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मुगलकालीन और ब्रिटिश काल में निर्मित पुल बताते हैं काली का समृद्ध इतिहास - काली संवरेगी तो संवरेगा अंतवाडा का कल

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  • Raman Kant Raman Kant
  • December-02-2019
12 जिलों के तकरीबन 1200 ग्रामों और शहरी परिक्षेत्र को सिंचती काली उत्तर प्रदेश की प्रमुख नदियों में से एक रही है. गंगा के सहायक काली नदी का स्वरुप कभी के समय में बेहद विराट और अद्भुत हुआ करता था, जिसे आज इतिहास के गवाह रहे घाटों, पुराने पुलों आदि के जरिये समझा जा सकता है. विभिन्न जिलों में नदी पर बने इन प्राचीन घाटों और पुलों से स्पष्ट होता है कि काली कभी के समय में काफी बड़ी नदी रही होगी. किन्तु आज काली के साथ साथ ही इन ऐतिहासिक संरचनाओं ने भी प्रशासनिक देख-रेख के अभाव में दम तोड़ दिया है. कल-कारखानों, कृषि, घरेलू सीवरेज आदि के अपशिष्ट ने काली को आज इतना मैला कर दिया है कि इसकी पुरातन भव्यता अब खोजे से भी नहीं मिलती.

मुज्जफरनगर और मेरठ में मृत हो चुकी काली को संजीवनी देने के लिए नदी मित्र रमनकांत के साथ सैंकड़ों हाथ सेवा में जुटे हैं, प्रयासों को धीरे धीरे गति भी मिल रही है. साथ ही प्रशासन और संबंधित विभागों से सहायता मिलने की भी बात की जा रही है. समाज को जागरूकता और प्राकृतिक संसाधनों को संवर्धन देने का यह प्रयास अनूठा और अकल्पनीय है, जिसकी चर्चा आज अंतवाडा (काली उद्गम स्थल) के जन जन के मुख पर है. 


काली पुनरुथान अभियान के साथ साथ अब लोग अंतवाडा गांव को भी जानने लगे हैं, इस गांव के इतिहास व भूगोल में अब शोधकर्ताओं और मीडियाकर्मियों की रूचि बढती दिख रही है, साथ ही मुज्जफरनगर से सांसद और केंद्रीय राज्य मंत्री डॉ संजीव बालियान ने भी गांव को पीएम आदर्श ग्राम योजना के तहत गोद लेना तय किया है, जिससे अब वह दिन दूर नहीं जब इतिहास में अंतवाडा को विशेष सम्मान प्राप्त होगा. सोचिये कितना महत्त्व है इन नदियों का हम सभी के जीवन में.. हमारी जीविका, हमारी संस्कृति, हमारे संस्कार, हमारी समृद्धि सभी कुछ इन नदियों ने संभाला हुआ है. काली पुनर्जीवित होगी तो अंतवाडा भी दोबारा जी उठेगा और एक समृद्ध गांव का उद्धरण समाज के सामने रखेगा.


आइये एक नजर डालते हैं काली के रोचक इतिहास की ओर..


हड़प्पा कालीन सभ्यता की गवाह रही है काली


मुजफ्फरनगर जिले की जानसड तहसील के अंतवाड़ा गांव में वन्य क्षेत्र से एक छोटी सी धारा के रूप में निकलती है और लगभग 3 किलोमीटर तक स्वच्छ जल के रूप में बहती है. खतौली के रास्ते पर मीरापुर रोड, खतौली चीनी मिल का काला, बदबूदार पानी काली में जहर घोल देता है, जिसके साथ यह 10 किलोमीटर की यात्रा करती है. यदि इतिहास के पन्नों में झांककर देखे तो मुज्जफरनगर जिले का इतिहास जहां 1633 का माना जाता है, तो वहीं काली के किनारे बसे सदर तहसील में स्थित मंडी गांव में हड़प्पा कालीन सभ्यता के अवशेषों का मिलना यह बताता है कि कभी इस नदी के किनारे एक सभ्यता का वास हुआ करता था और भारतीय सर्वेक्षण विभाग द्वारा खुदाई करने पर मिले रत्न, आभूषण आदि से पता चलता है कि प्राचीनकाल में यह स्थान व्यापारिक केंद्र रहा होगा.

