कम होती बरसात, लगातार भूजल दोहन, पानी का बेजा इस्तेमाल, घटते ग्लेशियर, लुप्त होती नदियां। अब सिर्फ समाचार पत्रों की सुर्खियां भर नहीं रह गई, जो आपको संकट के प्रति सचेत करती हो। संकट आपकी दहलीज तक पहुंच कर दरवाजा खटखटा रहा है। संभल जाओं, अन्यथा 2030 तक तक देश में पानी की मांग उपलब्ध जल वितरण की दोगुनी हो जाएगी। जिसका मतलब है कि करोड़ों लोगों के लिए पानी का गंभीर संकट पैदा हो जाएगा। अभी देश में करीब 60 करोड़ लोग पानी की गंभीर किल्लत का सामना कर रहे है। करीब दो लाख लोग स्वच्छ पानी न मिलने के चलते हर साल जान गंवा देते हैं। नीति आयोग ने 16 जून को जो रिपोर्ट दी है, इसमें यह जानकारी दी गई है। नीति आयोग की जल संसाधन मंत्री नितिन गडकरी द्वारा जारी की गई ‘समग्र जल प्रबंधन सूचकांक (सीडब्ल्यूएमआई)’ रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि यह संकट आगे और गंभीर होने जा रहा है । रिपोर्ट में स्वतंत्र संस्थाओं द्वारा जुटाए डाटा का उदाहरण देते हुए बताया कि करीब 70 प्रतिशत प्रदूषित पानी के साथ भारत जल गुणवत्ता सूचकांक में 122 देशों में 120वें पायदान पर है। यानि साफ है पानी के मामले में हम गंभीर जल संकट के सामने खड़े हैं। दिक्कत यह है कि अभी भी पानी को लेकर कोई स्प्ष्ट नीति नहीं है।
हरियाणा में वाटर मैनेजमेंट के सबसे बुरे हालात
रिपोर्ट के अनुसार, झारखंड, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और बिहार जल प्रबंधन के मामले में सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले राज्य रहे हैं। यहां भारत की लगभग आधी आबादी रहती है। आयोग द्वारा समग्र "जल प्रबंधन सूचकांक’ जारी किया है, जिसमें गुजरात सबसे ऊपर है। वहीं झारखंड सूची में सबसे निचले पायदान पर है। यह सूचकांक 9 व्यापक क्षेत्रों में भूमिगत, जल निकायों के स्तर में सुधार, सिंचाई, कृषि गतिविधियां, पेयजल नीति और संचालन व्यवस्था समेत कुल 28 विभिन्न संकेतकों के आधार पर तैयार किया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक 75 प्रतिशत घरों में पीने के पानी का संकट है, वहीं 70 प्रतिशत पानी प्रदूषित है। 84 प्रतिशत ग्रामीण घरों में पाइप के जरिए पानी की सप्लाई नहीं है। रिपोर्ट में गुजरात को जल संसाधनों के प्रभावी प्रबंधन के मामले में पहला स्थान दिया गया है. सूचकांक में गुजरात के बाद मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र का नंबर आता है।
जलाश्यों में बचा 17 फीसदी पानी
रिपोर्ट के मुताबिक देश में 91 बहुत बड़े आकार के जलाशय है, जिनमें 161 बिलियन क्यूबिक मीटर पानी है। इसमें से 37 बड़े जलाशयों में से प्रत्येक में 60 मेगावाट का बिजली उत्पादन किया जा रहा है। इन जलाशयों में अब 17 प्रतशित पानी ही बचा है। पिछले साल इस अवधि में इसमें पानी का स्तर 21 प्रतिशत था, जो एक दशक में औसतन 19 प्रतिशत तक रहा है। यह जानकारी केंदीय जल आयोग के माध्यम से मिली है। यानी जलाश्यों में भी पानी तेजी से कम हो रहा है। देश में 4525 बड़े बाँध हैं, जिसकी संग्रह क्षमता 220 खरब क्यूबिक मीटर है। इसमें जलसंग्रह के छोटे-छोटे स्रोत शामिल नहीं हैं, जिनकी क्षमता 610 खरब क्यूबिक मीटर है। फिर भी हमारी प्रति कैपिटा संग्रहण की क्षमता आस्ट्रेलिया, चीन, मोरक्को, दक्षिण अफ्रीका, स्पेन और अमेरिका से बहुत कम है। चूँकि वर्ष में एक निश्चित समय तक लगभग 100 दिन वर्षा होती है, इसलिए वर्ष के काफी सूखे दिनों के लिए पानी को संग्रहित करके रखना बहुत जरूरी है।
