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गंगा नदी - वैश्विक प्रकृति और गंगा नदी के अत्याधिक दोहन का परिणाम है कोरोना वायरस

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  • U.K. Choudhary U.K. Choudhary
  • June-11-2020

केन्द्रस्थ : Catching hold of Nucleus : MMITGM : (137) :

कर्म-अकर्म, क्रिया का प्रतिक्रिया और प्रतिक्रिया का क्रिया को बराबर समझना ज्ञान और कर्म योग है. यही है गंगा के सैन्ड बेड से अवजल का प्रवाह कर गंगाजल के बैक्टेरियोफेज को संरक्षित करते हुए कोरोना वायरस को परास्त करने की तकनीक को समझना.

हे भोलेनाथ ! बुद्धिमान कौन है? क्या यह वह व्यक्ति है, जो मन-वचन-कर्म के संतुलित अपने समस्त आचरणों से शक्तिक्षय को नियंत्रित रखें? अर्थात् यह वह व्यक्ति है, जो निरंतरता से यथा संभव अपनी कोशिकाओं को व्यवस्थित रखें. यह सावधानी वह इसलिए बरतता है क्योंकि वह भली भाँति जानता है कि हर एक क्रिया की उसके विपरीत प्रतिक्रिया होती है. क्या यह इसलिए होता क्योंकि आप का शरीर, ब्रह्मांड संतुलित है? प्रत्येक एक्शन का रिएक्शन और हर एक हो रहे या होने वाले कार्य का अवश्यम्भावी कारण है. यही है न भोलेनाथ महान दु:खदायी कोरोना वायरस के होने का कारण. महान दुष्कर्म का, प्रकृति के प्रचंड दोहन इत्यादि का विश्वव्यापी परिणाम कोरोना वायरस का होना है. यही है बुद्धि भ्रष्ट होने का परिणाम. इस परिणाम के तहत् फिर हमारी क्रियाओं में, व्यवहारों में, अन्वेषणों मे परिवर्तन का अवश्यंभावी होना, यही है कर्म में अकर्म और अकर्म में कर्म को देखना, ज्ञानी मनुष्य का होना. यही भगवान श्रीकृष्ण यहाँ कह रहे हैं :

कर्मण्यकर्म य: पश्येदकर्मणि च कर्म य: । स बुद्धिमान्मनुष्येषु स युक्: कृत्स्नकर्मकृत ।। गीता : 4.18 ।।

जो मनुष्य कर्म में अकर्म देखता है और जो अकर्म में कर्म देखता है, वह मनुष्यों में बुद्धिमान है और वह योगी समस्त कर्मो को करने वाला है.

हे भोलेनाथ ! गंगा के औषधीय-जल के प्रति हमारे कर्म और अकर्म की विवेचना क्या है? डैम-बैराज, मल-जल प्रवाह और STP आदि हमारे कर्म हैं. इन कर्मों द्वारा गंगा-जल के मौलिक-औषधीय गुण में क्या परिवर्तन हुआ और इसके बैक्टेरियोफेज कितना और कैसे रूपांतरित हुआ, इसका किसी भी स्तर पर देश में इसके ही लिये बनी विभिन्न संस्थाओं में कभी कोई अध्ययन नहीं हुआ. अतः गंगा के प्रति हमनें कोई कर्म नहीं किया है और अकर्म, इस पर कोई कर्म नहीं, इसे प्राकृतिक अवस्था में रखना वह भी नहीं किया है. तब हमने क्या किया है भोलेनाथ? यही है प्रकृति का प्रचंड दोहन, गंगा के मौलिक तत्व बैक्टेरियोफेज का विनष्टीकरण और कोरोना वायरस का प्रगटीकरण. यही है कर्म में अकर्म को देखना और अकर्म के आधार पर अपने कर्म का मूल्यांकन, परिक्षण आदि करना. यही है, जहां बैक्टेरियोफेज, वहां कोरोना वायरस का होना. और यही है गंगा के, विश्व की प्रकृति के दोहन और अवशोषण का परिणाम यानि कोरोना.

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