सहारनपुर रोड़ पर काली नदी के ऊपर 1512 में शेरशाह सूरी ने बावन दर्रा पुल बनवाया था, जिसके 52 दरवाजे बताते हैं कि कभी काली यहां बेहद विराट रही होगी और बाढ़ की विभीषका से नुक्सान नहीं हो, इसलिए यह 52 दर्रों वाला पुल बनवाया गया था.


मेरठ में सर्वाधिक प्रदूषित होती है काली 


मेरठ जिले में प्रवेश के बाद जब काली नागली आश्रम के पास से गुजरती है तो यहां पानी काफी गन्दा है और आगे चलने पर सूख भी जाता है. सूखी नदी दौराला-लावाड़ रोड की ओर 10-15 कि.मी. तक पहुंच जाती है, जहां दौराला चीनी मिल का नाला सूखी नदी में बहता है, जिससे नदी फिर से काले रंग की चपेट में आती है. पनवाड़ी, धंजू और देडवा गांवों को पार करते हुए नदी मेरठ-मवाना रोड से आगे बढ़ती है, जहां सैनी, फिटकारी और राफेन गांवों की आधा दर्जन पेपर मिलों के नालें नदी में बहते हैं. मेरठ शहर में आगे बढ़ते हुए, नदी जयभीम नगर कॉलोनी से गुजरती है, जहां शहर के कचरे को ले जाने वाली पीएसी नाला नदी से मिलता है. इस सीवेज में दौराला केमिकल प्लांट और रंग फैक्ट्री के कचरे भी शामिल हैं.

नदी आगे बढ़कर 5 किलोमीटर तक अपशिष्ट की बड़ी मात्रा साथ में ले जाती है, मवेशियों के शव और मेरठ नगर निगम के बुचडखानों की रक्तरंजित अपशिष्टता भी नदी में गिरा दी जाती है. नदी आध, कुधाला, कौल, भदोली और अटरारा गांवों से गुज़रती है और हापुड जिले में प्रवेश करने से पहले 20 किमी तक बहती है.

हापुड़ में भी औद्योगिक प्रदूषण झेलती है काली 


हापुड़ में काली को थोडा प्रवाह अवश्य मिलता है, क्योंकि नदी यहां मेरठ की तरह सूखती नहीं है, लेकिन हृदयपुर पहुंचते ही काली पर गंदगी का बोझ भी डाल दिया जाता है. लगभग 25-27 औद्योगिक इकाईयों का कचरा लेकर बह रहा कादराबाद नाला और छोईया नाला यहां काली में गिरता है. जिससे यहां भी काली किसी नाले का ही आभास कराती है. यहां कुचेसर रोड पर कुछ दूरी पर ब्रिटिश शासनकाल का एक पुल निर्मित है, जिसमें बनें पांच दरवाजे गवाह हैं कि कभी काली समृद्ध होकर यहां बहती होगी. लेकिन आज तो काली केवल एक ही गेट से प्रवाहित होती दिखती है, यानि कह सकते हैं कि बदलते समय और प्रदूषण ने यहां काली को 80 फीसदी तक खत्म कर दिया है.

मुगलकालीन पुल साक्षी..कभी शान से प्रवाहित होती थी बुलंदशहर में काली 


हापुड-गढ़ रोड से गुज़रने के बाद 30 किलोमीटर के बाद नदी बुलंदशहर जिले में प्रवेश करती है. बुलंदशहर शहर का सीवेज भी इसमें डाला जाता है. यहां काले आम चौराहे से कुछ आगे बना मुगलकालीन पुल दो दर्जन आउटलेट के साथ खड़ा है, लेकिन यह बेहद अफसोसजनक है कि यहां न तो इस ऐतिहासिक संरचना का संरक्षण किया गया और न ही काली का. दोनों की ही अवस्था इस जिले में जीर्ण-शीर्ण है. इस जिले में नदी ऐसे ही सीवरेज बनकर 50 किमी के आस पास बहती हुयी अलीगढ़ जिले में प्रवेश करती है.

