पानी की कहानी
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गंगा नदी - प्रकृति की प्रत्येक धरोहर ईश्वर समान है, उनका संरक्षण आवश्यक है

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  • U.K. Choudhary U.K. Choudhary
  • February-27-2020

केन्द्रस्थ : Catching hold of Nucleus : MMITGM : (44) :

हे, पूर्णशांत, आनंदानंद में समस्त ऑर्बिटल के इलेक्ट्रॉन को कपकपाते अंतकरण में स्थिर न्यूट्रॉन रूप में विराजमान भोलेनाथ! आपके हिमालयन शिवलिंग के चहुंदिशिय विभिन्न अक्षों पर विभिन्न आयामों के साथ नृत्य करती प्रकृति, वातावरण का क्या होगा, यदि इसके भीतरी और बाहरी आकाशीय स्वरूप बदलने की सीमा को लांघा जाए?

यदि आपके सूक्ष्म स्वरूप यानि न्यूट्रॉन के हिलने से गामा- रे निकलता है तो हिमालयन शिवलिंग के अति कम्पायमान होने से क्या होगा? क्या हिमालयन-समस्त नदियों के मृदाभार का बढ़ना, अप्राकृतिक विभिन्न जलाशयों (reservoirs of the dams ) के बढ़ने से छोटे-छोटे भूकंपों का आना और इसके कारण लैंड स्लाइड का होना, ग्रेट प्लेन ऑफ इन्डिया में प्रवाहित हो रही गंगा का मृदाभार विश्व की किसी भी अन्य नदी से ज्यादा होना आदि समस्याएं क्या आपके हिमालयन-शिवलिंग का हिलना नहीं है भोलेनाथ? आपके इस पावन शिवलिंग का संरक्षण कैसे हो? आप कृपा कर ज्ञान-ध्यान और शक्ति दीजिए. आप को कोटिशः प्रणाम.

केन्द्रस्थ : Catching hold of Nucleus : MMITGM : (45) :

यह संसार ज्ञानस्थली, महान विद्यालय है?

हे ब्रह्माण्ड को नृत्य कराने वाले नटवरलाल भोलेनाथ! आप से गुफ्तगु करने में नैसर्गिक-आनंद की अनूभूति होती है. जिस प्रश्न का कोई जवाब नहीं दे सकता, उसका जवाब आप मौन रहकर ही दे देते हैं. आज का प्रश्न है कि यह संसार क्या है? क्या यह एक बाजार है, जिसमें जिसका जितना जन्म-जन्म का अर्जित धन, पाप-पुण्य-कार्य है, उसको भजाइये? क्या यह खेल का मैदान है? कौन कैसे निःस्वार्थ भाव से खेलता है? क्या यह मल्लयुद्ध-स्थली है? कौन किसको कितनें जोड़ों से पटकता है? क्या यह तपस्थली है? सब भोग-विलास, दुर्गंध युक्त क्षणिक सुख की दृढ़ अवधारणा से संसार से घृणा, विरक्ति और शांति का भाव. क्या यह भोग-विलास, इंद्रिय-मंथन, शराब-जुआ स्थली है? आखिर यह है क्या, आप बतलाइये भोलेनाथ!

तीन वस्तुएं, जो प्रत्यक्ष दिखाई देती हैं, वह है शून्य से निकलना, निकलने के उपरांत अन्तिम क्षण तक काँपते रहना और अन्त में फिर शून्य हो जाना. क्या कपकपाते कोशिका चार्ज-पार्टिकल्स, इलेक्ट्रॉन जैसे हैं, जो केन्द्रस्थ-प्रोट्रोन से मिलने के लिए तड़प रहे हैं?

अतः यह संसार कम्पनावस्था के अक्ष रूप f-orbitals का ही है, यही निष्कर्ष पहुँचता है. यही है कपकपाहट की इस तांडव-स्थली से ज्ञानोपार्जन का विद्यालय. यह संसार ही है आपके ध्यानस्थ रूप धारण करने का कारण. आपको कोटिशः प्रणाम.

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