यह नदी यमुना के रूप में प्रवाहित होती है.
सहायक नदियां –
सहारनपुर से तिलवाड़ा तक की करीब 280 कि.मी. की यात्रा के दौरान हिंडन नदी के साथ उसकी कई सहायक नदियां भी प्रवाहित होती हैं. काली नदी हिंडन की प्रमुख सहायक नदी है, जो कि तिलवाड़ा में यमुना में मिलने से पूर्व इसमें मिलती है. वहीं बरनावा में इसका कृष्णा नदी से संगम होता है. इसके अलावा नागदेवी, धमोला और चेचही नामक नदियां भी हिंडन नदी के सफ़र में इसमें आकर मिल जाती हैं.
नाला बन गई ऐतिहासिक नदी -
एक ऐसी नदी जिसका पवित्र ग्रंथों में वर्णन है, आज प्रदूषण का ऐसा विकराल दंश झेलने को मजबूर है, जिसने सरकार तथा नदी पर आश्रित लोगों को चिंता में डाल रखा है. दरअसल, हिंडन नदी के मार्ग में उससे मिलने वाली छोटी- छोटी नदियां अपने साथ ही नदी में बड़ी मात्रा में गंदगी, अवशिष्ट पदार्थ व केमिकल भी मिला देती है. इसके अलावा कई फैक्ट्रियों व कारखानों का अपशिष्ट, घरेलू गंदगी, नालों का गंदा पानी आदि काफी अधिक मात्रा में हिंडन में आकर गिरता है. जिससे इस नदी का जल सिर्फ विषाक्त ही नहीं हुआ, बल्कि नाले में परिवर्तित हो चुका है. यहां तक की नदी में अब किसी प्रकार के जलीय जीव- जन्तु भी निवास नहीं करते. हिंडन जैसी प्राचीन नदी जो भारतीय संस्कृति की धरोहर मानी जाती है, उसकी इतनी दयनीय स्थिति से सभी हैरान हैं. जिसे देखते हुए सरकार व प्रशासन ने नदी की सफाई को लेकर कई अभियान व कार्यक्रम चलाए. वहीं कई सामाजिक संस्थाएं भी नदी को प्रदूषणमुक्त बनाने व लोगों में इसके प्रति जागरूकता फैलाने की दिशा में काम कर रही हैं.