अलीगढ में भी कभी वैभवशाली थी काली 


अलीगढ में मुगलकाल के बने पुल बताते हैं कि कभी यहां काली पूरे वेग से बहती होगी. हालाँकि अलीगढ़ में काली इतनी अधिक प्रदूषित नहीं है, लेकिन कुछ स्थानों पर यह पूरी तरह अथवा आंशिक रूप से सूख जरुर गयी है. यहां अलीगढ़ डिस्टिलरी और कसाई घरों का नारकीय कचरा नदी में फेंक दिया जाता है. अलीगढ़ से गुजरने पर नदी में प्रदूषण का स्तर कुछ कम हो जाता है. इसके लिए पहला कारण नदी का ताजा पानी है जो अलीगढ़ में हरदुआगंज भुदांसी में छोड़ा जाता है और दूसरा कारण अलीगढ़ और कन्नौज के बीच, जहां यह पवित्र गंगा में मिलती है, कोई औद्योगिक अपशिष्ट नहीं डाला जा रहा है.

कासगंज में काली का सफ़र 


काली नदी कासगंज में जिस पुल के नीचे से बहती है. यह पुल 18 वीं शताब्दी में बनाया गया था और 200 मीटर लंबा है. कासगंज से, नदी ईटा जिले में, वहां से फरुक्खाबाद तक और अंत में कन्नौज जिले में बहती है. कासगंज, ईटा, फरुक्खाबाद और कन्नौज जिलों में शहर का सीवेज नदी में नहीं फेंका जाता है. हालाँकि एटा के बाद, गुरसाईगंज टाउनशिप का सीवेज काली में डाला जाता है, लेकिन आगे चलकर नदी का पानी साफ़ हो जाता है. नदी से कासगंज और कन्नौज के बीच की दूरी लगभग 150 किमी है. मुजफ्फरनगर से अलीगढ़ के बीच लंबाई की तुलना में नदी की यह लंबाई काफी साफ है, जब काली कन्नौज में गंगा में गिरती है, तो उसकी आभा देखकर गंगा और काली के पानी को अलग करना मुश्किल हो जाता है.

गंगा में विलीन होने से पहले कन्नौज में वैभवशाली दिखती है काली


नीर फाउंडेशन के संस्थापक और नदी सेवक श्री रमन कांत जब काली नदी की कन्नौज में गंगा में विलीन होने से पहले की झांकी की बात करते हैं, तो उनकी आँखों में एक चमक दिखाई पड़ती है, उनकी बातों में एक अद्भुत आत्मविश्वास, दृढ निश्चय काली नदी की इस मनमोहक तस्वीर को देखकर स्वत: ही देखा जा सकता है. क्योंकि कन्नौज में काली की खूबसूरती उसकी स्वच्छ लहरों में देखी जा सकती है, इसके घाटों पर होता पूजन-वंदन अकस्मात ही आपको नमन करने पर विवश कर देता है. काली नदी जो मुज्जफरनगर और मेरठ में नाला बन चुकी है और जिसके पास से गुजरने पर भी लोग नाक सिकोड़ लेते हैं, कन्नौज में इसके विपरीत किसी नवयौवना के समान बहती है.

नदी पुत्र रमनकांत कहते हैं, कन्नौज में काली की तस्वीर हम सभी के लिए एक सीख है कि जिस नदी को हमने अपने शहर में समाप्त कर दिया, वह किसी अन्य जिले में गंगा में समाहित होने से पहले ही अविरल हो जाती है. आज मुज्जफरनगर और मेरठ जैसे जिलों में काली की जो दशा है, वह हमारी गलती और खामियों की परिचायक है. समाज के साथ ही अब प्रशासन को भी गंभीरता से इस दिशा में विचार करना होगा ताकि कन्नौज जैसी काली मुजफ्फरनगर, मेरठ, बुलंदशहर में भी प्रवाहित हो.