केन्द्रीय भू-जल प्राधिकरण ने धरती के भीतर उपलब्ध जल का सर्वेक्षण कराया। सर्वेक्षण के अनुसार 5,723 में से 839 ब्लाॅकों ने भू-जल का आवश्यकता से अधिक दोहन कर लिया है, इसलिए इन ब्लाॅकों में अब और कुएँ खोदने की अनुमति नहीं मिल सकती। दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, कर्नाटक और तमिलनाडु की स्थिति अत्यधिक गम्भीर है। गुडगाँव, दिल्ली, बंगलौर, तिरूवनंतपुरम, जालंधर और पोरबंदर जैसे शहरों में धरती से पानी निकालने पर रोक लगा दी गई है। सरकार ने 43 ब्लाॅकों में भू-जल के दोहन पर पाबंदी लगा दी है और कई ब्लॉकों की पहचान की जा रही है। जहाँ तत्काल रोक लगाने की जरूरत है।
भूजल प्रदूषण की बड़ी वजह पानी का अधिक दोहन
केन्द्रीय भू-जल प्राधिकरण ने धरती के भीतर उपलब्ध जल का सर्वेक्षण कराया। सर्वेक्षण के अनुसार 5,723 में से 839 ब्लाॅकों ने भू-जल का आवश्यकता से अधिक दोहन कर लिया है। भूमिगत पानी की अतिनिकासी और जल पुनर्भरण की कोई व्यवस्था न होने से पंजाब के 12 तथा हरियाणा के तीन जिलों में भूमिगत जलस्तर खतरनाक स्तर तक नीचे चला गया। यूपी राज्य के आगरा जिले के आस-पास के क्षेत्रों में जलस्तर इतना अधिक नीचे चला गया है कि अब वहाँ के कृषक पम्पिंग सेट के बजाय सबमर्सिबल पम्पों का प्रयोग करने लगे हैं।
उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र के सभी जिलों में, पश्चिमी तथा मध्य उत्तर प्रदेश के जिलों एवं पूर्वी उत्तर प्रदेश के कई जिलों में भूमिगत जलस्तर काफी नीचे चला गया है। दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, कर्नाटक और तमिलनाडु की स्थिति अत्यधिक गम्भीर है। गुडगांव, दिल्ली, बंगलौर, तिरूवनंतपुरम, जालंधर और पोरबंदर जैसे शहरों में धरती से पानी निकालने पर रोक लगा दी गई है। सरकार ने 43 ब्लाॅकों में भू-जल के दोहन पर पाबंदी लगा दी है और कई ब्लॉकों की पहचान की जा रही है। जहां तत्काल रोक लगाने की जरूरत है।
भूमिगत जल के अत्यधिक दोहन से तटवर्ती क्षेत्रों में जमीन के अन्दर खारा पानी घुस जाता है जिससे खारेपन की समस्या बढ़ रही है। देश के बड़े हिस्से में भू-जल का स्तर नीचे जाने से जल संकट पैदा होने के साथ-साथ देश का पारिस्थितिकी तंत्र भी गड़बड़ा रहा है। देश के साढ़े चार लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में भू-जल स्तर इतना नीचे आ गया है कि उसके रिचार्ज के लिए कृत्रिम उपायों की जरूरत है। जल संसाधन मन्त्रालय ने सात संकटग्रस्त राज्यों को कुआं खोदकर भू-जल रिचार्ज करने की योजना भेजी है। ये राज्य हैं- आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, राजस्थान, तमिलनाडु, गुजरात और मध्य प्रदेश। इन राज्यों को कहा गया कि वे खोदे गए कुओं को टिकाऊ बनाएं। देश के साढ़े चार लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में भू-जल स्तर इतना नीचे आ गया है कि उसके रिचार्ज के लिए कृत्रिम उपायों की जरूरत है। जल संसाधन मंत्रालय ने संकटग्रस्त राज्यों को कुआँ खोदकर भू-जल रिचार्ज करने की योजना भेजी है। ये राज्य हैं- आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, राजस्थान, तमिलनाडु, गुजरात और मध्य प्रदेश,हरियाणा और पंजाब हैं।
फिर भी कर रहे हम पानी का धंधा
