संक्षिप्त परिचय –
मध्य- प्रदेश की जीवन रेखा के रूप में जानी जाने वाली नर्मदा नदी म.प्र. राज्य की एक प्रमुख नदी है. यह एक सदानीरा नदी है, जिसे ‘रेवा’ कहकर भी संबोधित किया जाता था. नर्मदा नदी का उद्गम मैकाल पर्वत के अंतर्गत अमरकंटक स्थित नर्मदा कुंड से हुआ है, जो कि म.प्र. के अनूपपुर जिले में स्थित है. यह भारतीय उपमहाद्वीप की पांचवी सबसे लम्बी नदी है. म.प्र. के अलावा यह नदी महाराष्ट्र व गुजरात राज्य में भी प्रवाहित होती है. नर्मदा नदी के सफ़र का अंत खंभात की खाड़ी में गिरने के साथ ही होता है.
पौराणिक महत्व –
अत्यन्त पवित्र व पूजनीय मानी जाने वाली नर्मदा नदी उन नदियों में से एक है, जिन्हें चार वेदों के प्रतीक के रूप में माना गया है. जिसके अंतर्गत नर्मदा नदी को सामवेद का रूप माना गया है. इसी क्रम में गंगा को ऋग्वेद, यमुना को यजुर्वेद, सरस्वती को अर्थववेद का प्रतीक माना गया है. रामायण व महाभारत में भी नर्मदा नदी का उल्लेख किया गया है.
प्राचीन काल में इसे ‘सोमोद्भवा’ नाम से जाना जाता था, जिसके नामकरण को लेकर मान्यता है कि नर्मदा की एक नहर को सोमवंशी राजा ने निकाला था, इसी कारण इसका नाम ‘सोमोद्भवा’ पड़ा. इसके अलावा महाकवि कालिदास द्वारा रचित रघुवंश में नर्मदा का ‘सोमप्रभवा’ नाम से वर्णन किया गया है.
सहायक नदियां –
चार राज्यों में बहने वाली नर्मदा नदी अपने मार्ग में आने वाली विभिन्न नदियों को अपनी जलधाराओं में समेटते हुए चलती है. इसकी प्रमुख सहायक नदियां शेर, तवा, बंजर, बरनार, गंजाल आदि हैं, जो कि नर्मदा के सफ़र में इससे मिलती चली जाती हैं.
नर्मदा की यात्रा –
अमरकंटक में विन्ध्याचल व सतपुड़ा की पर्वत श्रृंखलाओं के बीच से निकलकर नर्मदा नदी मध्य- प्रदेश में प्रमुख रूप से जबलपुर, होशंगाबाद, महेश्वर डिण्डौरी, झाबुआ, मंडला से होकर गुजरती है. इसके बाद यह नदी महाराष्ट्र व छत्तीसगढ़ में प्रवाहित होती है, जहां से गुजरात में बहते हुए भरौंच के आगे जाकर खंभात की खाड़ी में गिरती है तथा अरब सागर में विलीन होने के साथ ही नर्मदा नदी की यात्रा का अंत हो जाता है.