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गंगा नदी - गंगा और मानव-शरीर में जीवन्त समरूपता, गंगा और मानव-शरीर पर स्थान और समय के प्रभाव में समरूपता : अध्याय-3 (3.7)

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  • U.K. Choudhary U.K. Choudhary
  • December-18-2019

जिस तरह विभिन्न क्षेत्रों, प्रांतों व देशों के लोग, विभिन्न शारीरिक एवं चारित्रिक गुणों के होते हैं, उसी तरह विभिन्न क्षेत्रों एवं देशों की नदियों की विशेषताएँ भी अलग-अलग हुआ करती हैं. अतः संसार के जैसे दो मानव किसी भी दृष्टिकोण से एक जैसे नहीं है, उसी तरह कोई भी दो नदियां एक जैसी नहीं है. इसलिए नदियों का वर्गीकरण होना आवश्यक है. [3.7]

As the people of the different regions, states and countries have different physique and characters, so, the rivers of different regions and countries display different characteristics. As two persons of the world are not identical in any form, similarly, there are no two rivers, which are identical. Therefore, classifications of rivers are needed. [3.7]

संपादकीय विशेष -


प्रोफेसर उदयकांत चौधरी की कही यह नदी वर्गीकरण की बात आज के दौर में बिल्कुल सटीक बैठती हैं, जहां नदियों के संरक्षण से अधिक उनके बाहरी सौंदर्य पर ध्यान देते हुए नदी रिवरफ्रंट बनाने का प्रचलन भारत में चल पड़ा है. विदेशों में नदियों का स्वरुप, उनका प्राकृतिक बहाव, पारिस्थितिक तंत्र सब कुछ भारतीय नदियों की तुलना में बिल्कुल अलग है, फिर गंगा, गोमती या साबरमती को थेम्स बना देने की बात तर्कसंगत तो नहीं लगती. इसी बाहरी दिखावे
के नाम पर गोमती को लखनऊ में कंक्रीट की दीवारों में कैद कर दिया गया है.

सोचिये वर्षों से किसी गंभीर बीमारी से पीड़ित व्यक्ति को अच्छे से मेकअप, महंगे वस्त्रों से लाद दिया जाए और कह दिया जाये कि अब तुम बिल्कुल ठीक हो तो क्या यह मूर्खता नहीं होगी और यही मूर्खता आज कल राजनीतिज्ञों के लिए विकास कार्य बन वोट बैंक का साधन बन रहा है. हमारी नदियों को वर्षों के हमारे स्वार्थ ने बीमार बना दिया है, यहां आवश्यकता ईलाज की है, नदियों के लिए वर्षों से कार्य कर रहे नदी संरक्षकों की बताई बातों पर चलने की है...नदियों के प्राकृतिक स्वरुप को बरक़रार रखने की है और यह सब छोड़कर हम क्या कर रहे हैं, इस पर वाकई मंथन की आवश्यकता है.

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