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हिंडन नदी – हिंडन को प्रदूषित कर रही औद्योगिक इकाइयों पर एनजीटी की क़ानूनी कार्यवाही

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  • Rakesh Prasad Rakesh Prasad
  • August-18-2018

जीवनदायिनी नदियां वर्तमान में नाले के रूप में परिवर्तित हो चुकी हैं. बात चाहे मोक्षदायिनी गंगा नदी की जाए, या देश के अन्य महत्त्वपूर्ण नदियों की, कोई भी इस विषकर प्रदूषण से अछूती नहीं है. तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या, औद्योगिकीकरण और शहरीकरण के हुए अत्यधिक विकास के कारण आज मलिन हो रही है नदियों के प्रदूषित होने का सबसे बड़ा कारण असंशोधित सीवेज और बड़े पैमाने पर कल-कारखानों द्वारा नदियों में बहाया जाने वाला अपशिष्ट है, जिसके चलते नदी तंत्र से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जुड़े लोग आज प्रदूषण की सर्वाधिक मार झेल रहे हैं.

 

एनजीटी द्वारा की गयी पहल की हुई सराहना -

हाल ही में नदियों की स्वच्छता को बनाए रखने के लिए एक बेहतरीन पहल करते हुए राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जीवनधारा नदियों हिंडन, काली एवम् कृष्णी नदी को प्रदूषित कर रही 124 औद्योगिक इकाइयों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है. नदी- संरक्षणवादी एवं देश के प्रमुख पर्यावरणविदों में से एक डॉ. प्रमोद कुमार शर्मा ने एनजीटी के इस सकारात्मक कदम की सराहना करते हुए कहा कि, यदि इसी प्रकार नदियों के स्वास्थ्य की चिंता कर, उनके लिए यथायोग्य क्रियात्मक प्रयास किये जाते रहे, तो अवश्य ही भविष्य में प्रदेश की नदियां अविरल होकर प्रवाहित होंगी. मुख्य रूप से गाजियाबाद,  बागपत,  मुज्जफरनगर,  सहारनपुर,  गौतमबुद्दनगर, शामली, मेरठ जिलों के अंतर्गत शामिल ये इंडस्ट्रीज नदियों के जल को निरंतर प्रदूषित के रही थी, जिसके कारण तटीय क्षेत्रों में रह रही आबादी गंभीर रोगों को चपेट में आ रही है.

एनजीटी ने इकाइयों को तत्काल प्रभाव से बन्द करने का आदेश भी दिया है, एनजीटी के अध्यक्ष न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि स्वच्छ वायु व शुद्ध जल प्राप्त करना आम जनता का बुनियादी अधिकार है, जिसमें किसी प्रकार की लापरवाही नहीं बरती जा सकती.

यह याचिका एनजीओ दोआबा पर्यावरण समिति के अध्यक्ष चंद्रवीर सिंह द्वारा अक्तूबर, 2014 में डाली गई थी, जिसमें उन्होंने बागपत के गंगनौली ग्राम में कृष्णी नदी के प्रदूषित जल के संपर्क में आने पर ग्रामीणों को जल-जनित बीमारियों के अत्याधिक बढ़ने पर प्रकाश डाला था. याचिका पर सुनवाई के दौरान वकील गौरव कुमार ने स्पष्ट करते हुए कहा कि बड़े अधिकारियों की लापरवाही के कारण मरकरी एवम् आर्सेनिक युक्त प्रदूषित जल पीने और उसके संपर्क में आने से बच्चों में कैंसर, गैंग्रीन आदि जैसे भयंकर रोग त्वरित गति से बढ़ रहे हैं.

 

न्यायिक पीठ द्वारा दिए गए प्रमुख निर्देश -

 

1. छह जिलों के जिला मजिस्ट्रेटों को निर्देश दिया गया कि वे ग्रामीणों को समयबद्ध तरीके से पेयजल प्रदान करने की कार्ययोजना पेश करें.

 

2. प्रदूषण से प्रभावित लोगों के लिए जल्दी से जल्दी हेल्थ बेनिफिट स्कीम तैयार की जाए और तटीय आबादी को स्वास्थ्य योजना का लाभ दिलाया जा सके.

 

3. प्रदेश सरकार द्वारा आदेश दिया गया कि प्रदूषित जल निष्कासित कर रहे हैंडपंपों को तुरंत सील किया जाए.

 

4. अधिकरण द्वारा प्रदूषित काली, कृष्णा तथा हिंडन नदियों की सफाई के लिए बेहतर कार्ययोजना पेश करने के भी आदेश दिए गए.

 

5. साथ ही 5 मार्च 2019 को एनजीटी को अनुपालक रिपोर्ट दाखिल करने का आदेश भी दिया.

डॉ. प्रमोद कुमार ने माना कि इस प्रकार की कड़ी कार्यवाही की प्रतीक्षा लम्बे समय से राज्य एवं राष्ट्रीय स्तरीय पर्यावरण कार्यकर्ताओं को थी, यह एक ऐसा कदम है, जो सख्त रूप से अमल में लिए जाने पर नदी- संरक्षण पर चल रहे अभियानों को गति प्रदान करेगा. गौरतलब है कि डॉ, प्रमोद स्वयं भी सहारनपुर की पाँवधोई बचाओं समिति के माध्यम से पाँवधोई नदी की स्वच्छता और उचित संरक्षण के लिए अथक रूप से कार्यरत हैं. एक सजग नागरिक और पर्यावरण- संवर्धन के पक्षधर सामाजिक कार्यकर्त्ता के तौर पर उनका मानना रहा है कि नदियों को यदि प्रदूषण के जहर से बचाना है तो क़ानूनी रूप से सार्थक प्रयास करने ही होंगे.

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