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ईस्ट काली रिवर वाटरकीपर - काली नदी उद्धार के लिए भाकियू भी आया आगे, किया उद्गम स्थल का दौरा

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  • Raman Kant Raman Kant
  • December-15-2019
काली अविरल व निर्मल रहे..इसके लिए लम्बे समय से किये जा रहे नीर फाउंडेशन के प्रयासों को सबसे बड़ी सफलता मिली जब अंतवाडा में काली की धारा कुछ ही फुट की खुदाई पर बहने लगी. काली की इस धारा को देखने के लिए अंतवाडा गांव में आगंतुकों का जमावड़ा लगने लगा और धीरे धीरे आमजन और प्रशासन की ओर से सहयोग मिलने की खबर पाकर काली के शुभचिंतकों के चेहरों पर ख़ुशी दिख रही है. संवरती काली के साथ अंतवाडा के दिन भी बदलने लगा और ग्रामीण समाज में नदी, पर्यावरण व स्वच्छता को लेकर जागरूकता बढ़ रही है, इसके साथ ही विभिन्न सामाजिक व राजनितिक संस्थाओं का समर्थन भी इस मुहिम को मिलने लगा है. इसी कड़ी में भारतीय किसान यूनियन मंडल के अधिकारी एवं कार्यकर्ता भी काली उद्गम स्थल का दौरा करने पहुंचे.

क्लीन काली..ग्रीन काली मुहिम की सराहना की


अंतवाडा में काली उद्गम स्थल का भ्रमण करने पहुंचे भाकियू मंडलाध्यक्ष भंवर सिंह गुर्जर ने नीर फाउंडेशन और इसके निदेशक रमन कांत के अथक प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि रमन कांत के प्रयासों ने केवल काली को ही नहीं बल्कि अंतवाडा को भी राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई है, जिसके लिए गांव का जन जन उनका आभारी रहेगा. आने वाले समय में ग्रामीणों को प्रयास करना होगा कि वें अपने गांव को साफ़ व स्वच्छ रखें तथा नदी को संरक्षित रखने की दिशा में जागरूक होकर कार्य करें क्योंकि अंतवाडा का भविष्य काली नदी के कारण चमक उठा है और जल्द ही देशी विदेशी सैलानी यहां इन प्रयासों का मूर्त रूप देखने के लिए आया करेंगे.

अधिवक्ता राजवीर सिंह ने बताया काली का इतिहास


नदी का दौरा करने आये भाकियू अधिकारियों का स्वागत ग्रामीण एडवोकेट राजवीर सिंह के आवास पर किया गया, जहां उन्होंने भंवर सिंह गुर्जर (भाकियू मंडलाध्यक्ष) सहित जिलाध्यक्ष सतेंद्र पुंडीर, अंकुर मुखिया, तहसील अध्यक्ष भारतवीर आर्य, अब्दुल्ला कुरैशी, दीप कुमार इत्यादि का स्वागत किया. अधिवक्ता राजवीर सिंह ने काली नदी के इतिहास से टीम का परिचय कराते हुए बताया कि वर्षों पहले इस गांव में काली का स्वरुप विराट था और गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि उन्हें नदी पार कर जंगल में पशुओं के लिए चारा आदि लेने जाना पड़ता था. साथ ही उन्होंने बताया कि यहां काली नागिन की तरह बलखाते हुए चलती थी, जिस कारण आज भी गांव वाले इसे नागिन नदी कहते हैं.

काली के इतिहास को विस्तार से बताते हुए राजवीर सिंह ने भाकियू सदस्यों को बताया कि बदलते समय के साथ खेती-किसानी, मकान, उद्योगों आदि के लिए नदी की जमीन पर अतिक्रमण शुरू हो गया और धीरे धीरे नदी की समस्त जमीन ही अधिग्रहण कर ली गयी, जिससे यह ऐतिहासिक नदी अंतवाडा में खो ही गयी थी, लेकिन नदी मित्र रमन कांत ने यहां आकर किसानों को जागरूक किया, उन्हें नदी के महत्त्व से रूबरू कराया, जिससे किसानों ने अभी तक लगभग 145 बीघा के करीब नदी की जमीन से कब्जा हटा लिया है और नदी को पहले की भांति प्रवाह देने के लिए विभिन्न माध्यमों से इसके उद्धार के प्रयास किये जा रहे हैं. नदी किनारों पर वृक्षारोपण, झील, तालाब, पिट आदि बनाये जाने से नदी के प्रवाह और भूगर्भीय जल को सिंचित किया जा सकेगा.

नदी का ऐसे जीवित हो उठना सुखद व अद्भुत - भंवर सिंह गुर्जर


राजवीर सिंह अधिवक्ता के आवास पर हुयी प्रेस वार्ता में भाकियू के मंडलाध्यक्ष भंवर सिंह गुर्जर ने कहा कि नदी का इस प्रकार जीवित हो उठना वास्तव में अद्भुत है. उन्होंने बताया कि नदियां हमारी संस्कृति का आधार है, जो आज देश में प्रदूषण के चलते मर रही हैं, ऐसे में समाज के किये गए प्रयास बेहद जरुरी हैं. उन्होंने नदी मित्र रमन कांत के कार्यों की और ग्रामीण जनों के सहयोग की प्रशंसा करते हुए बताया कि उन्होंने पहली बार किसी नदी को ऐसे स्वत: प्रकट होते देखा है, जो हैरान कर देने वाली घटना है, साथ ही यह समाज को जागरूकता देने वाले प्रयासों की सफलता का प्रतीक भी है.

इसके अतिरिक्त भंवर सिंह गुर्जर ने बताया कि नदी को बचाने के इस अभियान में भाकियू नीर फाउंडेशन व रमनकांत त्यागी के साथ खड़ी है और उनके मंडल के सदस्य हरसंभव सहायता करने में आगे रहेंगे. अंतवाडा ग्राम में नदी जीवित होने से नवजोश की जो लहर आई है, उसे आगे लेकर जाना अब समाज में सभी की जिम्मेदारी है, जिसके लिए समस्त भाकियू मंडल इस मुहिम में योगदान देगा.

पश्चिमी यूपी में नदियों से जुड़ रहा है समाज - रमन कांत त्यागी


नदी मित्र रमनकांत त्यागी का कहना है कि काली को जीवन मिलने से केवल अंतवाडा ही नहीं बल्कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भी एक जनक्रांति देखने को मिल रही है. आमजन का नदियों से जुड़ना, नदियों के संरक्षण के लिए प्रयास करना धीरे धीरे बढ़ रहा है. काली नदी के उद्गम स्थल पर ग्रामीणों व किसानों से मिल रहा सहयोग इस बात का प्रमाण है कि लोग नदियों को लेकर जागरूक हो रहे हैं. इसके साथ ही शासन-प्रशासन का समर्थन मिलना भी एक सकारात्मक परिवर्तन की ओर इंगित कर रहा है.


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