पानी की कहानी
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गंगा नदी - धार्मिक क्रियाकलापों से व्यक्ति में सकारात्मक शक्ति बढ़ती है, जो स्वास्थ्य को मजबूती देती है

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  • U.K. Choudhary U.K. Choudhary
  • May-14-2020

केन्द्र्स्थ : Catching hold of Nucleus : MMITGM : (130) :

देवता की पूजा, हृदय चित्रपटल पर देव मूर्ति की फोटोग्राफी से शक्ति-संग्रह करना है. यह जैसा और जितने काल का विस्थापन तदनरुप देव-शक्ति से आवेष्टित होना, देव-मूर्ति की पूजा और अराधना है. यह प्रकृतिस्थ होते गंगा को समझना और कोरोना वायरस से निवृत्ति प्राप्त करने की तकनीक हो सकती है :

हे देवताओं के देवता, शक्ति-केन्द्रों के केन्द्र, भोलेनाथ ! देवताओं की मूर्ति पूजन लोग क्यों करते है? अनेकानेक स्वरूपों के देवताओं के मंदिर से काशी, प्रयाग, मथुरा, अयोध्या, विंध्याचल आदि विभिन्न तीर्थ-स्थली भारत में विराजमान हैं. लोगों ने भिन्न-भिन्न देवताओं को पूजना अपनी दिनचर्या में निहित कर लिया है. केवल वाराणसी में ही हजारों मंदिर हैं, कोई मंदिर ऐसा नहीं जँहा पूजा के निमित्त नित्य कोई नहीं जाता हो और हर मंदिर में देवता का भोग, राग पूजा-पाठ न होता हो. लोग अनेक तरहों के मनौती रखते हैं और इस क्रम में हर दिन का एक विशेष महत्व है. बुधवार को गणेश जी का, शनि और मंगलवार को हनुमान जी के संकटमोचन-मंदिर में, हजारों लोगों का माथा टेकना होता हैं. उसी प्रकार मंगलवार को ही दुर्गा और अन्नपूर्णा जी का दर्शन, सोमवार को विश्वनाथ जी का, यानि आपका दर्शन, लोग अपने संकल्प के तहत पूजा-अर्चना करते अपने-अपने मनोकामनापूर्ति की सिद्धि जल्द प्राप्त कर लेते हैं. इस तरह देवताओं की पूजा से उनके रोग-व्याधि दूर होने के सहित व्यापार में, बेटा-बेटी की शादी आदि कार्यों में सिद्धि मिलती है. कोई न कोई देवता भारत के हर घर के, परिवार के सदस्य सदृश्य हैं. बिना पूजा-पाठ के अधिकांश लोग घर से नहीं निकलते हैं. इन सब का रहस्य क्या है भोलेनाथ ! क्या लोग अपनी श्रद्धा और भावना के तहत विभिन्न देवताओं को विभिन्न रूपों में अपने हृदयस्थ चित्र में देखते हैं? इस कल्पना की बारंबारता से उनकी कोशिका देवता के स्वरूप में सज जाती है. इससे उनके हृदय की धड़कन स्थिरावस्था को प्राप्त करती है. क्या यही है मूर्ति-पूजा से प्रत्यक्ष शक्ति प्राप्त करना? यही है “orientation of cell defines the energy.” अतः देवताओं की पूजा का अर्थ है, देवताओं का अच्छा फोटोग्राफर बनना, जो हृदयस्थ कोशिका को देवता के स्वरूप में सजा दे और दृढ़ता से उसे व्यवस्थित कर दे. यही है देवता के पूजन से अपने आप को शक्तिशाली बनाना. इसमें जितना समय-स्थान की दृढता, कोशिका इनर्सिया ऑफ रेस्ट के तहत अपने स्वरूप में लौटती है, उसकी स्थिरता दीर्घकालिक होती जाती है और शक्ति भी उतनी ही प्रबल होती जाती है. यही है देवता के स्वरूप की सिद्धि प्राप्त करना, यही है देवता को अपने अधीन कर लेना. यही था योगीराज तैलंगस्वामी की शिवस्वरूप और महान साधक श्री रामकृष्ण को माँ काली की सिद्धि प्राप्त होना. यही है देवता की पूजा से कर्मों से उत्पन्न होने वाली सिद्धि का शीघ्र मिल जाना. यही भगवान श्रीकृष्ण यहाँ कह रहे हैं :

काँक्षन्त: कर्मणां सिद्धिं यजन्त इह देवता । क्षिप्रं हि मानुषे लोके सिद्धिर्भवति कर्मजा ।। गीता : 4.12 ।।

इस मनुष्य लोक में कर्मों के फल को चाहने वाले लोग देवताओं का पूजन किया करते हैं क्योंकि उनको कर्मों से उत्पन्न होने वाली सिद्धि शीघ्र मिल जाती है.

अत: हे भोलेनाथ ! हृदयस्थ मूर्ति ही शक्ति है. यही ज्ञान, ध्यान, योग और तपस्या है. यही मनुष्य को देवता और राक्षस बनाता है. तो क्यों ना इस शक्ति का उपयोग लोग अपने घरों में रहकर कोरोना वायरस को भगाने में लगाए.

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