नदियां, जो महज पानी ढोने वाला मार्ग ही नहीं हैं, बल्कि इनके किनारे समस्त इतिहास, समग्र विरासत और तहजीब के किस्से समाये होते हैं. ऋग्वेद के अष्टम और दशम मण्डल में सदानीरा कही जाने वाली गोमती नदी को गंगा की प्रमुख सहायक माना जाता है, उसी गोमती की एक प्रमुख सहायक नदिका है "भैंसी नदी". आज अथाह प्रदूषण के चलते दम तोड़ चुकी यह नदी पिछले एक दशक से बिल्कुल सूख चुकी है. यह नदी पीलीभीत की पूरनपुर तहसील के डंडरौल व शाहजहांपुर की सीमा से लगी करीब 50 वर्ग किमी में फैली भैंसासुर झील से उद्गमित होती है और वहां से प्रवाहित होते हुए भैंसी नदी लखीमपुर खीरी के इमलिया घाट के पास गोमती में मिल जाती है. तकरीबन 42 किलोमीटर लम्बी भैंसी नदी गोमती की सहायक नदियों में से एक है, जो आज बंडा-पुवायां रोड पर पूरी तरह सूख चुकी है.
कहा जाता है नदियां न केवल जल का प्रमुख स्रोत होती हैं वरन उस राष्ट्र, समाज एवं क्षेत्र की संस्कृति होती है. भैंसी नदी उ.प्र. में शाहजहांपुर जिले की पुवांया तहसील में बहती है और बंडा क्षेत्र से जसवंतपुर तक बहती हुई गोमती नदी में समा जाती है. नदी किनारे के ग्रामवासी बताते हैं कि पिछले एक दशक में नदी किनारों को पाटकर कारखानों का निर्माण किया गया, जिससे नदी सिमट कर नाले के तरह बहने लगी. केवल इतना ही नहीं कारखानों से निकलने वाला अपशिष्ट भी बिना किसी रोकटोक के नदी के हवाले कर दिया गया, जिस पर ग्रामीणों के विरोध के बावजूद प्रशासन ने कोई कार्यवाही नहीं की. इन सभी का नतीजा यह रहा कि कभी गोमती को जीवन देने वाली यह नदी आज स्वयं मृत हो गयी.
पुवायां में भैंसी नदी पर बना अंग्रेजों के ज़माने का पुल बताता है कि आज से 70 साल पहले इस नदी की कहानी कुछ और ही होगी. आज वह पुल भी जीर्णशीर्ण अवस्था में है और भैंसी नदी भी सूखी जमीन बन गयी है. कभी यह नदी वस्तुतः तीन दर्जन से अधिक गांवों के हजारों परिवारों और जीवों को अपने जल से सिंच रही थी, लेकिन इस पर हुए अवैध कब्जे के साथ साथ रेत के खनन ने भी इसे जलविहीन बनाने में कोई कसार नहीं छोड़ी. हालांकि इस वर्ष जुलाई से पर्यावरण संरक्षण के लिए कार्य कर रही लोकभारती संस्था ने भैंसी नदी को पुनर्जीवन देने के अभियान का शंखनाद कर दिया है और पुवायां के अनेकों गाँव धीरे धीरे इस पुनीत कार्य का हिस्सा भी बन रहे हैं.
नदी का पुनरुद्धार करने के लिए संस्था ने योजना बनाई है कि भैंसी और शारदा नहर के बीच बने पांच किलोमीटर नाले को साफ़ करके उसके माध्यम से शारदा नहर से जल नदी में छोड़ा जाये. संगठन के सदस्य निरंतर नाले की सफाई में भी जुटे हैं, साथ ही विभिन्न स्थानों पर नदी की खुदाई का कार्य भी जारी है. स्वयं जिलाधिकारी भी नदी को साफ़ करने की मुहिम में जुटे हैं. पर प्रश्न फिर भी खड़ा होता है कि किसी भी नदी की स्थिति इतनी दूभर क्यों कर दी जाती है कि उसे किसी अभियान की आवश्यकता पड़े. परिस्थितियां इतनी विकट होने से पहले ही नदियों को क्यों नहीं बचा लिया जाता, यह मनन योग्य है.