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कोसी नदी अपडेट - मोकामा टाल - 2.58 करोड़ की योजना (1964) अब 6 अरब के पार

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  • Dr Dinesh kumar Mishra Dr Dinesh kumar Mishra
  • November-12-2021
21 फरवरी, 1964 को बिहार विधानसभा में राम यतन सिंह ने मोकामा टाल परियोजना को तीसरी पंचवर्षीय योजना में शामिल करने का प्रस्ताव किया। उनका कहना था कि पटना-हावड़ा रेल लाइन के दक्षिण में फतुहा से लेकर लखीसराय तक की भूमि इस टाल में पड़ती है। यह जमीन बहुत ही उर्वर है किन्तु वर्षा का पानी नहीं निकल पाने के कारण इसमें ठीक से धान की खेती नहीं हो पाती है। इसमें मोहाने, पंचाने आदि बहुत सी छोटी-छोटी नदियाँ जो छोटा नागपुर से निकल कर बिहार की तरफ आती हैं, उनका पानी यहाँ आकर अटक जाता है और धान की बुआई ठीक समय से नहीं हो पाती है। पानी के नहीं निकलने से धान की फसल नष्ट हो जाती है और 2.44 लाख एकड़ भूमि के पानी का निकास नहीं हो पाता है। इसके कारण वहाँ दो फसल नहीं होती है। दक्षिण का इलाका धान की खेती के लायक है परन्तु पानी का निकास न होने के कारण वहाँ के किसान खेतों का लाभ नहीं उठा पाते हैं।

इस स्कीम में दो करोड़ 58 लाख रुपया खर्च होगा और ढाई लाख एकड़ जमीन की सिंचाई हो सकेगी। यदि प्रति एकड़ 10 मन धन भी पैदा होगा तो 25 लाख मन अनाज यहाँ पैदा होगा। इसलिये एक वर्ष में यहाँ जितना अन्न का उत्पादन होगा उसकी कीमत 2.58 करोड़ रुपये से अधिक होगी। इस स्कीम के बनने से लखीसराय से लेकर फतुहा तक के किसान लाभ उठा सकेंगे। स्कीम पूरी होने पर हम उस इलाके के लोगों को चावल खिलाने के साथ-साथ बाहर भी भेज सकेंगे। रब्बी के मौसम में यहाँ गेहूँ, चना और मसूर की खेती भी हो सकेगी। इस योजना को जल्द क्रियान्वित किया जाये और तीसरी पंचवर्षीय योजना में ही इसे शामिल किया जाये।


विधायक कपिलदेव सिंह का इस बहस में कहना था कि मोकामा टाल योजना के अध्ययन के लिये 1943 में एक फार्म जांच कमेटी बनी थी उसके अध्यक्ष थे पंडित बिनोदानंद झा और सेक्रेटरी थे गोरखनाथ सिंह। वह रिपोर्ट जनता के सामने आयी नहीं मुझे नहीं मालूम लेकिन जहां तक मुझे पता है उस रिपोर्ट में यह उर्वरा भूमि है, इसके बारे में विस्तृत जिक्र किया गया था। उसमें कहा गया था कि यह क्षेत्र चना और मसूर का भंडार है। बिहार में उसके सुधारने के लिए प्रयत्न होना परम आवश्यक है। उसके बाद 1960 में 17 मार्च के आर्यावर्त में देखा कि सिंचाई विभाग के एक बड़े अफसर ने लिखा था कि यह उर्वरा भूमि है। सिंचाई विभाग के अकर्मण्यता और उदासीनता की वजह से इसकी उपेक्षा की जा रही है। यह अन्न का भंडार है जिसका उपयोग नहीं किया जा रहा है।

इस योजना का एक अध्ययन हमारे स्वर्गीय नेता डॉक्टर श्री कृष्ण समय के समय में हुआ जब बहुत से लोगों ने उनके सामने प्रस्ताव रखा और तब एक बहुत बड़ा सम्मेलन हुआ था। उसमें बहुत बड़े बड़े अधिकारी जमा हुए थे और उसमें डॉ श्रीकृष्ण सिंह ने मोकामा योजना की जांच के लिये कमेटी के गठन का आदेश दिया था। पिछले तीन वर्षों से कमेटी की रिपोर्ट सरकार के विचाराधीन है।

इस फाइनेंशियल ईयर में 19 लाख 66 हजार रुपया मिला और 31 जनवरी तक खर्च हुआ है 4.23 लाख रुपया। इससे पता लगता है कि हमारी सरकार किस रास्ते पर चलना चाहती है और किस तरह काम करना चाहती है। इनकी अकर्मण्यता, विकलांगता के चलते शायद इनको जनता के हित की बात जरूरत नहीं है। इसलिये बिहार का रुपया वापस चला गया। रुपये का व्यवहार नहीं किया जा सका।


पार्लियामेंट में बहस के दौरान में हिंदुस्तान की किसी भी योजना पर लोगों का ध्यान नहीं गया। जहाँ तक फ्लड कंट्रोल की बात है वहाँ सब से क्षतिग्रस्त राज्य बिहार है लेकिन प्लान की रिपोर्ट में पेज 105 में लिखा हुआ है कि आसाम, बंगाल आदि में इसके लिये प्रोविजन किया गया किंतु इसमें बिहार का नाम तक नहीं है। हमने केंद्रीय सरकार के सिंचाई मंत्री श्री के.एल. राव को लिखा और उसकी प्रतिलिपि सिंचाई मंत्री और मुख्यमंत्री को दी। सिंचाई मंत्री का तो जवाब आया कि पत्र मिल गया लेकिन चीफ मिनिस्टर इतने व्यस्त हैं कि उनका कुछ भी जवाब नहीं मिला। केंद्रीय सिंचाई मंत्री ने लिखा कि इस योजना की चर्चा तो सुनते हैं लेकिन इस सम्बन्ध में बिहार सरकार को कहो। हमारे मास्टर प्लान में भी नहीं दिया है और इसके लिये कहीं और प्रयास करो। यहाँ सेक्रेटेरिएट में योजना बनायी जाती है तो इस योजना को आप कम से कम राज्य की जो इरिगेशन कमेटी है जिसके सभी बड़े अफसर लोग सदस्य हैं उनकी मीटिंग बुला कर इसे पेश तो करवाते।

इन वक्ताओं का मानना था की जितना पैसा सरकार अपने बजट से खर्च नहीं कर पाती है उतना पैसा तो विभिन्न विभागों से लौट जाता है। जितना पैसा लौट जाता है उतने पैसे में मोकामा टाल योजना का काम हो गया होता।

इसके जवाब में सरकार की तरफ से उप-सिंचाई मंत्री सहदेव महतो ने कहा कि सरकार इस योजना के प्रति काफी सचेत है और इसकी जानकारी रखती है सरकार ने इस योजना को तीसरी पंचवर्षीय योजना में शामिल करने के लिये प्रस्तावित किया था लेकिन सेंट्रल पी.डब्ल्यू.डी. का अनुमोदन न मिलने की वजह से यह योजना प्लैनिंग कमीशन को नहीं भेजी जा सकी। इस तरह की पाँच स्कीमें थीं जिसके लिये राज्य सरकार कुछ नहीं कर पायी। फिर भी अगर संसाधन बचे तो इसको तृतीय पंचम वर्षीय योजना में शामिल किया जायेगा अन्यथा इसे चौथी पंचवर्षीय योजना में शामिल करने का प्रयास किया जायेगा।


सुना है कि इस योजना पर अब छ: अरब रुपये से अधिक का बजट है, कुछ काम भी हुआ है।


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