काली पुनरुद्धार के लिए वृक्षारोपण, सामूहिक हवन और श्रमदान कर रहे हैं ग्रामीण


काली नदी को पुनर्जीवित करने की कोशिशों में ग्रामीण जन भी एकजुटता से लगे हैं. बीते रविवार को ग्रामीणों ने काली नदी के उद्गमस्थल पर पौधारोपण किया और संकल्प लिया कि इन सभी वृक्षों का संरक्षण वें स्वयं करेंगे. नीर फाउंडेशन की अगुवाई में अंतवाड़ा में काली नदी के उद्गमस्थल पर खुदाई का कार्य चल रहा है, जिसमें आम जन भी सहयोग दे रहे हैं. नदी किनारे वन क्षेत्र विकसित करने के उद्देश्य से आये दिन पौधारोपण किया जा रहा है, जिसमें सर्वाधिक सहयोग ग्रामवासी ही दर्ज करा रहे हैं.

सामूहिक हवन के माध्यम से ग्रामीणवासी नदी के प्रति श्रृद्धा और समर्पण दिखा रहे हैं. नदी के उद्गम स्थल पर अन्य बहुत से जनपदों से भी लोग रोजाना नदी सेवा के लिए उमड़ रहे हैं और इस हवन में आहुति देकर नदी के प्रति सेवा भाव दर्शा रहे हैं. इसके साथ साथ ही नदी के पास एक झोपडी बनाकर समाज को नशामुक्त रहने का सन्देश भी प्रसारित किया जा रहा है. बोर्ड लगाकर लिखा गया है कि "यहां नशा करके आना और नदी किनारे बैठकर नशा करना सख्त मना है", इस प्रकार के अन्य संदेशों के जरिये समाज को नशे से मुक्ति के लिए जागरूक किया जा रहा है.

केंद्रीय राज्यमंत्री बनायेंगे अंतवाडा को आदर्श गांव


मुज्जफरनगर से सांसद और केंद्रीय राज्य मंत्री डॉ. संजीव कुमार बालियान ने बीते रविवार अंतवाडा पहुंचकर काली उद्गमस्थल का निरीक्षण किया, जहां उन्होंने काली नदी से स्वत: निकली जलधारा को देखा और नीर फाउंडेशन सहित तमाम ग्रामीण जनों की सराहना की. उन्होंने नदी पुत्र रमनकांत से सांसद आदर्श ग्राम योजना के अंतर्गत अंतवाडा गांव को गोद लेने की इच्छा जताई थी, जिसके लिए अब केंद्रीय मंत्री डॉ. बालियान काफी गंभीर दिख रहे हैं. उन्होंने निरीक्षण कार्यक्रम के अंतर्गत सिंचाई, जल इत्यादि विभाग से जुड़े संबंधित अधिकारियों से भी नदी विकास से जुडी जरुरी चर्चा की. नदी विकास कार्य में आ रही अडचनों को दूर करने के लिए भी आवश्यक कार्यवाही करने की बात डॉ बालियान ने की.

13 दिसम्बर को अंतवाडा पहुंचेगी शूटर दादियां


नदी पुत्र रमनकांत के निवेदन पर आगामी 13 दिसम्बर को अंतवाडा के उद्गम स्थल पर शूटर दादियाँ प्रकाशो तोमर और चन्द्रो तोमर भी पहुंचेगी. हाल ही में नीर संस्था से स्वयं रमनकांत ने बागपत पहुंचकर दोनों दादियों से निवेदन किया कि वे अपना आशीर्वाद देने नदी स्थल पर जरुर आयें. गौरतलब है कि हरियाणा की मशहूर शूटर दादियां नारी शक्ति की एक ऐसी मिसाल हैं, जिन्होंने उम्र के 60वें पड़ाव पर शूटिंग जैसे खेल में नेशनल चैंपियन बनकर नाम कमाया है. शूटर दादियों के अंतवाडा आने से काली नदी सेवा की मुहिम को और अधिक बल मिलेगा और आम जन की भागीदारी भी अभियान में देखने को मिलेगी.




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