केरल में बहने वाली पेरियार नदी, जो कि पश्चिम घाट में शिवगिरी की पहाड़ियों से निकलकर पश्चिम दिशा की ओर प्रवाहित होते हुए अरब सागर में गिरती है, राज्य की सबसे लम्बी नदी के रूप में जानी जाती है. किन्तु 244 कि.मी. लम्बी यह जीवनदायिनी नदी आज प्रदूषण का दंश झेल रही है, जिसकी स्वच्छता के लिए सरकार लगातार प्रयास करने की बात कह रही है, किन्तु उसका कुछ प्रभाव देखने को नहीं मिल रहा है.
पेरियार नदी की सफाई को लेकर केरल प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के लापरवाह रूख को लेकर
एनजीटी ने कड़ा रूख अपनाया है. एनजीटी के मुताबिक, बोर्ड पेरियार नदी में अवैध रूप
से गिरने वाले अस्पतालों और उद्योगों के अपशिष्टों व दूषित जल को नदी में प्रवाहित
होने में रोक पाने से असफल रहा. अतः बोर्ड को अपने कार्यकलापों में सुधार की जरूरत
है. वहीं आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को
अपने कर्तव्यों का भलीभांति पालन करने की हिदायत भी दी.
एनजीटी ने केरल हाई कोर्ट के पूर्व जज आर. भाष्करन द्वारा लिखे गए एक पत्र का
हवाला देते हुए भी बोर्ड को उसके असफलता का अहसास कराया. जिसमें न्यायाधिकरण ने
कहा था कि,
“अपने असफल कार्यों को प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को प्रभावी और व्यवस्थित रूप से फिर से शुरू करने की जरूरत है. वैधानिक रूप से चुनी गई कोई भी संस्था यह दलील नहीं दे सकती कि वह अपना कार्य करने में सक्षम नहीं है तथा ऐसी दलीलों को स्वीकार करने का मतलब है कि संस्था की असफलता के लिए अन्य कोई जिम्मेदार नहीं है.”
जिस पर बोर्ड ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि,
“उसके पास इस कार्य को करने के लिए पर्याप्त मात्रा में संसाधन एवं लोग नहीं हैं तथा अस्पतालों और अन्य संस्थाओं को नियंत्रित करने के लिए भी उसके पास पर्याप्त संख्या में स्टॉफ की कमी है.”
जिसके बाद न्यायाधिकरण ने जिला
मजिस्ट्रेट, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्यों को मिलाकर एक संयुक्त
समिति का गठन किया, जो
कि बॉयोमेडिकल अपशिष्ट और ठोस कचरे के प्रबंधन से संबंधित कानूनों के अनुपालन के
लिए एक कार्य योजना तैयार करेगी. ट्रिब्यूनल ने इस समिति को एक माह
के अंदर संबंधित कार्रवाई से जुड़ी रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया.
इसके
अलावा यह समिति
पर्यावरण को होने वाले नुकसान की भी जांच करेगी और उन व्यक्तियों की पहचान करेगी जो
इस पर्यावरण प्रदूषण के लिए जिम्मेदार हैं.