संक्षिप्त परिचय -
गंगा के निर्माण में विशेष योगदान देने वाली अलकनंदा नदी उत्तर भारत की प्रमुख नदियों में से एक है. यह गंगा नदी की महज़ एक सहायक नदी न होकर उसका एक भाग है, जो कि भागीरथी के साथ मिलकर गंगा को अस्तित्व में लाती है. अलकनंदा नदी का उद्मन कैलाश व बद्रीनाथ जैसे पवित्र स्थलों के समीप से होता है. यह नदी मूलरूप से हिमालय की ‘भागीरथी खड़क’ और ‘संतोपंथ’ नामक पर्वतमालाओं से उद्गमित होती है. नदी का प्राचीन नाम ‘विष्णुगंगा’ है. उत्तराखण्ड के विभिन्न भागों से बहते हुए अलकनंदा देवप्रयाग में भागीरथी नदी से मिलती है. यहीं से अलकनंदा के सफ़र का अंत होता है तथा गंगा नदी की यात्रा शुरू होती है.
ऐतिहासिक महत्व –
अलकनंदा नदी भारत की प्राचीनतम नदियों में से एक है, जिसका कई प्राचीन ग्रंथों महाभारत, विष्णुप्रयाग आदि में वर्णन देखने को मिलता है. इसके अलावा महाकवि कालिदास ने भी अपनी रचना में इस नदी का उल्लेख किया है. नदी के नाम को लेकर पौराणिक मान्यता है कि गंगा के धरती पर अवतरण के समय भगवान शिव ने इसे अपनी जटाओं अर्थात् अलकों में इसे बांध लिया है, जिसके बाद उन्होंने अपने जूड़े से सिर्फ एक धारा प्रवाहित की थी, जो कि गंगा नदी के रूप में धरती पर प्रवाहित होती है. गंगा का ही एक भाग व भगवान शिव की अलकों से निकलने के कारण इस नदी का नाम ‘अलकनंदा’ पड़ा.
प्रवाह क्षेत्र (पंचप्रयाग) –
गंगा नदी का मूलस्त्रोत मानी जाने वाली अलकनंदा नदी गढ़वाल क्षेत्र में प्रवाहित होती है. अपनी यात्रा में यह नदी कई पवित्र स्थलों से होकर गुजरती है. इस दौरान यह ‘पंचप्रयाग’ का भी निर्माण करती है.
अपने उद्गम से निकलने के बाद अलकनंदी की पांच सहायक नदियों के अलग- अलग स्थानों पर इससे मिलती हैं. जिसके अंतर्गत धौली गंगा विष्णुप्रयाग में, नंदाकिनी नदी नंदप्रयाग में, पिंडारी नदी कर्णप्रयाग में, मंदाकिनी नदी रूद्रप्रयाग में तथा भागीरथी नदी देवप्रयाग में अलकनंदा में आकर समाहित हो जाती हैं. अलकनंदा नदी की इस पावन यात्रा को पंचप्रयाग के नाम से जाना जाता है. इसके अलावा केशवप्रयाग में यह सरस्वती नदी से भी मिलती है. देवप्रयाग के यह गंगा नदी के रूप में प्रवाहित होती है.