संक्षिप्त परिचय –
‘तुंग’ और ‘भद्रा’ नामक दो नदियों के संगम से जन्म लेने वाली तुंगभद्रा नदी दक्षिण भारत की प्रमुख नदियों में से एक है. नदी का उद्गम कर्नाटक राज्य के ‘गंगामूल’ नामक स्थान से होता है. यह कृष्णा नदी की प्रमुख सहायक नदियों में से एक है. आदि गुरू शंकराचार्य द्वारा इसी नदी के तट पर ‘श्रृंगेरी मठ’ की स्थापना की गई थी. दक्षिण भारत के विभिन्न राज्यों में बहते हुए तुंगभद्रा नदी आंध्र प्रदेश में कृष्णा नदी में समाहित हो जाती है.
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि –
दक्षिण भारत की प्राचीन नदियों में से एक तुंगभद्रा नदी का रामायण में ‘पंपा’ व महाभारत में ‘तुंगवेणा’ नदी के नाम से उल्लेख है. वहीं श्रीमद्भागवत में भी कृष्णा व कावेरी नदी के साथ तुंगभद्रा का वर्णन किया गया है.
आदि गुरू शंकराचार्य ने हिन्दु धर्म को एकता के सूत्र में बांधने के लिए भारत की चारों दिशाओं में जिन चार मठों (श्रृंगेरी, गोवर्धन, शारदा, ज्योतिर्मठ) की स्थापना की थी, उनमें से दक्षिण दिशा में स्थापित ‘श्रृंगेरी मठ’ तुंगभद्रा नदी के तट पर ही स्थित है. इसके अलावा 14वीं शताब्दी के प्रसिद्ध राजा कृष्णदेवराय का साम्राज्य विजयनगर (वर्तमान में बेल्लारी जिला) इसी नदी के किनारे बसा हुआ था.
सहायक नदियां –
प्रमुख रूप से तुंगभद्रा नदी की छः सहायक नदियां हैं, जो कि इसके मार्ग में इससे मिलती हैं. जिसके अंतर्गत कर्नाटक में औकबरदा व कुमुदावती नदियां तुंगभद्रा में आकर मिलती हैं. इसके अलावा वरदा, वेदवती व हांद्री नदियां आगे की यात्रा में तुंगभद्रा नदी में विलीन हो जाती हैं.
तुंगभद्रा की यात्रा –
अलग- अलग पर्वत श्रृंखलाओं से निकलने वाली तुंग और भद्रा नदियां कर्नाटक के शिमोगा नामक स्थान से ‘तुंगभद्रा’ के रूप में अपनी यात्रा की शुरूआत करती हैं. कर्नाटक के विभिन्न क्षेत्रों से बहते हुए तुंगभद्रा नदी तेलगांना व आंध्र प्रदेश राज्य के अलग- अलग जिलों में प्रवाहित होती है. अपनी यात्रा के अंतिम पड़ाव में आंध्र प्रदेश के कर्नूल जिले में कृष्णा नदी में मिलने के साथ ही तुंगभद्रा अपने सफ़र को समाप्त करती है. कृष्णा नदी आगे जाकर बंगाल की खाड़ी में विलीन हो जाती है.