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गंगा नदी - गंगा नदी के अत्याधिक दोहन और शोषण से उसके बैक्टेरियोफास का विनष्ट होना ही शरीर के विनष्टीकरण का कारण है

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  • U.K. Choudhary U.K. Choudhary
  • May-01-2020
केन्द्र्स्थ : Catching hold of Nucleus : MMITGM : (127) :


ब्रह्म-शरीर, ब्रह्माड से इसके भीतर के अवस्थित अनन्त शरीरे आपस में जुड़े हुए हैं. हमारे शरीर में विष जैसे एक जगह से पूरे शरीर में फैलता है, उसी तरह कोरोना वायरस को विश्व में फैलना है और यही संबंध है गंगा के अत्याधिक दोहन और शोषण से उसके बैक्टेरियोफास का पूरे शरीर से विनष्टीकरण का होना है.


हे भोलेनाथ! क्या वैज्ञानिक तथ्यों से ब्रह्मांड के हर एक बिन्दु पर निर्धारित बदलते स्वरूप से अनन्त बल निरन्तरता से विराजमान नहीं हैं? क्या हमारे एक-एक शब्द ब्रह्माड-सागर में तरंग उत्पन्न नहीं करता? अतः क्या वातावरणीय तरंग हमारे कृतित्व के प्रतिबिंब को परिभाषित नहीं करता? हमारे कलेजे की धड़कन से वातावरण का धड़कना; द्रौपदी की कारूणिक चीत्कार को भगवान श्रीकृष्ण द्वारा सुना जाना; बालक ध्रुव के लिये खंभ-फाड़कर नरसिंह भगवान का प्रकट होना आदि. अतः हे भोलेनाथ! एक सूक्ष्म आहट भी आपके इस ब्रह्माड शरीर की निर्मलता और अत्यन्त कोमलता को प्रतिध्वनित करता है. यही हमारे शरीर के आचरण की तरह आप के ब्रह्मांड शरीर की संवेदनशीलता का होना है. अतः आपके शरीर के भीतर हमारे शरीर का होना मानो अवेध्य रक्षक के भीतर पूर्ण सुरक्षित होना है. जब यह अवधारणा बज्र सदृश्य हो जाये तो मृत्यु के उपरांत जाना कहाँ, आपके शरीर में रहना ही तो है. यही भगवान श्रीकृष्ण यहाँ कह रहे हैं..


जन्म कर्म च दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वतः। त्यकत्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सो अर्जुन: ।। गीता : 4.9 ।।


हे अर्जुन ! मेरे जन्म और कर्म दिव्य अर्थात निर्मल और अलौकिक हैं - इस प्रकार जो मनुष्य तत्त्व को जान लेता है, वह शरीर को त्याग कर फिर जन्म को प्राप्त नहीं होता किन्तु मुझे ही प्राप्त होता है.


हे भोलेनाथ ! हमारा शरीर आपके शरीर के भीतर होने के कारण ही तो कोरोना वायरस चीन के एक प्रयोगशाला से विश्व में फैल गया. अतः वास्तविकता से कोइ कार्य सूक्ष्म नहीं कहा जा सकता है. इस कार्य के पीछे विभिन्न पदार्थिय और शक्तिय तरंगें होते हैं. इनके अनेकानेक आवृतियों-आयामों के साथ आवेग होते हैं. ये इनके अणुओं-परमाणुओं-बैक्टीरिया-वायरसों की भिन्नता को दर्शाते हैं. यही इनका चारित्रिक गुण और संवेदनशीलता है. अतः प्रत्येक कार्य के सूक्ष्म इम्पैक्ट एसेसमेंट की आवश्यकता होती है. गंगा के किसी कार्य में इनका नहीं होना, गंगा के दिव्य और अलौकिक बैक्टेरियोफास का विनष्टीकरण है और यही कोरोना वायरस जैसे गंगा की समस्याओं का प्रकटीकरण है.

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