संक्षिप्त परिचय –
एक नदी जिसके तट भगवान श्रीकृष्ण के जन्म व जीवनलीलाओं के साक्षी हैं, जिसके किनारों पर ब्रजमंडल की संस्कृति का उद्गम हुआ. ऐसी पवित्रतम यमुना नदी भारत की प्रमुख व अत्यन्त प्राचीन नदियों में से एक है. गंगा नदी की सबसे बड़ी सहायक नदी के रूप में जाने जानी वाली यमुना नदी का उद्गम यमुनोत्री नामक स्थान से माना जाता है, जो कि उत्तराखण्ड के उत्तरकाशी जिले के निकट गढ़वाल नामक स्थान पर है तथा हिन्दुओं का प्रमुख तीर्थस्थल भी है. यमुना नदी यमुनोत्री के समीप स्थित कालिंद पर्वत से निकलती है. इस कारण इसे कालिंदी भी कहा जाता है. नदी उत्तर भारत की सबसे बड़ी नदियों में से एक है तथा यह प्रमुख रूप उत्तराखण्ड, उत्तर- प्रदेश, दिल्ली व हरियाणा राज्य में प्रवाहित होती है.
ऐतिहासिक महत्व –
यमुना नदी का इतिहास कई युगों पुराना है. द्वापरकालीन इतिहास में भगवान श्रीकृष्ण की पत्नी माने जाने वाली यमुना नदी का प्राचीन पुराणों व शास्त्रों में कई जगह वर्णन किया गया है. जिनके अनुसार, यमुना नदी सूर्यदेव व छाया (सूर्य की पत्नी) की पुत्री तथा यमराज की बहन हैं. छाया (श्याम वर्ण) की संतान होने के कारण ही यमुना व यमराज का रंग श्यामला है.
भगवान कृष्ण को ब्रज संस्कृति का जनक कहा गया है तथा उनकी पत्नी मानी जाने वाली यमुना को इसी आधार पर ब्रज संस्कृति की जननी का स्थान दिया गया है. वहीं पौराणिक कथाओं के अनुसार, यमुना नदी ने अपने भाई यमराज से एक वरदान लिया हुआ है, कि यमुना में जो भी व्यक्ति स्नान करेगा, उसे यमलोक नहीं जाना पड़ेगा. इसके अलावा धार्मिक मान्यता के अनुसार, दीपावली के दूसरे दिन यमराज अपनी बहन यमुना से मिलते हैं, इसी कारण इस दिन भाई दूज (यम द्वितीया) का त्योहार मनाया जाता है.
यमुना की यात्रा –
हिमालय की बन्दरपुच्छ नामक चोटी के कालिंद पर्वत से अवतरित होने वाली यमुना नदी पहाड़ी क्षेत्रों से बहते हुए उत्तर- प्रदेश व हरियाणा राज्य की सीमाओं में प्रवेश करती है. पहाड़ियों व घाटियों से समतल मैदानों तक के अपने संपूर्ण सफ़र में यह नदी 1376 कि.मी. की दूरी तय करती है.
उत्तराखण्ड की पहाड़ियों से निकलकर यह नदी राज्य के कई जिलों में प्रवाहित होते हुए हरियाणा तथा उत्तर- प्रदेश राज्य में प्रवेश करती है तथा हरियाणा के करनाल व अम्बाला राज्य को उ.प्र. के मुजफ्फरनगर व सहारनपुर जिलों से अलग करती है. उ.प्र. के सहारनपुर से होते हुए यह नदी मथुरा, आगरा, हमीरपुर, इटावा व दिल्ली आदि स्थानों पर बहते हुए प्रयागराज में गंगा व सरस्वती (अदृश्य) नदी में समाहित हो जाती है. इस स्थान को संगमतट व त्रिवेणी कहा जाता है.
सहायक नदियां –
पहाड़ों से उतरते हुए यमुना नदी कई पहाड़ी नदियों कमलाद, वदरी, वदियर को स्वयं में समाहित करते हुए चलती है. मैदानी क्षेत्र में आने के बाद उत्तर भारत की कई प्रमुख नदियां यमुना नदी में आकर मिल जाती हैं. जिसके अंतर्गत दाहिनी दिशा से यमुना में केन, सिंधु, चंबल, बेतवा जैसी बड़ी नदियां आकर मिलती हैं. वहीं बांयी ओर से शारदा, ऋषिगंगा, हनुमान गंगा, हिंडन, कुंता व गिरी आदि अहम नदियां यमुना में समाहित हो जाती हैं. यमुना की सभी सहायक नदियां गंगा नदी की उप सहायक नदियां हैं, जो कि यमुना में मिलने के बाद प्रयागराज पहुंचकर गंगा नदी में विलीन हो जाती हैं.
घाट व पर्यटन स्थल –
गंगा नदी की तरह ही यमुना भी उत्तर भारत में पूजनीय मानी जाती है तथा इसे ब्रज में ‘यमुना मैया’ कहकर संबोधित किया जाता है. इस नदी के किनारे कई घाट पर तीर्थस्थल बसे हुए हैं. जिसमें से सबसे पहला तीर्थस्थल नदी का उद्गम स्थल यमुनोत्री ही है. वहीं ब्रज संस्कृति की जननी कही जाने वाली यमुना नदी के घाट आज भी भगवान श्रीकृष्ण की जीवनलीलाओं का बखान करते हैं.
मथुरा में यमुना तट पर 24 घाट बने हुए हैं तथा अकेले ब्रज में ही नदी के किनारे 16 पवित्र घाट स्थित हैं. जिसके अंतर्गत राम घाट, गौघाट, गोविन्द घाट, वैकुंठ घाट, ठकुरानी घाट, यशोदा घाट व केशीघाट आदि प्रमुख हैं. वहीं मथुरा में यमुना किनारे प्रसिद्ध विश्राम घाट (जहां कंस का वध करने के बाद भगवान ने विश्राम किया था) व उसके निकट द्वारिकाधीश मंदिर बना हुआ है. साथ ही प्रयागराज में त्रिवेणी, जहां गंगा, यमुना व सरस्वती नदी (अदृश्य) का संगम होता है, वह हिन्दुओं का प्रसिद्ध तीर्थस्थल होने के साथ ही कुंभनगरी भी है. इसके अलावा विश्व के सात अजूबों में से एक आगरा में स्थित ताजमहल भी यमुना नदी के तट पर स्थित है.