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पूर्वी काली नदी - तटीय इलाकों से जुड़े गांवों के लिए अभिशाप बन रही है पूर्वी काली नदी

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  • Raman Kant Raman Kant
  • Deepika Chaudhary Deepika Chaudhary
  • February-01-2019

जो नदी कभी अपने तट पर बसे लोगों के लिए वरदान हुआ करती थी, आज वह उन्हीं लोगों के लिए अभिशाप बन चुकी है. हम बात कर रहे हैं मुजफ्फरनगर के अंतवाडा जिले से कन्नौज के बीच बहने वाली काली नदी की, जो आज प्रदूषण का दंश झेल रही है. इस नदी में प्रदूषण का स्तर लगातार बढ़ रहा है, जो कि सीधे तौर बस इसके किनारे पर बसे करीब 1200 गांवों के लोगों को प्रभावित कर रहा हैं.

 ग्रामीणों को कभी पीने और सिंचाई आदि के लिए जल उपलब्ध कराने वाली जीवनदायिनी काली नदी आज उन्हें अपने जहरीले जल से जानलेवा रोग दे रही है. नौ जिलों में बहने वाली 498 किलोमीटर लम्बी यह नदी प्रतिदिन अपने साथ मेटल, लेड, अमोनिया, आयरन, सिल्वर, फ्लोराइड समेत कई विषैले केमिकल युक्त जल बहाती है और इसके साथ बहती हैं, कैंसर से लेकर त्वचा व ह्रदय रोग जैसी कईं गंभीर बीमारियां.

हाल ही में गाज़ियाबाद आधारित ईटीएस लैब द्वारा काली नदी के जल के सैंपल पर की गईं जांच के अनुसार, नदी के प्रति एक लीटर जल में 2.15 मिग्री लेड, 14 मिग्रा अमोनिया व 8.19 मिग्रा आयरन पाया पाया गया, जो कि एक निश्चित मानक (अनुमत्य सीमा) से काफी अधिक है तथा नदी को विषाक्त बनाने के लिए पर्याप्त है.    

काली नदी में प्रदूषण का प्रमुख कारण गैरकानूनी रूप से नदी में कारखानों के अपशिष्ट का प्रवाह करना है. नदी में प्रदूषण का आलम यह है कि इसके आस- पास स्थित के गांवों का ग्राउंडवाटर भी प्रदूषित हो चुका है, जिसके चलते हैंडपंपों से भी गंदा पानी आ रहा है. काली नदी के कायाकल्प के लिए कार्य करने वाली संस्था नीर फाउंडेशन ने अटाली गांव के ऐसे 50 घरों के हैंडपंप के पानी के सैंपल लेकर इसकी जांच की, जिसके लोग विभिन्न रोगों से ग्रसित हैं.

नीर फाउंडेशन के निदेशक  रमन त्यागी के अनुसार,

"इन 50 घरों में करीब 250 लोग रहते हैं, जिनमें से लगभग आधे लोग पिछले पांच वर्षों के अंतर्गत जानलेवा बीमारियों से ग्रसित हैं. इन परिवारों के ज्यादातर लोग त्वचा, पेट संबंधी रोगों व कैंसर से जूझ रहे हैं तथा कई बच्चे मानसिक रोगों की चपेट में हैं. वहीं इन बीमारियों के चलते करीब 19 लोगों की मृत्यु भी हो चुकी है."

वहीं देहरादून आधारित पीपुल्स साइंस इंस्टीट्यूट द्वारा किए शोध के अंतर्गत काली नदी के जल के 16 अलग- अलग सैंपल्स की जांच की गई, जिसके अंतर्गत 8 सैंपल्स ग्राउंडवाटर से लिए गए, जबकि अन्य आठ सैंपल्स विभिन्न जिलों में बहती इस नदी के जल से. नदी से करीब 2 किमी रेडियस पर स्थित गांवों से लिए गए इन जल सैंपल्स ने यह स्पष्ट कर दिया, कि सिर्फ काली नदी ता जल ही नहीं बल्कि इसके आस- पास स्थित गांवों का ग्राउंडवाटर भी बुरी तरह से प्रदूषित हो चुका है.

इन सैंपल्स में शोधकर्ताओं को भारी मात्रा में मेटल के साथ ही लेड व घुलनशील ठोस व आयरन मिला. राजीव गांधी कैंसर इंस्टीट्यूट एंड रिसर्च सेंटर के अनुसार,  मेटल मानव शरीर के लिए अत्याधिक हानिकारक होता है और यह कैंसर आदि गंभीर रोगों को भी जन्म देता है.” ऐसे में ग्राउंडवाटर में इतनी बड़ी मात्रा में मेटल की उपस्थिति वास्तव में चिन्ता का सबब है.

रमन त्यागी के अनुसार,

इन गांवों के डॉक्टरों की मानें तो उनके पास आए दिन कई लोग गंभीर बीमारियों के इलाज़ के लिए आते हैं. रिसर्च में मुजफ्फरनगर, बुलन्दनगर और अलीगढ़ जिले के पानी में लेड की उपस्थित अत्याधिक मात्रा में देखने को मिली. मुजफ्फरनगर के अंतवाडा गांव के हैंडपंप के पानी में 0.21 मिग्रा प्रति लीटर देखने को मिली, जो कि अनुमत्य सीमा से 21 गुना अधिक है. इसी प्रकार बुलन्दशहर के रामपुरा गांव के हैंडपंप के पानी में लेड की मात्रा 0.35 मिली प्रतिलीटर पायी गई, जो कि अनुमत्य सीमा से 35 गुना अधिक है, वहीं इस गांव के ग्राउंडवाटर में टीडीएस की अनुमत्य सीमा 500 मिग्रा है, जब कि असल में यह 1760 मिग्रा है. इसी प्रकार हापुड़, मेरठ व कन्नौज जिलों के ग्राउंडवाटर में टीडीएस की मात्रा क्रमशः 828, 826 व 824 मिग्रा प्रति लीटर है. निदेशक रमन त्यागी के अनुसार इसी प्रकार कई गांवों के ग्राउंडवाटर में आयरन की मात्रा भी अनुमत्य सीमा से कहीं ज्यादा है. बुलन्दशहर, अलीगढ़, कासगंज और कन्नौज के पांच गांवों के ग्राउंडवाटर में आयरन की मात्रा 0.50, 0.85, 0.54, 0.46, 0.32 मिग्रा प्रतिलीटर पायी गई.

गंगा नदी की सहायक काली नदी के तट पर स्थित गांवों के नलों से पेयजल के स्थान अमोनिया, फ्लोराइड, सिल्वर, सलफाइड, लेड व आयरन जैसे हानिकारक तत्वों का प्रवाह होना ग्रामीणों के लिए घातक और जानलेवा बनता जा रहा है.

काली नदी आज उत्तर- प्रदेश की सबसे प्रदूषित नदियों में अपनी जगह बना चुकी है. नीर फाउंडेशन समेत अन्य कई संगठन समय- समय पर इस बढ़ते प्रदूषण की तरफ प्रशासन का ध्यान केन्द्रित करने का प्रयास करते रहे हैं. 2015 में भी इसके प्रदूषण पर सवाल उठाए गए थे. नदी के विषाक्त होने से लाखों ग्रामीणों के जीवन पर खतरा मंडरा रहा है, बावजूद इसके प्रशासन की ओर से इस दिशा में अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं.

 

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