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गंगा नदी - गंगा व हिमालय : पर्वत के रूप में हिमालय वातावरण का प्रतिपालक है

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  • U.K. Choudhary U.K. Choudhary
  • January-03-2020
MMITGM : (41) :

ब्रह्म-मुख, पदार्थिय, शक्तिपूर्ण, प्रवाह-मार्ग वातावरण है. यही ब्रह्म-रूपधारी, पंच-दिशाओं की, पंचमहाभूतों की प्रवाह-शक्ति का होना, शिव का पंचमुखी होना है.

शिव से-हे भोलेनाथ ! आप का ध्यानस्थ- पंचमुखी होना क्या है? क्या यह आपकी पाँच-दिशाओं के शक्ति-संतुलन को परिभाषित करता है? चार दिशायें तो समझ में आ रही हैं, पर पंचम क्या ऊपर की दिशा है? क्या ये पँच-महाभूतों की स्थिर संकलित संतुलनावस्थाओं की प्रवाहें तो नहीं है? आपके पर्वतीय शिवलिंग-स्वरूप में आपके पंचमुखी होनै का क्या अर्थ है? क्या यह पाँच दिशाओं (चार-दिशाओं तथा ऊर्ध्वगामी-पथ) के पदार्थिय तथा शक्तिये अन्तःप्रवाह तथा इनके बाह्य-प्रवाह को प्रतिष्ठित करता है? क्या पंच-मुख, पदार्थ शक्ति प्रवाह के पाँच ढ़ाल हैं? पंचमुखों से, पंच-दिशाओं से, पंच-विधियों से, पंच शक्ति-तरंगों से आपने जीव-जगत को प्रति पल आँख-बन्द कर ध्यानस्थ रहते निहारते रहने वाली आपकी तकनीक तो नहीं? क्या लगभग 356 किलोमीटर भुतलीय व्यास का आपका हिमालय शिवलिंग और 7 किलोमीटर से ज्यादा ऊँचाई की पाँच-दिशाओं का आपके इस लिंग का आकाशीय-ढ़ाल आपकी महान शक्ति अवशोषण तथा निस्तारण का ढ़ाल है? क्या यही ढ़ाल अन्य समस्त ढ़ालों के आयामों को, शक्तियों को परिभाषित करता है. Internal and external space gradients define all types of energy-flux radiations. क्या आपका ध्यानस्थ पँच-मुख यह निर्देशित करता है कि संतुलित शक्ति-प्रवाहों के लिये शांतिपूर्ण वातावरण की आवश्यकता है. आपके पंचमुखी विलक्षण हिमालयन स्वरूप को कोटिशः प्रणाम ।


MMITGM : (42) :

हे शिव! आप की शक्ति आकाश का स्वरूप ही वातावरण है..कैसे सूक्ष्म और वृहद बदलता आकाश, निरंतरता से संतुलनावस्था की शक्ति-प्रवाह करता है, कैसे? अतः क्या आकाश का बदलना, पृथ्वी को चक्रमण करवाना ही आपकी शक्ति का खेल, जीव-जगत की समस्त क्रियाओं को परिभाषित करता है? यह आकाश क्या है? क्या बाहरी-आकाश वस्तु का आकार-प्रकार-स्थान है और उसका भीतरी आकाश उसके भीतरी कण की सजावट है? इन आकाशों के आकाशीय अन्तर का निरंतरता से होते रहना ही वातावरणीय शक्ति-प्रवाह प्रकृति है? हे भोलेनाथ! यही आप शिव-ब्रह्म के क्षण-क्षण से रूपांतरित होते आकाशीय शस्त्र के सर्वत्र की उपस्थिति ही वातावरण है. निरंतरता से अपने विशेष हिमालयन शिवलिंगाकार स्वरूप की विशेष उपस्थिति के तहत अपने भीतरी-बाहरी आकाशीय स्वरूप को बदलते, शक्ति-प्रवाह को रूपांतरित करते, बरसात, शरद, वसंत, ग्रीष्म ऋतु से अपना चक्रमण करवाने वाले भोलेनाथ! यह तो मान गया कि जिस तरह पृथ्वी के भीतरी, बाहरी, आकाशीय चरित्र को पेड़-पौधे औस्मेटिक-प्रेशर के तहत जीवन्त रहते वातावरण को संवर्धित करते हैं, उसी तरह आपका पर्वतीय शिवलिंग वातावरण का प्रतिपालक है. अतः संतुलनावस्था की पदार्थिय शक्तिय प्रवाह ही आपके पर्वतीय-लींग के शिवत्व का परिचायक है. अब दो प्रश्न उठते हैं, भोलेनाथ! भारत के सम्पूर्ण वातावरण के केन्द्र आपके हिमालयन शिवलिंग के बाहरी-भीतरी आकाश को संरक्षित कैसे किया जाये? इनकी प्राकृतिक और अप्राकृतिक समस्याओं का निवारण आप कैसे करेंगे? ज्ञान, भक्ति, शक्ति और आपकी पूजा से क्या? सिखाइये भोलेनाथ! आपको कोटिशः प्रणाम है.

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