दिक्कत यह है कि एक ओर तो पीने के पानी का संकट बढ़ रहा है, दूसरी ओर पानी का कारोबार 2000 करोड़ से भी ज्यादा तक पहुंच गया है। इस कारोबार में हर साल 40 से 50 प्रतिशत की दर से इजाफा हो रहा है। 2015 की एक रिपोर्ट के मुताबिक बिसलेरी जो कि भारत की सबसे पुरानी कम्पनी मानी जाती है, सालाना 400 करोड़ रूपये का कारोबार कर रही है। पानी के बड़े बाजार के रूप में भारत और चीन को देखा जा रहा है। स्थिति यह है कि न सिर्फ शहरी क्षेत्रों में बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में भी बोतलबंद पानी का चलन बढ़ा है। इस कारोबार में मुनाफा काफी है। 15 से 20 रूपये की बोतल जो हम खरीदते हैं उसकी कच्चे माल की लागत मात्र 0.02 से 0.03 पैसे तक पड़ती है। बोतलबंद पानी के बढ़ते प्रयोग से पर्यावरण भी प्रभावित हो रहा है। इससे जल का संकट भी बढ़ रहा है। भारत में 190 से भी ज्यादा कम्पनियां पानी का धंधा कर रही है। 4200 संयंत्र काम कर रहे है ये कम्पनियां भू-जल के अनियंत्रित दोहन में आगे हैं। जनहित को ध्यान में रखकर सरकार इन्हें दूसरे देशों की तुलना में बहुत सस्ता पानी मुहैया कराती है। भू-जल को रिवर्स आसमोसिस में डालकर शुद्ध किया जाता है। इस प्रक्रिया में जल की काफी बर्बादी होती है, क्योंकि बचे हुए जल को नालों में बहा दिया जाता है। लाखों लीटर पानी की बर्बादी शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने वाले संयन्त्र रोज करते हैं। उदाहरण स्वरूप 20 लीटर में से मात्र 4 लीटर पानी काम में आता है। शेष 16 लीटर पानी बर्बादी की भेंट चढ़ जाता है। चिंता इस बात की है कि बहुत सी कंपनियां तो अब सीधे जलस्त्रोत के पास ही अपनी इकाई स्थापित कर रही है। उत्तराखंड और हिमाचल 50 अलगअलग इकाई काम कर रही है। पानी का व्यवसायीकरण प्लास्टिक के कचरे को भी बढ़ा रहा है लिसे लेकर पर्यावरणविद चिन्तित हैं।
चावल की खेती यानि जल का निर्यात
भारत विश्व में चावल का सबसे बड़ा निर्यातक देश है। थाईलैंड दूसरे स्थान पर है। हरियाणा के कृषि मंत्री ओपी धनखड़ का कहना है कि एक किलो चावल तैयार करने में करीब एक हजार लीटर पानी लग जाता है। इसके बाद भी हम हर साल औसतन दस प्रतिशत ज्यादा धान उगा रहे हैं। हरियाणा में इस सीजन में ही अब से करीब 20 दिन पहले धान की 40 प्रतिशत रोपाई हो चुकी है। जबकि मानसून 15 जून को आने की संभावना थी। धान उत्पादन से लेकर चावल तैयार करने तक हर जगह भारी मात्रा में पानी लगता है। वित्त वर्ष 2019 में बासमती चावल का निर्यात बढ़ने की संभावना है। खासकर ईरान में इसकी मांग में बढ़ोतरी हुई है। वित्त वर्ष 2018 के पहले 9 महीने में बासमती एक्सपोर्ट की ग्रोथ 22 प्रतिशत रही जो कि 123 लाख टन के आस पास रही है।
मतलब साफ है पानी पर खतरा तेजी से बढ़ रहा है। ऐसे में अब वक्त आ गया कि पानी को लेकर केंद्र और राज्य सरकार कोई स्पष्ट नीति बनाए। हरियाण में जल और पर्यावरण के लिए काम कर रही संस्था आकृति के अध्यक्ष अनुज ने बताया कि यदि ऐसा नहीं हुआ तो बहुत संभावना है साफ और शुद्ध पानी सिर्फ अमीरों को ही उपलब्ध होगा। अनुज ने बताया कि पानी की जितनी बर्बादी शहरों में हो रही है, इतनी ही गांवों में भी हो रही है। दोनों कंपनियां अलग से पानी का बिजनेस करने में जुटी हुई है। कहना नहीं होगा पानी पर चौतरफा दबाव है। ऐसे में नीति आयोग की जो रिपोर्ट हमारे हाथ में हैं वह गंभीर संकट की ओर इशारा कर रही है।